गुजराती होकर गुजरात में शराब पीने की अनुमित क्यों नहीं ?

WINEगुजरात में शराब पर प्रतिबंध के बावजूद शराब तस्करों का मजबूत तंत्र कार्य कर रहा है। तीन बार सत्ता में आने और मुख्यमंत्री रहने के बावजूद मोदी जी शराब के अवैध धंधे को रोक नहीं सके। गौरतलब है कि गुजरात में शराब की बिक्री पर पूरी तरह से रोक है लेकिन फिर भी लोग शराब का अवैध धंधा चल रहा है। महात्मा गांधी की जन्मस्‍थली रहे गुजरात में उनके सम्मान के लिए 1960 से शराब की बिक्री पर कानूनी रूप से रोक लगा दी गई थी। बहुत से लोगों को अब ये लगता है कि कि ड्राई स्टेट की नीति बदलने का समय आ गया है। लोग पूछते हैं कि उन्हें गुजराती होकर भी गुजरात में शराब पीने की अनुमित नहीं है जबकि अगर कोई विदेशी आता है तो उसे परमिट दिया जाता है और वो शराब पी सकता है। गुजरात में मदिरापान करने के लिए सरकार से परमिट लेना पड़ता है। यह हेल्थ परमिट के नाम से जाना जाता रहा है। इससे पहले हेल्थ ग्राउंड पर यह परमिट मिलता था। इसके तहत सिविल सर्जन लिखकर देते थे कि अमुक व्यक्ति को मदिरापान से कोई समस्या नहीं होगी।

एक समाचार के अनुसार गुजरात में अब मदिरापान करना है तो कार्यालय के बॉस की एनओसी अनिवार्य है। बॉस यदि लिख कर देगा कि मेरा मुलाजिम मदिरापान करे, मुझे कोई आपत्ति नहीं है तब ही परमिट लेने की राह खुल सकेगी। इसके साथ ही यह भी अनिवार्य कर दिया गया है कि सैलरी कम से कम 25 हजार रुपए प्रतिमाह होना जरूरी है। पिछले कुछ सालों से परमिट संबंधी मानदंड सख्त हो गए हैं। नए प्रावधानों से परमिट लेना और मुश्किल हो जाएगा। नशाबंदी विभाग के कार्यकारी अधीक्षक जी बी चौधरी ने बताया कि नए नियमों में सुधार के बाद आवेदनों में गिरावट आई है। सरकारी कर्मचारी एनओसी नहीं देते हैं तो परमिट रद्द कर दिया जाता है। स्वास्थ्य कारणों के आधार पर सशर्त मद्यपान का प्रावधान किया है। इसका लाभ गुजरात के बाहर के पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस होल्डर्स को आसानी से मिल जाता है। यानी वे शराब खरीद सकते हैं।

जहाँ ड्राई स्टेट को विरोध करने वाले लोग हैं वहीं इसका समर्थन करने वाले भी लोग हैं। ड्राई स्टेट के पक्षधरों का कहना है कि शराब की बिक्री नहीं होने की वजह से गुजरात महिलाओं के लिए सुरक्षित जगह है। ड्राई स्टेट का विरोध करने वालों का तर्क है कि शराब बेचने की अनुमति न होने के कारण अवैध शराब धड़ल्ले से बिकती है और इसे पीना सुरक्षित नहीं होता। प्रतिबंध के पक्ष में अच्छे इरादों का होना इसका केवल एक पक्ष है। इसका दूसरा पहलू यह है कि प्रतिबंध कारगर नहीं है। इस प्रतिबंध की जिस हद तक अवहेलना की जाती है, वह हास्यास्पद है। अवैध शराब गुजरात में आसानी से उपलब्ध है। मैं खुद गुजरात में कई ऐसे कार्यक्रमों में शामिल हुआ हूं, जहां शराब  परोसने की व्यवस्था होती है। शहरों के हाई-प्रोफाइल लोग शाम की चुस्कियों के साथ जिंदगी और काम से जुड़ी बातें करते हैं। इसके साथ ये प्रतिष्ठित लोग कानून तोड़ने वाले अपराधियों में तब्दील होकर रह जाते हैं।

यह एक पुराने कानून का परिणाम है, जो भारत की 90 फीसदी से ज्यादा आबादी पर लागू नहीं होता। यदि हम नागरिकों को एक काूनन तोड़ने को प्रोत्साहित कर रहे हैं तो फिर वे बाकी कानूनों का सम्मान कैसे करेंगे? क्या इसका आखिरी नतीजा समाज में ‘सब कुछ चलता है’ की सोच को और मजबूत नहीं करेगा, जो देश की मौजूदा समस्याओं का एक बड़ा कारण है? 1920 से 1933 के बीच अमेरिका में भी शराबबंदी को आजमाया गया था, लेकिन यह बुरी तरह असफल रही। इसके लिए भी वही तर्क दिए गए थे, जो आज गुजरात में दिए जाते हैं। इसके दुष्प्रभाव भी एक जैसे थे। नतीजतन इस कानून को ही खत्म कर दिया गया। जॉन रॉकफेलर शराबबंदी के धुर समर्थकों में शामिल थे, लेकिन प्रतिबंध समाप्त किए जाने के बाद उनकी राय कुछ ऐसी थी: ‘‘जब शराबबंदी लागू की गई थी, तब मुझे यह उम्मीद थी कि आम लोग इसका समर्थन करेंगे और शराब के दुष्प्रभावों को समझेंगे। लेकिन धीरे-धीरे मुझे समझ में आने लगा कि इसके नतीजे अपेक्षित नहीं मिल रहे। इसके बाद शराब की खपत बढ़ गई, कानून तोड़ने वालों की नई जमात पैदा हो गई, कानून के प्रति सम्मान की भावना काफी कम हो गई है और अपराध का स्तर पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है।’’ ये बातें मौजूदा गुजरात पर भी लागू होती हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध शराब का धंधा कुटीर उद्योग का रूप ले रहा है। रोजाना अपने बयानों में पुलिस भी शराब के अवैध धंधे पर कार्रवाई की बड़ी-बड़ी बातें जरूर करती है लेकिन हकीकत में ग्रामीण इलाकों में शराब तस्करों का ही सिक्का चलता है। उन्हीं के इशारों पर पुलिस भी कार्रवाई करती है। गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने कहा है कि गुजरात में बढ़ रही शराब की कालाबाजारी रोकने के लिए विमेन पावर का इस्तेमाल होगा। मगर अब तक बड़ौदा में डेढ़ करोड़ की शराब पकड़े जाने के अतिरिक्त और कोई सफलता इस मुहिम में हाथ नहीं लग पाई है। ऐसे आरोप हैं कि शराब की बिक्री का कारोबार स्‍थानीय पुलिस के सहयोग से बराबर फल फूल रहा है। प्रति वर्ष जहरीली शराब पीने से यहां बहुत लोगों की मौत हो जाती है। अवैध शराब का कारोबार चलने और लोगों के मरने से सरकार को काफी विरोध का भी सामना करना पड़ता है। राज्य में अवैध शराब की वजह से हर साल 3 हजार करोड़ रुपए के उत्पाद शुल्क का नुकसान हो रहा है। अगर आप 10 प्रतिशत की दर से उत्पाद कर को जोड़ें तो गुजरात में अवैध शराब का व्यापार 30 हजार करोड़ रुपए का है। कहा जाता है कि भारत में कालाधन पैदा करने के तीन प्रमुख स्रोत हैं- भूमि, खनिज और शराब। गुजरात में खनिज नहीं है लेकिन वहां शराब का कमाल का धंधा चल रहा है। राजस्थान के रास्ते होकर गुजरात को करोड़ों रूपए की शराब की तस्करी प्र्रतिदिन हो रही है।

राजस्थान में महीने में पांच-दस ट्रक शराब-कार्टन से भरे हुए पकड़े जाते रहे हैं। जिनके बारे में यह खुलासा हुआ है कि शराब गुजरात ले जाई जाती है। वहीँ हरियाणा के गुड़गांव से सड़क के रास्ते राजस्थान होते हुए गुजरात शराब पहुंचाने के गोरखधंधे में मोटा मुनाफा देखते हुए तस्कर सक्रिय हैं। हरियाणा से अवैध शराब की खरीद कर उसे मोटे मुनाफे पर गुजरात में बेचा जाता है, जिसमें 700 रुपये प्रति पेटी के एवज में गुजरात में 2,000 रुपये प्रति पेटी मिलता है। पंजाब के प्रमुख शराब कारोबारियों के ग्रुप ने जो खुलासे किए वह काफी हैरान कर देने वाले हैं। उनका दावा है कि देश में ड्राई कहे जाने वाले राज्य गुजरात में न सिर्फ बड़े स्तर पर शराब बिक रही है बल्कि वहां बिकने वाली 80 प्रतिशत शराब पंजाब से जा रही है, यह सारा धंधा बहुत बड़े स्तर पर राज्य में सरगर्म प्रभावशाली शराब माफिया द्वारा चलाया जा रहा है, सरकार द्वारा प्रतिवर्ष ठेकेदारों का कोटा बढ़ा देने से अधिकतर व्यापारी अपने परमिट कम दाम पर इस माफिया को बेचने के लिए विवश हैं, कोटा क्लीयर हो जाने के बावजूद अधिकतर ग्रुपों को चालू वित्त वर्ष दौरान भारी घाटा उठाना पड़ा है, ऊपर से विभाग ने इस वर्ष देसी शराब की कीमतों में कमी कर एक तरह से ठेकेदारों को जमीन पर ला खड़ा किया है, यही वजह है कि ज्यादातर ग्रुप राज्य से बाहर भाग्य अजमाने की रणनीति तैयार कर रहे हैं।

इन ठेकेदारों ने बताया कि गुजरात में पंजाब से हो रही करोड़ों रुपए की शराब तस्करी करने वाला माफिया इतना प्रभावशाली है कि कई राज्यों की सीमाएं लांघने के बावजूद उनकी गाड़ियों को चैक तक नहीं किया जाता। कुछ तस्कर पकड़े जाते हैं लेकिन जो पकड़ में नहीं आ पाते उनकी संख्या काफी मानी जाती है। यानि कि करोडों रूपयों की शराब गुजरात हर रोज पहुंचने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। यह शराब पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ से राजस्थान के रास्ते से गुजरात पहुंचती है। वहीं महाराष्ट्र के रास्तो से भी यह काला कारोबार चलता है। दमन और सिलवासा इसके मुख्य गढ हैं। छुट्टियो के दिनो में तो गुजरातियो की भारी भीड वहां देखी जा सकती है। गुजरात में यह सुविधा भी है कि आपके घर शराब आसानी से पहुंच जाती है। आप बस जेब ढीली कीजिये शराब आपके दरवाजे पर हाज़िर। शराब पहुंचाने वाले ये लोग बूट्लेगर कहलाते हैं। यह सब पुलिस की मिलीभगत से चलता है। कितने ही लोग इस तस्करी की अवैध कमाई से मालामाल हो रहे हैं और गांधी के गुजरात में नशे के व्यापार में वे सरकारी तंत्र पर भारी पड़ रहे हैं। क्या गुजरात सरकार को शराब तस्करी और तस्करों के तंत्र का पता नहीं है? या फिर उनका सरकारी तंत्र इस अवैध कारोबार में शामिल है? उसकी शह के बिना तो अवैध कार्य हो नहीं सकता। अब शराब बंदी के कारण गुजरात सरकार को एक पैसे की आमदनी नहीं हो रही है लेकिन शराब तस्कर मालामाल हो रहे हैं? क्या गुजरात सरकार के पास इस बात के सही आँकड़े हैं कि कितनी शराब पकड़ी गई और कितने शराब तस्करों को पकड़ा गया व कितनों को कितनी कितनी सजा हुई? बिना राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण के इतना बडा काला कारोबार संभव ही नहीं है। क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है? गुजरात भ्रष्टाचार में किसी भी अन्य राज्य से कम नहीं है लेकिन वहां के लोग और शासन इसको भ्रष्टाचार मानते ही नहीं हैं। आर्थिक अपराध वहाँ सर्वस्वीकार्य हैं। रिश्वत वहाँ सुविधाशुल्क है जिसे लोग सौजन्यता मानते हैं। 

-शैलेन्द्र चौहान

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