हनुमान जी की गदा

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hanuman ji gadaबी एन गोयल

गत कुछ दिनों से हमारी मित्र मंडली में हनुमान जी के बारे में काफ़ी चर्चा चल रही है। इस का कारण है – श्री लंका में एक खुदाई के दौरान एक भारी भरकम गदा मिली है जिसे हनुमान जी की गदा माना जा रहा है।  इस का वज़न इतना अधिक है इसे उठाने के लिए दो क्रेन की आवश्यकता पड़ी।  चर्चा का विषय है  यदि यह गदा वास्तव में हनुमान जी की है तो इस से उन की अपनी शक्ति का अनुमान लगाया जा सकता है कि वे स्वयं कितने भारी भरकम रहे होंगे।

एक समय ऐसा भी था जब श्री लंका के लोग रामायण कालीन लंका से अपना  कोई सम्बन्ध नहीं मानते थे लेकिन लगभग २० -२५ वर्ष पूर्व श्री लंका सरकार के पर्यटन विभाग ने अपने देश में  रामायण में वर्णित स्थानों की खोज की और पर्यटन की दृष्टि से उन स्थानों का विकास किया।

इसी महीने अचानक हम केलिफोर्निया गए तो वहां के माउंट मेडोना सेंटर स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर के दर्शन का अवसर मिला।  यह मंदिर काफी ऊंचाई पर है और यहाँ जाने के लिए लगभग आधा घंटा की सर्पिल घुमावदार पर्वतीय सड़क से जाना पड़ता है। मंदिर की सेवा पूजा में अधिकांशतः गोरे लोग ही लगे हुए थे। वहां भी इस गदा की चर्चा सुनी।

इसी तरह इसी महीने यानी ९ सितंबर  २०१४ के दिल्ली के एक अख़बार में एक खबर प्रकाशित हुई कि  श्री लंका में एक गाँव है  – मातंग ।  वहाँ के निवासियों को मातंगी कहा जाता है।  यह गांव  घने जंगलों से घिरा है ।  कहते हैं हर ४१ वें वर्ष इस गाँव में हनुमान जी आते हैं और गाँव वालो  से मिलते है।  इस बार वे गत २० मई २०१४ को आए थे।

यह तो हम सब जानते है कि  हिंदू पौराणिक गाथाओं के अनुसार हमारे सात पौराणिक पात्र चिरंजीव हैं अर्थात वे शाश्वत हैं, उन की मृत्यु नहीं होती। हनुमान जी उन में से एक हैं । हनुमान जी के जन्म के बारे में भी मतैक्य नहीं है। लेकिन इतना तो है कि  वे रामायण युग में हुए और उस युग के एक महत्वपूर्ण पात्र बने ।  महाभारत युग में भी हनुमान जी थे और कहते हैं कि युद्ध प्रारम्भ होने से पहले वे पांडव से मिले थे । यह भी कहा जाता है कि  उन्होंने अर्जुन को अपरोक्ष रूप से अपनी सहायता का वचन दिया था । अपने वचन का निर्वाह भी उन्होंने पूरा किया ।

कहते हैं  वे पूरे युद्ध में सूक्ष्म रूप में अर्जुन के रथ के ऊपर लहराते ध्वज के पास ही रहे।  यदि कभी विरोधी पक्ष का कोई बाण सीधे अर्जुन को लक्ष्य कर आता तो तुरंत हनुमान जी रथ को थोड़ा नीचे दबा देते और बाण सीधा निकल जाता था।  इस के अतिरिक्त  पाञ्चजन्य शंखनाद में हनुमान जी की हुंकार भी होती थी।

महाभारत युद्ध समाप्त होने के हज़ारों वर्षों के बाद आज के वैज्ञानिक डिजिटल युग में भी वे  जीवित हैं और श्री लंका की  मातंगी जनजाति के माध्यम से उन के होने के प्रमाण मिल रहे हैं।  ​यह जनजाति मूलतः श्री लंका की एक  वेद्दाह (Veddaah) नाम की बड़ी जनजाति की उप जाति है।

‘सेतु’ नाम के एक आध्यात्मिक संगठन ने इस जनजाति की मान्यताओं और संबंधों के अध्ययन और शोध का कार्य अपने हाथ में लिया है। ‘सेतु’ के अनुसार इस  जन जाति के लोग अत्यधिक निष्ठावान और धार्मिक हैं और वे आधुनिक जगत की प्रगति से अभी काफी दूर हैं।  ये लोग अभी भी जंगलों में ही रहते हैं और अपने इतिहास को रामायण युग से जोड़ते  हैं।

 

सेतु ने अपने शोध में पाया है  कि भगवान राम के इस नश्वर शरीर छोड़ने के उपरान्त हनुमान जी ने भी अयोध्या से विदा ली और ब्रह्माण्ड के विभिन्न स्थानों की यात्रा की। वे लंका गए और लंका नरेश विभीषण से भी मिले। उसी यात्रा के समय उन्होंने  इस जनजाति के लोगों के साथ  ​कुछ समय व्यतीत किया और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान दिया। उसी समय हनुमान जी ने इन लोगों से नियमित रूप से मिलने का वायदा किया। इसी  वायदे के अनुसार प्रत्येक ४१वें वर्ष इन से मिलने आते हैं।  अब अगली भेंट सन  २०५५ में होगी।

 

सेतु संगठन ने अपनी वेब साइट www.setu.asia  पर पहले अध्याय में इस बात का वर्णन किया है कि  किस प्रकार हनुमान जी इस जंगल में पहुंचे। इस अध्याय में लिखा है की हनुमान जी अपनी यात्रा  एक बार न्यूवेरा इलिया नाम की पहाड़ी पर बैठे थे । गांव के मुखिया ने इन्हें देखा और वे उन से मिलने वहां पहुंचे ।

 

रूप रेखा के अनुसार दूसरे अध्याय में इस बात  की चर्चा होगी कि उन दोनों के बीच क्या क्या बात हुई।  शोध की भूमिका में कहा गया है कि यद्यपि आज के  डिजिटल युग में हम वैज्ञानिक प्रगति के निकष पर हैं लेकिन आध्यात्मिक प्रगति में ये जंगल वासी हम से काफी आगे हैं।  हम अपने बारे में कुछ भी तर्क वितर्क दे सकते हैं, अपने कार्यों के औचित्य दे सकते हैं, लेकिन इस नश्वर संसार से भी आगे एक दिव्य शाश्वत सत्य है जिस के लिए आस्था, श्रद्धा, विश्वास और निष्ठा चाहिए।

 

हनुमान जी स्वयं श्रद्धा, भक्ति, समर्पण और शक्ति के प्रतीक हैं। आदि कवि वाल्मीकि ने रामायण में  राम के प्रति राम सेवक के रूप में हनुमान जी के  योगदान का विशद वर्णन किया है परन्तु तुलसी दास ने उनको राम सेवक ही नहीं वरन एक अनूठा, अद्वितीय, असीम भक्त बना कर प्रस्तुत किया है क्योंकि हनुमान जी  ने तुलसी दास को चित्र कूट के घाट पर भगवान राम के दर्शन कराये थे और उन्हें रामचरितमानस के निरूपण में अपना सहयोग दिया। तुलसीदास रचित हनुमान चालीसा आज के युग में हर बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी को प्रिय है और सभी को कंठस्थ है ।

 

अतुलित बलधामं हेम शैलाभ देहम 

दनुजवन कृशानुनाम ज्ञानीनाम अग्रगण्यम 

सकलगुण निधानं वानराणामधीशम 

रघुपतिवरदूतम्र वातजातं नमामिह  

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बी एन गोयल
लगभग 40 वर्ष भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं। सन् 2001 में आकाशवाणी महानिदेशालय के कार्यक्रम निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए। भारत में और विदेश में विस्तृत यात्राएं की हैं। भारतीय दूतावास में शिक्षा और सांस्कृतिक सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। शैक्षणिक तौर पर विभिन्न विश्व विद्यालयों से पांच विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर किए। प्राइवेट प्रकाशनों के अतिरिक्त भारत सरकार के प्रकाशन संस्थान, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए पुस्तकें लिखीं। पढ़ने की बहुत अधिक रूचि है और हर विषय पर पढ़ते हैं। अपने निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें मिलेंगी। कला और संस्कृति पर स्वतंत्र लेख लिखने के साथ राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों पर नियमित रूप से भारत और कनाडा के समाचार पत्रों में विश्लेषणात्मक टिप्पणियां लिखते रहे हैं।

5 COMMENTS

  1. 7. Hanuman Gadha found during an excavation in Sri Lanka.

    Fact:
    This picture claims to show the Hindu God Hanuman’s Gadha (mace), supposedly discovered during an excavation in Sri Lanka. Other versions said it is the world’s largest Gada of Veer Hanuman discovered in Gujarat. The claims are not true. It actually shows a 45 feet Gada replica for installation on a 125-foot-high Hanuman statue on the outskirts of Indore, India on the occasion of Hanuman Jayanti (birthday) on 25 April 2013. (As quoted in Hindustan Times epaper.)

  2. इतनी उत्तम जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !

    मैं लेखक से सहमत हूँ ‌—- ” यह तो हम सब जानते है कि हिंदू पौराणिक गाथाओं के अनुसार हमारे सात पौराणिक पात्र चिरंजीव हैं अर्थात वे शाश्वत हैं, उन की मृत्यु नहीं होती। हनुमान जी उन में से एक हैं । हनुमान जी के जन्म के बारे में भी मतैक्य नहीं है। लेकिन इतना तो है कि वे रामायण युग में हुए और उस युग के एक महत्वपूर्ण पात्र बने । महाभारत युग में भी हनुमान जी थे और कहते हैं कि युद्ध प्रारम्भ होने से पहले वे पांडव से मिले थे । यह भी कहा जाता है कि उन्होंने अर्जुन को अपरोक्ष रूप से अपनी सहायता का वचन दिया था । अपने वचन का निर्वाह भी उन्होंने पूरा किया । “

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