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गौरवर्णी बादलों की बात - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
लग रहा है यह समय का फेर सा है, बादलों में अब प्रदूषण ढेर सा है। अब गुलाबी और कपसीली बदलियाँ लापता हैं, न रुई के ढेर जैसे बादलों के कुछ पता हैं। रात के जुगनूं न जा जाने अब कहां पर खो गये हैं, ओढ़कर खामोशियां लगता…