देश में हो रहा बुजुर्गों का तिरस्कार, कौन दोषी कौन जिम्मेवार?

-नरेन्द्र भारती-
old women

बेशक प्रत्येक वर्ष एक अक्तूबर को विश्व वृद्ध दिवस मनाया जाता है मगर ऐसे आयोजन औपचारिकता भर रह गए हैं। केवल मात्र एक दिन बड़ी धूमधाम से कार्यक्रम किए जातें हैं बाकि 364 दिन इन वृद्धों को कोई याद तक नहीं करता वृद्धों कें नाम पर चलाई जा रही योजनाएं कागजों में ही क्रियान्वित होती हैं। आज देश में बुजुर्ग लोग तिरस्कृत जीवन जीने को मजबूर हैं। बुजुर्ग किसी दूसरे द्वारा नहीं बल्कि अपने ही बेटों के कारण उपेक्षित हैं शायद यह उनका दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिन बच्चों के लिए अपना पेट काटकर व भूखे रहकर उनका पालन पोषण किया आज वही बेटे उन्हे दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर कर रहे हैं। गत दिनो हिमाचल के जिलामण्डी में एक वृद्धा को एक एनजीओ के माध्यम से मुक्त करवाया था और वृद्ध आश्रम में भेजा गया था। गनीमत रही कि उस संस्था ने मामला उजागर कर दिया अन्यथा वह आज तक नरक की जिन्दगी बसर कर रही होती आज देश में बुजुर्गों की जो हालत हो रही है उसके मामले समय-समय पर उजागर होते रहते हैं। आधुनिक युग की तथाकथित बहुएं व कलयुगी बेटे बुजुर्गों से बुरा व्यवहार कर रहे हैं। लेकिन एक दिन उन्हें भी बुढ़ापा आयेगा तब उन्हें भी अपनी करनी का फल अवश्य मिलेगा। कहते हैं कि बुजुर्ग अनुभवों की खान होते हैं। बुजुर्ग वटवृक्ष के सामान होते हैं, जिनकी शीतल छाया में बच्चे सुरक्षित रहते हैं, मगर आज अपने ही वृक्ष को काटने पर उतारु हो गए हैं। देश में आज लाखों वृद्ध लोग नारकीय जीवन जीने पर मजबूर हैं तथा दूसरों पर मोहताज हैं। बुजुर्गों ने पाई-पाई जोड़कर जिन बच्चों को महंगी व उच्च तालिम देकर पैरों पर खड़ा किया आज उन्हीं के सामने दो जून की रोटी के लिए गिड़गड़ा रहे हैं।

मां-बाप का कर्ज आज तक कोई नहीं चुका पाया है। बुजुर्गों ने अपनी खुशियों का गला घोंटकर अपने बच्चों को हर खुशी प्रदान की मगर आज वही चिराग माता-पिता के दुश्मन बन गए हैं, बुजुर्ग परिवार का स्तम्भ होते हैं। आज बुजुर्गों को स्टोर रूम में रखा जाता है मगर एक दिन स्टोर रुम तुम्हारा भी इंतजार कर रहा है, जब तुम्हें भी ऐसा ही नसीब होगा। क्योंकि जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे। अक्सर देखा गया है कि अधिकांश लोग वृद्ध आश्रमों की शरण ले रहे हैं, क्योंकि जब यह लोग दुखी हो जाते हैं तो वृद्ध आश्रम ही आखिरी विकल्प सूझता हैं। आज बहुत से वृद्ध एकाकी जीवन जी रहे हैं। बेटों के पास आज समय नहीं हैं कि अपनों का सहारा बने हमें घर में अपने बुजुर्गों की दिन-रात सेवा करनी चाहिए क्योंकि बुजुर्गों की सेवा से बड़ा कोई तीर्थ नहीं हैं। आज स्थिति यह है कि वृद्ध लोग दाने-दाने को तरस रहे हैं। विडम्बना देखिए कि आज मां-बाप का बंटबारा किया जा रहा है उन्हे महीनों में बांटा गया है कि इस माह किस बेटे के पास खाना खाना है तथा अगले महिने दूेेसरे बेटे के घर खाना है।जिन मां बाप ने अपने बेटों में कभी भेदभाव तक नहीं किया आंच तक नहीं आने दी कांटा तक चुभने नहीं दिया आज वही बच्चे उनका बंटवारा कर रहे हैं। ऐसी परिस्थिितियों के कारण कई लोग असमय ही मौत को गले लगा रहे हैं। बुजुर्गों के साथ बांटो द्वारा मारपीट की घटनाएं भी होती रहती हैं। मारपीट के कारण कई मारे जा चुके हैं। ऐसी औलादें समाज पर कलंक हैं जो अपने ही जन्मदाताओं को नरक की जिन्दगी दे रहे हैं।

लेकिन कहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है। समय बहुत बलवान होता है एक दिन सजा जरूर मिलेगी। गरीब लोग तो माता-पिता व बुजुर्गों की अच्छी सेवा करते हैं, मगर साधन संपन्न लोगों द्वारा आज बुजुर्गों को ओल्ड एज होम तथा सरकार द्वारा बनाए गए वृद्ध आश्रमों में धकेला जा रहा हैं। आज वृद्धों को पुराना सामान समझ कर निकाला जा रहा है। लेकिन दुनिया में सब कुछ मिल जाता है, मगर मां-बाप नहीं मिलते। बेचारे बुजुर्ग जिन पोते-पोतियों को कंधों पर बिठाकर स्कूल से लाते थे और छोड़ते थे, आज वही उनकी पिटाई तक करते हैं तथा उनका मजाक उड़ाते हैं। कुछ बुजुर्ग तो घर में ही कैद होकर रह गए हैं, वे गुमनामी के अन्धरे में जीने को मजबूर हैं। वृद्ध आज दयनीय स्थिति में जीवनयापन कर रहे हैं। सरकारों ने बुजुर्गों को पेंशन की सुविधा दी है, पर वह भी नाकाफी साबित हो रही है। केन्द्र सरकार द्वारा वृद्धों के भरण-पोषण के लिए कानून बनाए हैं, मगर वे फाइलों की धूल चाट रहे हैं। नजीजन लोग कानूनों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। सरकार को सख्ती से कानून लागू करने चाहिए, ताकि वृद्धों को उनका हक मिल सके। सरकार व प्रशासन को ऐसे लोगों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई करनी चाहिए तथा बुजुर्गों का अनादर करने वालों को दंडित किया जाए। जब तक बुजुर्गों को उनका सम्मान नहीं मिलेगा, ऐसे वृद्ध दिवसों की कोई सार्थकता नहीं होगी।

4 COMMENTS

  1. वृद्ध जनों को लेके स्थितियां बहुत ख़राब हैं समाज में काऱण बहुत से हैँ, लेकिन मुख्य रूप से जिक्र किया जाए तो पैसे के प्रति बढती लोगों की हवस ने सारा का सारा सामजिक ताना बाना छिन्न भिन्न कर दिया है। बाकि के कारण बाद में ही आएँगे।

    पारिवारिक और सामजिक जिम्मेवारी पर अलख जगाता लेख, लेखक को साधुवाद।


    सादर,

  2. श्री नरेन्द्र भारती ने बुजर्गों की दुर्दशा का अच्छा चित्रण किया है।कुछ हद तक यही हकीकत भी है। समय समय पर विभिन्न लेखकों द्वारा लिखे गये इस तरह के आलेख आते ही रहते हैं और उन पर विभिन्न टिप्पणियाँ भी होती हैं।अनेक सुझाव भी दिये जाते हैं,पर इसके कारणों की ओर कोई ध्यान नहीं देता. क्या कारण है कि जिस देश में वृद्धों की सेवा करना परम कर्तव्य माना जाता था,माता पिता के चरणों में स्वर्ग माना जाता था,वहीं आज वृद्ध दुरावस्था को प्राप्त हैं।आखिर यह गल्ती कहा से आरम्भ हुई? क्या इस पर किसीने शोध किया?यह परिवर्तन एक दिन में तो नहीं आया होगा?अगर मैं कहूँ ,कि इसका कारण् भी भ्रष्टाचार है ,तो आपलोग हँसेंगे ही न।पर बहुत हद तक वास्तविकता यही है।

  3. वह अकेला है ,
    और जैसे चित्कार रहा है ,
    क्या यही समाज है ,
    क्या यही अपने है ,
    क्या यही लोग है जिनके लिये उसने कभी गम उठाए थे ,
    क्या यही लोग है जिनके लिये उसने कभी धक्के खाए थे ,
    अगर हाँ ,
    तो उस वृद्ध की कराह हमारी आत्मा को जगाती है,
    हमारे खून पर लांछन लगाती है ,
    हमें कर्तव्य बोध करती है ,
    और इस समाज पर प्रश्नवाचक चिन्ह बन ,
    हमें शर्मसार कर जाती है ।

    • कुमार विमल , क्या आपने यह जानने का प्रयत्न किया किया कि आज के वृद्धों ने अपने युवावस्था में बुजुर्गों के साथ क्या व्यवहार किया था?

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