-गुरुकुल गौतमनगर दिल्ली का वार्षिकोत्सव सोल्लास सम्पन्न- यज्ञ से पर्यावरण की शुद्धि सहित आत्मा की उन्नति व तृप्ति भी होती हैः स्वामी आर्यवेश

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मनमोहन कुमार आर्य,

गुरुकुल गौतमनगर दिल्ली का 85वां वार्षिकोत्सव एवं 39वां चतुर्वेद ब्रह्म पारायण यज्ञ 3 दिसम्बर, 2018 से आरम्भ होकर 16 दिसम्बर 2018 को सोल्लास सम्पन्न हुआ। हमें इस उत्सव के समापन समारोह में सम्मिलित होने का अवसर मिला। समापन समारोह का आरम्भ दिनांक 16 दिसम्बर, 2018 को प्रातः 8.00 बजे चतुर्वेद पारायण यज्ञ एवं इसकी पूर्णाहुति से हुआ। आयोजन के लिये एक ऊंचा मंच बनाया गया था जहां यज्ञ के ब्रह्मा डाॅ. महावीर अग्रवाल जी एवं आर्य विद्वानों सहित प्रमुख अतिथि विराजमान हुए। गुरुकुल के प्रमुख आचार्य स्वामी प्रणवानन्द जी भी मंच पर उपस्थित थे। वह यज्ञ एवं विद्वानों के प्रवचनों का संचालन कर रहे थे और बीच-बीच में दानदाताओं से प्राप्त दान की धनराशियों की सूचना सहित उनका परिचय दे रहे थे। यज्ञ के आरम्भ के बाद अथर्ववेद के शेष मन्त्रों का पाठ कर आहुतियां प्रदान की गईं। यज्ञ के ब्रह्मा डाॅ. महावीर अग्रवाल जी सूक्त की समाप्ती पर यदा-कदा अपने विचार व्यक्त करते थे और अन्य विद्वानों को संक्षिप्त प्रवचन के लिए आमंत्रित करते थे। समारोह आर्यसमाज के अनेक विद्वानों के प्रभावशाली व्याख्यान हुए जिनमें प्रमुख व्याख्यान सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली के यशस्वी प्रधान स्वामी आर्यवेश जी का था। हम उनका पूरा व्याख्यान देने की कोशिश कर रहे हैं। हम आशा करते हैं इससे पाठकों को लाभ होगा।

सार्वदेशिक सभा, दिल्ली के यशस्वी प्रधान स्वामी आर्यवेश जी का व्याख्यान

समापान समारोह में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली के प्रधान स्वामी आर्यवेश जी का भी व्याख्यान हुआ। स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि हम लोग सौभाग्यशाली हैं जो हमें यहां चतुर्वेद पारायण यज्ञ में सम्मिलित होने का अवसर मिला। परमात्मा ने कृपा कर हमें यह अवसर प्रदान किया है। हमने यहां आकर वेद की पवित्र ऋचाओं का पाठ किया, पाठ सुना भी और यज्ञ में आहुतियां प्रदान की हैं। स्वामी जी ने कहा कि हमें यज्ञ को विस्तारित रुप से समझने की बात करनी चाहिये। गोपथ ब्राह्मण के अनुसार यज्ञ सबसे श्रेष्ठतम कर्म है। हमें यज्ञ का सही अर्थ जानना होगा। वेद और वेदांग का एक शब्द में निचोड़ यज्ञ है। मानवता के कल्याण के सभी काम यज्ञ में आते हैं। देव यज्ञ, यज्ञ का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण हैं। स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि यज्ञ ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, अतिथि यज्ञ एवं बलिवैश्वदेव यज्ञ से जुड़ा है। देव यज्ञ के अतिरिक्त अन्य यज्ञों में यज्ञ की वेदी नहीं सजाई जाती। मानवता के उपकार के सभी काम यज्ञ में आते हैं। महर्षि दयानन्द जी के अनुसार यज्ञ से पर्यावरण की शुद्धि ही नहीं होती अपितु आत्मा की उन्नति व तृप्ति भी होती है। 

स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि यदि आप मानवता का व्यवहार करते हो और किसी पीड़ित व्यक्ति का दुःख दूर करते हो तो वह व्यक्ति आपके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है। हमारे इस व्यवहार से हमारी आत्मा में प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है। इस प्रकार का व्यवहार करने से आत्मा की उन्नति होती है। स्वामी जी ने ऋषि याज्ञवल्क्य एवं राजा जनक का संवाद भी प्रस्तुत किया। स्वामी जी ने कहा कि संवाद में कहा गया है कि घृत से यज्ञ किया जाता है। घृत हो तो अच्छा है और यदि न हो तो समधिा, सामग्री, जल से भी यज्ञ किया जा सकता है। यदि कभी इनमें से कोई पदार्थ न हो तो उस स्थिति में हम अपनी आत्मा को परमात्मा रूपी अग्नि को समर्पित करके यज्ञ कर सकते हैं। स्वामी जी ने कहा कि हमें अपनी आत्मा को ईधन बनाकर परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित होना चाहिये। हम व्यक्तिगत स्वार्थ से रहित होकर समाज व मनुष्य आदि सभी प्राणियों के उत्थान के लिये जब कोई काम करते हैं तो हमारे द्वारा किया गया परोपकार का काम ही यज्ञ हो जाता है। 

सभा प्रघान स्वामी आर्यवेश जी ने आह्वान किया कि परोपकार के कार्यों में अपने जीवन को लगाओ। श्रद्धावान बनो।ं स्वामी जी ने कहा कि आज सर्वत्र भ्रान्तियां फैली हुई हैं। आज अश्रद्धा को श्रद्धा माना जा रहा है। परमात्मा को जानकर व पहचानने से मनुष्य की उन्नति होती है। स्वामी जी ने कहा कि हमें सत्य को धारण करना है और असत्य का त्याग करना है। हमें समाज व देश से सत्य व अज्ञान को मिटाना है। यश प्राप्ति क्षत्रिय का कर्म व लक्षण है। अन्याय को मिटाना क्षत्रिय का कर्तव्य है। इससे यश की प्राप्ति होती है। गीता का उल्लेख कर स्वामी जी ने कहा कि हमें धर्म व सत्य की रक्षा करने के लिये युद्ध व संघर्ष करना है। स्वामी जी ने कहा कि ब्राह्मण का उद्देश्य अज्ञान को, क्षत्रिय का अन्याय को तथा वैश्य का उद्देश्य अभाव को मिटाना है। वैश्य संकल्प करता था कि वह देश व समाज से अभाव को दूर करेगा। उसके होते हुए कोई मनुष्य भूखा नहीं मरेगा। स्वामी जी ने कहा कि परिवार के सभी सदस्यों में परस्पर समर्पण व सहयोग होना चािहये। इससे परिवार का वातावरण सुखद व सुगन्ध से युक्त होगा। यज्ञ करते हुए हम घृत व सामग्री आदि पदार्थों की अग्नि में आहुतियां देते हैं जिससे वायुमण्डल में सुगन्ध का विस्तार होता है। यज्ञ में आहुत द्रव्य सूक्ष्म कणों में टूट कर वायुमण्डल को सुगन्ध से युक्त व दुर्गन्ध से वियुक्त व दुर्गन्ध का नाश कर प्राणीमात्र को लाभान्वित करते हैं।  

स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि यज्ञ करने से सब मनुष्यों को लाभ होता है। स्वामी जी ने महाभारत के यक्ष तथा युधिष्ठिर के मध्य हुए संवाद को भी प्रस्तुत किया। यक्ष ने प्रश्न किया था कौन सा दान मर जाता है? इसका युधिष्ठिर जी ने उत्तर दिया कि जो दान वेद की मान्यता के विपरीत एवं अवैदिक मान्यताओं का विस्तार करता हो अथवा जो अनुचित हो व समाज का अहित करने के कामों के लिये दिया जाता है वह दान मर जाता है। स्वामी जी ने समाज में फैले हुए अन्धविश्वासों का चित्रण भी किया। उन्होंने पौराणिकों द्वारा गंगा आदि नदियों में पैसे व सोना-चांदी के आभूषण डालने को दान का दुरुपयोग बताया। उन्होंने कहा कि ऐसा करना दान नहीं अपितु धन का अपव्यय है। स्वामी जी ने रेलयात्रा करते हुए नर्मदा नदी में एक दम्पती द्वारा पैसे डालते का उल्लेख किया। उस रेलगाड़ी में एक आर्य विद्वान भी यात्रा कर रहे थे। उन्होंने नर्मदा में पैसे डालने वाली महिला को कहा कि माता जी आपने यह पाप कर दिया है। उन्होंने उन्हें कहा कि आपका दान तो मछली व मेढ़क भी नहीं खाते। आर्य विद्वान ने माता जी को कहा कि यदि आप उस पैसे को स्टेशन पर किसी भूखे भिखारी को देतीं तो उसको लाभ होता व उसकी भूख दूर हो सकती थी। वह उन पैसे से भोजन लेकर खा सकता था जिसका पुण्य आपको प्राप्त होता। ऐसा होने पर वह दान कहला सकता था। स्वामी आर्यवेश जी ने दान के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डाला। स्वामी जी ने श्रोताओं को गुरुकुलों को दान देने की प्रेरणा की। ऐसा करने से वेद विद्या की वृद्धि होगी। स्वामी जी ने कहा कि अनाथों को सहारा दो। उन्होंने कहा कि अवैदिक कार्यों के लिये दिया गया दान मर जाता है। 

प्रसिद्ध वैदिक विद्वान स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि मनुष्य जीवन अमूल्य है। हमें आत्मालोचन करना चाहिये। स्वामी जी ने श्रोताओं को ईश्वर की उपासना तथा परोपकार के कार्य करने की प्रेरणा भी की। इससे शुभ कर्मों में वृद्धि होगी जिससे दानकर्ता को सुख मिलेगा। स्वामी जी ने कहा कि यही यज्ञ का भाव है। इसके साथ ही स्वामी आर्यवेश जी ने अपनी वाणी को विराम दिया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हम स्वामी आर्यवेश जी के विचारों पर ध्यान दें। यज्ञ से जुड़े तथा निर्धन व सुपात्र लोगों को दान दिया करें। लगभग 1.00 बजे चतुर्वेद पारायण यज्ञ की पूर्णाहुति हुई। यज्ञ में अनेक मूर्धन्य विद्वानों के प्रवचन हुए। गुरुकुल में आयोजित इस समारोह में अनेक विद्वान एवं सामाजिक विभूतियां उपस्थित थीं। प्रमुख विद्वान स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द-गोमत, श्री धर्मपाल आर्य, डा. रघुवीर वेदालंकार, श्री अशोक चैहान-एमिटी यूनिर्वसिटी, श्री दर्शनकुमार अग्निहोत्री जी, ठाकुर विक्रम सिंह जी तथा डा. आनन्द कुमार आदि प्रमुख थे। कार्यक्रम में कुछ विद्वानों का सम्मान भी किया गया। आर्यसमाज के साहित्य के कुछ प्रकाशक एवं पुस्तक विक्रेता भी अपने अपने साहित्य के साथ आयोजन-स्थल पर अपना साहित्य विक्रय कर रहे थे। आर्य साहित्य के प्रमुख प्रकाशक श्री अजय आर्य जी सपत्नीक इस आयोजन में उपस्थित थे। वैदिक साहित्य के प्रकाशन एवं वितरण द्वारा आर्यसमाज की विचारधारा के प्रचार-प्रसार में श्री अजय आर्य जी के परिवारजनों, पिता कीर्तिशेष श्री विजय कुमार जी एवं पितामह कीर्तिशेष श्री गोविन्दराम जी, का अविस्मरणीय योगदान है। 

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