एकीकृत करः ऐतिहासिक उपलब्धि

#GSTBill Passed in Rajya Sabha - The Benefits of creating a common economic market.राज्यसभा ने एतिहासिक जीएसटी विधेयक को स्वीकृति दे दी है। इस विधेयक के विरुद्ध एक भी वोट नहीं पड़ा। अन्ना-द्रमुक के सदस्यों ने मतदान का बहिष्कार जरुर किया। हमें समझना पड़ेगा कि इस बहिष्कार के पीछे असली कारण क्या है? प्रसन्नता की बात है कि अन्ना-द्रमुक के अलावा सभी राष्ट्रीय और प्रांतीय पार्टियों ने इस विधेयक पर अपनी मुहर लगा दी है। अब लोकसभा में इसे पास होने में कितनी देर लगेगी? राज्यसभा में भाजपा का स्पष्ट बहुमत नहीं होने के कारण पिछले डेढ़ साल से यह अटका पड़ा था। कांग्रेस ने भी उदारता दिखाई। यदि माहौल ऐसा ही बना रहे तो भारतीय राजनीति कल्याण-मार्ग की पथिक बन जाएगी।

यह कौनसा विधेयक है, जिसे एतिहासिक कहा जा रहा है? यह है– वस्तुओं और सेवाओं का कर विधेयक! इसका अंग्रेजी नामकरण काफी अटपटा है। इस अंग्रेजी नाम (गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स) में से इस विधेयक का असली अर्थ निकालना ज़रा मुश्किल है। इस विधेयक का असली मकसद है, तरह-तरह के प्रांतीय और केंद्रीय करों को एकीकृत करना, उन्हें एकरुप करना! एकीकृत क्यों करना? इसलिए कि एक ही चीज़ पर खरीदारों को दर्जनों कर देना पड़ते हैं। पहले विभिन्न राज्यों में और फिर केंद्र में कर देने पड़ते हैं। इसके कारण आम लोगों को मिलने वाली चीजें मंहगी पड़ती हैं।

दुकानदारों और कारखानेदारों को कर-संबंधी हिसाब-किताब में समय और खर्च लगाना पड़ता है। इसके अलावा जितनी ज्यादा जगह कर भरना पड़ता है, उतनी ही ज्यादा कर-चोरी की संभावना होती है। यदि सारे देश में एक ही एकीकृत कर-प्रणाली लागू हो गई तो टैक्स-चोरी तो घटेगी ही, लोगों को भी माल सस्ता मिलेगा। अभी उपभोक्ताओं को हर चीज़ पर औसतन 27 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक कर भरना पड़ता है। कांग्रेस ने मांग की है कि एकीकृत कर 18 प्रतिशत से ज्यादा न हो। 18 प्रतिशत का आंकड़ा सरकार को स्वीकार नहीं है। हो सकता है कि राज्यों से परामर्श के बाद यह 20 प्रतिशत हो जाए तो भी सभी के लिए यह काफी लाभप्रद रहेगा।

पिछले लगभग 10 साल से अटका हुआ यह संवैधानिक संशोधन अब शीघ्र ही कानून बनेगा। 50 प्रतिशत राज्यों याने 29 में से कम से कम 15 राज्यों द्वारा इसे पारित करना होगा। संभावना है कि तमिलनाडु के अलावा अन्य 28 राज्य इसे शीघ्र पारित कर देंगे लेकिन इस कानून को लागू होने में डेढ़ से दो साल लगेंगे, क्योंकि हजारों वस्तुओं और सेवाओं के लिए एकरुप-एकीकृत कर तय करने में लंबा समय लगेगा। राज्यों की सहमति लेनी होगी। इसके अलावा संसद में हर मुद्दे पर खुलकर बहस होगी। जो भी हो, इस कानून का बनना भाजपा-सरकार की बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी, हालांकि इसकी मूल अवधारणा देने का श्रेय कांग्रेस को ही है।

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