-नरेन्द्र मोदी की स्वीकार्यता का नया शिखर-
भारत के मतदाता इन दिनों जनतंत्र के चुनाव महोत्सव में मशगूल हैं। 16वीं लोकसभा के चुनाव में जनता में इतनी उत्सुकता और बदलाव की चाहत कभी नहीं देखी गई, जितनी नौ चरणों वाले मतदान के दौर में जनता में परिलक्षित हो रही है। राजनेताओं का आरोप है कि चुनाव व्यक्ति केंद्रित हो गया है। लेकिन सच्चाई यह है कि सोनिया गांधी ने गुजरात विधानसभा के चुनाव में जिस शख्स को मौत का सौदागर कहकर नफरत की चिंगारी सुलगायी थी। आज वही व्यक्ति देश की जनता की आंखों का तारा बन गया है। कहते हैं कि सूरज की प्रथम राशि अरूणाचल और सात बहनों के प्रदेशों में दिखाई देती है। इस चुनाव में वहीं से परिवर्तन की बयार शुरू हुई और उस परिवर्तन की हवा ने नरेन्द्र मोदी का एक नायक के रूप में प्रस्तुत कर दिया है। बदलाव की सुनामी ने गैर भारतीय जनता दलों को जहां मोदी का मुकाबला करने के लिए एक छत्र के नीचे आने की सोच दी है। वहीं कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता के बजाय साम्प्रदायिकता की और नरेन्द्र मोदी धर्म निरपेक्षता के प्रतीक के रूप में नजर आ रहे हैं। राहुल गांधी देश में मेहनतकश और गरीबों की खेाज करते ढूंढ़ रहे हैं और पूरी रोटी का भरोसा दे रहे हैं। लेकिन उनके पास इस बात को कोई जवाब नहीं है कि आजादी के बाद कांग्रेस ने जिस दुख दैन्य और गरीबी के उन्मूलन का वीड़ा उठाया, कसमें खाई तथा नारे परोसे वह 6 दशकों में कांग्रेस की सियासी कसरत बनकर क्यों ठहरी रही। जबकि देष के कुछ राज्यों में जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकारों को महज दस बरस बीते हैं, इस दिशा में बेहतर नतीजे दिखे हैं। यह निष्कर्ष किसी सियासी दल का नही केंद्र सरकार की ही मूल्यांकन एजेंसियों का है। जाहिर है कि कांग्रेस के सरोकार लगातार सिकुड़ते गये। आम आदमी उसका राडार पर सीजनल आब्जेक्ट बन कर रहा गया। कांग्रेस सुविधा भोगी बनकर लोकतंत्र को समृद्धि जुटाने का साधन मानकर आत्म मुग्ध हो गयी जिसने ऐसी हताशा को जन्म दिया कि आज देश में एक ही स्वर सुनाई देता है। कांग्रेस को हटाओ देश को बचाओ और सशक्त विकल्प पेश करों। भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जन-जन की आशाओं का केंद्र बनकर उभरी है। 16वीं लोकसभा के चुनाव में गैर भारतीय जनता दल साम्प्रदायिकता का उभारकर खौफ पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी का जितना हौआ खड़ा किया जनता ने उतनी ही उसकी विचारधारा और उसके प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के बारे में उत्सुकता जताई है। इसका नतीजा उल्टा हुआ। जनता में नया विष्वास जगा है कि गुजरात को 2002 के दंगों से नहीं आंका जा सकता है। आज गुजरात में सभी वर्गों के साथ सलूक, जन-जन की समृद्धि और 12 वर्षों के दंगा रहित प्रशासन से जाना जाने लगा है। वहीं इस चुनाव में सबसे बड़ा दारोमदार नवमतदाताओं के मतदान का होने जा रहा है जिन्हें साम्प्रदायिकता और धर्म निरेपक्षता की बहस से नहीं। आने वालीे दिनों में रोजगार, शिक्षा, विकास से सरोकार है जिसका प्रतिनिधित्व नरेंद्र मोदी की दिशा और नेतृत्व आश्वस्त करता है। उनका यह आह्वान कि देश की जनता ने 60 साल कांग्रेस को दिये अगले पांच वर्ष नरेंद्र मोदी को भी परखकर देखें जनता के गले उतर चुका है। नफरत के सिक्कों का यदि इस चुनाव में चलन बंद होता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
भारत में राजनीति मुद्दों और विचारधारा को लेकर आरंभ हुई है और सही मात्रा में देखा जाये तो आज वैचारिक आधार भूमि जब अन्य दलों ने गंवा दी है, भारतीय जनता पार्टी देश का एक मात्र दल है जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, सबकी तरक्की और अन्त्योदय को समाहित करते हुए सबको न्याय का लक्ष्य लेकर बढ़ रहा है। कांग्रेस सिर्फ कलेवर से नहीं बंटी, उसकी विचारधारा का भी लगातार क्षरण हुआ है। जहां तक व्यक्ति केंद्रित राजनीति का प्रश्न है, राजनैतिक विश्लेषेक मानते हैं कि व्यक्ति पूजक दल कांग्रेस ही रहा है। जहां पं. नेहरू को अप्रतिम माना गया। बाद में इंदिरा गांधी गद्दी नसीन हुईं। परम्परा जारी है यह एक शोध का विषय है कि जब पं. जवाहरलाल का विकल्प कौन सवाल आया है। पं. अटलबिहारी वाजपेयी की प्रतिभा को परखा गया, तराशा गया और मैदान में उनका व्यक्तित्व सामने आया। आज देश की आवश्यकता बनकर नरेंद्र मोदी यदि चुनाव का मुद्दा बन चुके हैं और जन आकांक्षाओं का केंद्र है तो इसे राष्ट्रीय अपरिहार्यता के अलावा क्या कहा जा सकता है। नरेन्द्र मोदी के समर्थन में यह कोई प्रायोजित अभियान नहीं है।
बल्कि कांग्रेस की निष्क्रियता, यूपीए सरकार की जन विरोधी नीतियों, यूपीए सरकार में सत्ता भोग बिना जवाबदेही के विरूद्ध खुला विद्रोह, जन सत्याग्रह है। 2014 के लोकसभा चुनाव 1971 की तर्ज पर बढ़ते आगे जा पहुंचे हैं। जब इंदिरा गांधी देष में आषा का केंद्र, चुनाव का मुद्दा बन गई थी। जिस तरह 1977 के चुनाव में राष्ट्र कांग्रेस की तानाशाही के विरोध में खड़ा हो गया था और परिवर्तन की सुनामी ने उत्तर भारत में कांग्रेस सूपड़ा साफ कर दिया था। लोकनायक के प्रतिनिधि शासन की मांग थी। आज लगता है उसकी पुनरावृत्ति हो रही है। इसमें एक बात ओर विलक्षण हुई है कि 1977 के चुनाव में दक्षिण भारत के कांग्रेस के लिए अभयारण्य बन गया था, लेकिन इस बार परिवर्तन की लहर ने दक्षिण भारत को भी नमो-नमो के राग से गुंजायमान कर दिया है। इसी का नतीजा है कि लोकसभा चुनाव में 543 में से 501 सीटों पर मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों का कांग्रेस समेत क्षेत्रीय दलों के बीच सिमट गया है।
लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रति लगातार सेकुलरवाद की चासनी से जुड़े नेताओं का खिंचाव, जनता की पसंदगी और नरेन्द्र मोदी की स्वीकार्यता के पीछे एक नहीं अनेक कारण है और यह सिलसिला एक दिन की परिणति भी नहीं है। दरअसल, हमें इसके लिए देश के हालात पर पीछे मुड़कर गौर करना पड़ेगा 2009 में जब यूपीए सरकार का दूसरा सत्तारोहण हुआ था और केंद्र सरकार में निरंकुशता, जनविरोधी नीतियों का धड़ाधड़ प्रचलन, बेलगाम भ्रष्टाचार का चलन आरंभ हुआ। देश की जनता चौक उठी और उसने इसे बेदखल करने का मन बना लिया था। नरेंद्र मोदी के खिलाफ जैसे-जैसे कांग्रेस और सहयोगियों के हमले तेज हुए जनता ने संमीक्षा का दौर आंरभ कर पाया कि देश को विकास चाहिए। युवकों को रोजगार जिस व्यक्ति को अपराधी के रूप में चिन्हित किया जा रहा है उसका रिकार्ड एक विकास पुरूष के रूप में सामने आता है। लोगों ने देखा कि नरेंद्र मोदी में सकारात्मकता है। विकास की पहल है, आरोप लगाने वाले विकास के मुद्दे से फिसल रहे हैं। साम्प्रदायिकता और सेकुलरिज्म की बात कह कर देष को गुमराह कर रहे हैं। देश में नफरत की फसल उगाने वाले न्यायालय द्वारा दी गयी क्लीन चिट की बेकदरी कर रहे हैं। इसका कारण सिर्फ विकास के बारे में अनास्था पैदा करना है। देश को इस हताशा, अनास्था के भंवर से निकालने वाला व्यक्ति ही चलेगा। विकास के मुद्दे के संवाहक नरेंद्र मोदी पर जितने प्रहार हुए उन प्रहारों ने न केवल उसकी स्वीकार्यता का विस्तार किया, अपितु उसका सशक्तिकरण किया। उसकी कथनी और करनी पर जन-जन की निगाह तेज हुई और उसके पौरूष, क्षमता का प्रगटीकरण होने के साथ सत्यापन होता गया। नरेंद्र मोदी देश की जनता की आस्था का केंद्र बन गया। नरेंद्र मोदी के लिये आज सबसे अधिक अनुकूलता में विधाता ने भी जो विशेष अनुग्रह किया है वह अकस्मात नहीं है। पिछले बारह वर्षों से यह व्यक्ति कांग्रेस और सेकुलर ब्रिगेड के निशाने पर रहा है। उसकी बढ़ती विश्वसनीयता के प्रति अनास्था पैदा करने के लिये जितने हथकंडे अपनाये गये, वे सिर्फ नाकाम ही नहीं हुए, अपितु उन्होंने मोदी के प्रति जनता का विश्वास बढ़ाया है, उसे देश का महानायक बना दिया है। लोकसभा चुनाव 2014 में विकास, सुशासन का मुद्दा जनता के सिर पर चढ़कर बोल रहा है और इसके लिये सशक्त विकल्प भारतीय जनता पार्टी जनता के सामने दिखायी दे रही है। नरेंद्र मोदी ही जनता के विकास और सुशासन के संवाहक के रूप में जन-जन की जवान पर है। जनता देख चुकी है कि सेकुलरवार का झंडा लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मजहब के नाम पर ईमाम से वोटों का धु्रवीकरण करने की गुहार लगा रही है। कांग्रेस का चरित्र और असलियत खुलकर सामने आ गयी है। विजय विकास और सुशासन के नाम दर्ज हो चुकी है।