हरियाणा विधान सभा भंग,फिर जनकोष से सरकार का ढिंढोरा क्यों?

haryanaहमारे देश में कानून और परम्पराओं के नाम पर मात्र एक ढकोसला है, अजीब गोरखधंधा। जो हमारे राजनीतिज्ञों को ठीक बैठता है, वही है कानून और वही है परम्परा।

अपना कार्यकाल पूरा कर लेने से पूर्व विधान सभा या लोक सभा को भंग करने का प्रावधान हमारे संविधान में नहीं है। पर अपनी राजनैतिक व चुनावी सहूलियत के लिये हम ने इस ब्रितानन्वी परम्परा को अपना लिया हांलांकि हम उनकी अनेक अन्य परम्पराओं को या तो मानते नहीं या फिर अपनी संकीर्ण राजनैतिक स्वार्थप्राति के लिये अपना कर अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं।

इसी का उदाहरण दिया हाल ही में हरियाणा के मुख्यमन्त्री श्री भूपिन्द्र सिंह हुड्डा ने विधान सभा का कार्यकाल पूरा होने से लगभग पांच मास पूर्व ही उसे भंग कर चुनाव करवाने का निर्णय लेकर। जनादेश पुन: प्राप्त कर लेना तो एक लोकतन्त्रीय व्यवस्था है पर किसी सत्ताधारी राजनैतिक दल द्वारा मात्र चुनावी स्वार्थ पूरा करने केलिये समय से पूर्व इस का प्रयोग करना जनता के खज़ाने का सदुपयोग नहीं कहा जा सकता। इस में जनहित का ढिंढोरा तो अवश्य पीटा जाता है पर होता नहीं।

यह तो सत्ताधारी दल की हेकड़ी होती है कि पिछले जनादेश की अनदेखी कर जनता को समय से पूर्व एक बार फिर चुनाव की प्रक्रिया में धकेल दे और जनता पर चुनाव का अनावश्यक खर्च थोंप दे। इस परिहार्य व्यय से लाखों गरीबों को रोटी-कपड़ा-मकान मुहैया करवाने के लिये सदुपयोग किया जा सकता है। पर ब्रितान्वी परम्परा की भौंड़ी नकल के नाम पर यह जनता पर तानाशाही फरमान है।

हरियाणा में तो केवल कुछ मास पहले ही चुनाव करवाये जा रहे हैं। देश में तो उदाहरण हैं जब सत्ताधारी दल ने वर्तमान राजनैतिक स्थिति का लाभ उठाने के लिये समय से दो-दो वर्ष पूर्व ही चुनाव करवा दिये हैं। जनता तो किसी भी विधान सभा या लोक सभा को संविधान में प्रावधान के अनुसार पांच वर्ष के लिये ही चुनाव करती है। पर यह तो सत्ताधारी दल की हेकड़ी होती है कि पिछले जनादेश की अनदेखी कर जनता को समय से पूर्व एक बार फिर चुनाव की प्रक्रिया में धकेल दे और जनता पर चुनाव का अनावश्यक खर्च थोंप दे। इस परिहार्य व्यय से लाखों गरीबों को रोटी-कपड़ा-मकान मुहैया करवाने के लिये सदुपयोग किया जा सकता है। पर ब्रितान्वी परम्परा की भौंड़ी नकल के नाम पर यह जनता पर तानाशाही फरमान है।

बात यहीं खत्म नहीं होती। जनता के खून-पसीने की कमाई का जनहित में उपयोग न कर अपनी सरकार की सच्ची-झूठी उपलब्धियों के बखान पर बेरहमी से लुटाया जाता है। यही आजकल हरियाणा में हो रहा है।

हरियाणा विधान सभा 21 अगस्त को भंग कर दी गई। नैतिकता का तकाज़ा तो यह है कि उसी दिन से सत्ताधारी सरकार भी भंग हो गई मानी जाती क्योंकि हुड्डा सरकार सत्ता में इसलिये थी कि विधान सभा में उसे बहुमत प्राप्त था। पर जब जिस संवैधानिक आधार पर हुड्डा सरकार सत्ता में आई वह ही खत्म हो गया तो सरकार कैसे बच गई? स्पष्ट है कि जब विधान सभा नहीं है तो सरकार भी नहीं है। इसलिये होना तो यह चाहिये कि जब कोई सत्ताधारी पार्टी समय से पूर्व स्वयं विधान सभा भंग करवा कर चुनाव करवाती है तो उस सरकार को भी उसी समय पदच्युत हो जाना चाहिये और राष्ट्रपति शासन लागू हो जाना चाहिये। इसी आधार पर उस सरकार को न तो कोई नीतिगत निर्णय लेने का कानूनी या नैतिक अधिकार होना चाहिये और न ही उसे किसी प्रकार सरकारी खर्च पर अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा ही पीटने का अधिकार। वस्तुत: जिस क्षण से विधान सभा भंग हो जाती है उसी समय से एक प्रकार से आर्दश चुनाव आचार संहिता लागू मानी जानी चाहिये क्योंकि विधान सभा भंग होने के बाद तो स्वत: ही चुनाव प्रक्रिया चालू हो ही जाती है।

किसी निर्वाचित विधान सभा या लोक सभा के कार्यकाल के पूरा होने के दो-तीन मास पूर्व ही चुनाव आयोग हरकत में आता है और चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर आचार संहिता लागू कर देता है हालांकि अभी वह विधान सभा या लोक सभा जीवित होती है। पर यह अजीब विडम्बना है कि विधान सभा के भंग हो जाने के बाद भी सरकार भी बनी रहती है और वह जनता के खज़ाने का अपने चुनावी स्वार्थ केलिये दुरूप्योंग भी करती जाती है। पिछले एक सप्ताह से हरियाणा सरकार प्रिन्ट व इलैक्ट्रानिक चॅनलों के माध्यम से सत्ताधारी दल का चुनावी अभियान चलाये हुये है।

क्या जनता और चुनाव आयोग इस अशोभनीय हरकत की ओर ध्यान देगा? 

-अम्‍बा चरण वशिष्‍ठ

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  1. मीडिया को विज्ञापन की मोटी राशि रूपी हड्डी मिल रही है, उसे सलमान और राखी सावन्त से ही फ़ुर्सत नहीं है, जबकि नवीन चावला एक वफ़ादार कांग्रेसी की भूमिका में हैं…

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