हनुमान जी के प्रेरणादायक जीवन के अनुरूप स्वयं का जीवन बनायें

0
190

hanuman jiहनुमान जयन्ती के आज के दिन हनुमान जी के जीवन पर दृष्टिपात कर तथा उसमें अपने जीवन को उन्नत व सफलता प्रदान करने वाली घटनाओं को जानकर उनको आचरण में लाने की आवश्यकता है। वेदज्ञ बालब्रह्मचारी हनुमान जी राजा सुग्रीव के मंत्री थे। राजा सुग्रीव महाबलि राजा बाली के छोटे भाई थे। दोनों में मतभेद हो जाने के कारण राजा बाली ने सुग्रीव को अपने राज्य से निर्वासित कर दिया था। हनुमानजी क्योंकि वेद मर्मज्ञ व वैदिक जीवन के आदर्श रूप एवं धर्म के गम्भीर ज्ञाता थे, अतः उन्होंने विपदा की इस घड़ी में अपने पूर्व राजा और मित्र सुग्रीव जी का साथ दिया था। संयोग ऐसा हुआ कि जब यह वनों में घूम रहे थे तो वहां इनकी भेंट अयोध्या के राजा दशरथ के प्रतापी पुत्र श्री रामचन्द्र जी के साथ हुई। रामचन्द्र जी अपने पिता के वचनों को निभाने के लिए लक्ष्मण व सीताजी के साथ 14 वर्ष का वनवास व्यतीत कर रहे थे। वन में कुछ घटनायें घटी जिनके परिणामस्वरूप लंका के राजा रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया और बलात् उनको लंका ले जाकर अशोक वाटिका में रखा।

लंकेश रावण के द्वारा माता सीता के अपहरण के बाद श्री रामचन्द्र जी अपने अनुज लक्ष्मण के साथ सीताजी की खोज में स्थान-स्थान पर घूम रहे थे। ऐसे समय में उनकी भेंट राजा सुग्रीव के मंत्री हनुमान जी से होती है जो कि राज्यच्युत होने पर वनों में अज्ञातवास कर रहे थे। हनुमानजी गुप्तवेश में रामचन्द्रजी से मिले और उनके वनों में आने का प्रयोजन पूछा। पूरी स्थिति जानने के बाद उन्होंने राजा सुग्रीव और बाली के विवाद के विषय में उन्हें अवगत कराया। इस बातचीत के बाद हनुमानजी के चले जाने के बाद श्री रामचन्द्र जी ने लक्ष्मणजी को कहा था कि हनुमानजी ने वार्तालाप में जो संस्कृत भाषा का प्रयोग किया है, भाषा का ऐसा प्रयोग वही व्यक्ति कर सकता है जिसे चारों वेदों का पूर्ण ज्ञान हो। हनुमान जी ने इस लम्बे वार्तालाप में कोई व्याकरण सम्बन्धी त्रुटि नहीं की और न हि कोई अशुद्ध शब्दोच्चारण किया। अतः हनुमान जी का वेदों का विद्वान होना और संस्कृत को मातृभाषा की तरह शुद्ध बोलने की योग्यता प्राप्त थी जो सम्भवतः उन दिनों बहुत कम लोगों में हुआ करती थी, ऐसा अनुमान होता है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि हनुमान जी असाधारण मनुष्य थे, वानर नहीं।

रामायण के अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि सुग्रीव ने रामचन्द्र जी से भ्राता बाली से उनके विवाद में सहायता मांगी। बाली के अधर्माचरण एवं मित्र सुग्रीव की प्रार्थना पर वह सहमत हो गये। निश्चित योजना के अनुसार सुग्रीव ने बाली को युद्ध के लिये ललकारा। क्षत्रिय का तो कर्तव्य है कि वह किसी के ललकारने पर युद्ध करे। बाली में रावण की ही भांति अहंकार भी था। यही कारण था कि वह अपने निर्बल भाई सुग्रीव के युद्ध के आमंत्रण पर उसमें निहित गुप्त योजना को समझ नहीं पाया। यदि वह कोशिश करता तो आसानी से समझ सकता था कि इसके पीछे किसी अन्य शक्ति का सहयोग है। इसकी उपेक्षा बाली को भारी पड़ी और श्री रामचन्द्र जी के बाणों से महाबलि बाली धराशायी होकर परलोक चला गया। श्री रामचन्द्र जी द्वारा बाली को उसके अधर्म के कार्य अवगत कराने पर वह उनसे सहमत हो गया और उसने अपना पुत्र अंगद उनकी सेवा व मार्गदर्शन के लिए उन्हें प्रदान किया। सुग्रीव के राजा बनने और अपना सब कुछ छीना हुआ अधिकार व सुविधायें वापिस मिल जाने पर अब सीताजी की खोज व उन्हें ससम्मान श्री रामचन्द्र जी को प्राप्त कराने में उनकी सहायता का दायित्व उन पर आ गया। हनुमान जी की सहायता से उसने अपना कर्तव्य निभाया। यहां हम देखते हैं कि सीताजी की खोज में हनुमानजी की प्रमुख भूमिका थी। उन्होंने अपनी शारीरिक व बौद्धिक सामथ्र्य का परिचय दिया और चमत्कारिक रूप से माता सीता की असम्भव सी दीखने वाली खोज में सफलता प्राप्त की। वह अकेले लंका पहुंच गये और वहां माता सीता को श्री रामचन्द्र और लक्ष्मण जी का कुशल-क्षेम बताने के साथ सूचित किया कि कुछ ही दिनों में श्री रामचन्द्र जी रावण से युद्ध कर व उसे पराजित कर उन्हें ससम्मान वहां से अपने साथ ले जायेंगे।

सीताजी से मिलने के बाद उन्होंने अपने भोजन आदि के लिए अशोक वाटिका के वृक्षों को जो उजाड़ा, उसके परिणामस्वरूप रावण की सेना के लोग उन्हें पकड़कर ले गये और रावण के सामने उपस्थित किया। वहां हनुमानजी ने श्री राम जी की वीरता, धर्मपरायणता व शास्त्रों की मान्यताओं का हवाला देकर माता सीता को छोड़ने का परामर्श रावण को दिया। अंहकार में चूर रावण ने हनुमान जी के सत्परामर्श की उपेक्षा की। जिसका परिणाम यह हुआ कि राम व रावण के बीच युद्ध होना निश्चित हो गया। अतः हनुमानजी को माता सीता की खोज पूरी कर व रावण का विवरण सूचित करने के लिए श्री रामचन्द्र जी के पास लौटना पड़ा। इससे जुड़ी अनेकानेक घटनाओं का यथार्थ वर्णन बाल्मिीकी रामायण में उपलब्ध है। इसके साथ ही स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती द्वारा सम्पादित बाल्मिीकी रामायण एवं महात्मा प्रेमभिक्षु जी द्वारा सम्पादित शुद्ध रामायण भी पढ़ने योग्य है जहां इन घटनाओं के ऐतिहासिक पक्ष को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

हनुमानजी के श्री रामचन्द्र जी के पास लौटने और लंका का माता सीता का सारा वृतान्त सुनाने के बाद रावण से श्री रामचन्द्र जी के युद्ध की तैयारियां आरम्भ हो गईं। भारत की समस्त धर्म प्रेमी जनता इस युद्ध का वृतान्त जानती है जिसको दोहराने की आवश्यकता नहीं है। इतना ही कहना समीचीन है कि राम व रावण के इस युद्ध में हनुमान जी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका थी। हनुमान जी साधारण मानव नहीं अपितु महाबलशाली, बाल ब्रह्मचारी तथा माता अंजना व वायु के पुत्र थे जो युद्ध कला व गदा युद्ध आदि में प्रवीण व अजेय थे। राजनीति में भी आप पारंगत व बुद्धि कौशल से युक्त थे। आपने अपने प्राणों की चिन्ता न कर इस युद्ध में श्री रामचन्द्र जी को विजय दिलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी और अपनी पूरी शक्ति, योग्यता व क्षमता से युद्ध किया जिसका परिणाम श्रीरामचन्द्र जी की विजय के रूप में सामने आया। युद्ध में श्री लक्ष्मण जी के जीवन की रक्षा में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी जिसके लिए श्रीरामचन्द्र जी भी उनके प्रति कृतज्ञ थे।

श्री रामचन्द्र जी के अन्दर एक आदर्श मानव के सभी गुण थे। धर्मपारायणता उनका मुख्य गुण था। इस कारण हनुमानजी का उनके प्रति आदरभाव व पूर्ण निष्ठा थी। ऐसे आदर्श पुरूष को पाकर वह धन्य थे। श्री रामचन्द्र जी में उन्हें एक सच्चा मित्र, हितैषी व स्वामी प्राप्त हुआ था जिसके लिए वह कुछ भी करने के लिए तत्पर थे। उनके इन्हीं कार्यों व भावनाओं ने उन्हें भी श्री रामचन्द्र जी की भांति अमर व कीर्तिमान बना दिया। आज हनुमान जयन्ती पर हम उनके जीवन में ब्रह्मचर्य, वीरता, वेदों की शिक्षाओं का धारण, संस्कृत में प्रवीणता, आदर्श सेवक, धर्मपारायण स्वामी के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देने की भावना, युद्ध कौशल में दक्षता को साकार रूप में पाते हैं। उनका जीवन सभी मनुष्यों के लिए प्रेरणादायक व अनुकरणीय है। बाल्मिीकी रामायण को पढ़कर उनके अनेक गुणों का ज्ञान होता है जिसे धारण कर जीवन को उपयोगी व सफल किया जा सकता है। हमें आज के दिन वाल्मिीकि रामायण को पढ़ने का संकल्प लेना चाहिये और हनुमानजी के गुणों को अपने जीवन में धारण करने का पूरी निष्ठा से प्रयत्न करना चाहिये।

(आज 4 अप्रैल को हनुमान जयन्ती पर)

मनमोहन कुमार आर्य

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here