नफरत की राजनीति बनाम विकास पुरुष

-गुंजेश गौतम झा- narendra-modi

नरेन्द्र मोदी को लेकर सेक्यूलर मीडिया का एक बड़ा वर्ग लगातार दुष्प्रचार करता आ रहा है। विडम्बना यह है कि जिस घटना को बीते हुए बारह वर्ष से अधिक हो गए हैं, जिसे भूलकर समाज के सभी अंग (हिन्दू, मुस्लिम एवं अन्य सभी) लगातार प्रगति और खुशहाली की राह पर अग्रसर हैं, जिस मामले में माननीय ‘उच्च-न्यायालय’ ने नरेन्द्र मोदी को ‘क्लीन-चीट’ दे दी हो, उस गुजरात दंगे को सेकुलर मीडिया और स्वयंभू मानवाधिकार संगठन भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी की छवि कलंकित करने के लिए हर मौके पर उछालते आए हैं।

 

देश के अन्य भागों की तरह गुजरात का इतिहास सांप्रदायिक दंगों का साक्षी रहा है। लंबे समय तक यहां कांग्रेस का राजपाट रहा और वह सांप्रदायिक खाई को भुनाती रही। आज जबकि पिछले 12 वर्षों से अधिक से गुजरात में एक भी दंगा नहीं हुआ, कहीं सांप्रदायिक तनाव पैदा होने पर कर्फ्यू लगाने की नौबत नहीं आई, बहुसंख्यकों के साथ खड़े होकर अल्पसंख्यक अपना कारोबार चला रहे हैं तो सेकुलर मीडिया में गुजरात की छवि ऐसी परोसी जा रही है, मानों गुजरात में अल्पसंख्यक आतंक के साए में जी रहे हों और गुजरात का सरकारी तंत्र हर मौके पर उनके उत्पीड़न में लगा हो।

यह कैसी मानसिकता है? नफरत की आग सुलगाए रख सेक्यूलरिस्ट भले ही मुस्लिम समाज का भयादोहन करना चाहें, किंतु हकीकत यह है कि मोदी सरकार के नेतृत्व में गुजरात विकास के जिस सोपान पर खड़ा है, उसमें हिन्दू-मुसलमान बराबर के भागीदार हैं। ‘सबका साथ, सबका विकास’ का लक्ष्य रख नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात जिस तेजी से विकास कर रहा है, वस्तुतः वही ‘वोट बैंक की दुकानदारी’ चलाने वाले सेक्यूलरिस्टों की चिंता का सबसे बड़ा कारण है। दो वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में आचार संहिता का भी उल्लंघन करते हुए कांग्रेस ने मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए सच्चर आयोग और आरक्षण का झुनझुना थमाने का अथक प्रयास किया। यहां प्रश्न उठता है कि देश में आजादी के करीब 40 से 45 सालों तक केंद्र और अधिकांश राज्यों में कांग्रेस का एकछत्र राज रहा है। तब मुसलमानों की हालत मे सुधार क्यों नहीं हुआ? क्यों वे विकास से वंचित रखे गए? इस प्रश्न का उत्तर अवश्य ढूंढ़ने का प्रयास करना चाहिए।

नरेन्द्र मोदी पर अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का आरोप सेकुलर मीडिया का तकियाकलाम बन गया है। लेकिन वास्तविकता क्या है? मुसलमानों की वास्तविक स्थिति का अध्ययन और उनके उत्थान की राह तलाशने के लिए गठित किए गए सच्चर आयोग ने तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर यह बताया है कि गुजरात के मुसलमानों की स्थिति अन्य राज्यों के मुसलमानों की अपेक्षा अधिक बेहतर है। गुजरात के मुसलमानों की प्रति व्यक्ति आय 875 रूपए है। इसके बाद कर्नाटक में स्थिति बेहतर है, जहां यह अनुपात 785 रूपए है। जब यह रिपोर्ट आई थी उस समय इन दोनों ही राज्यों में सांप्रदायिक भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी।

कांग्रेस और माक्र्सवादी मुसलमानों के सबसे बड़े शुभचिंतक होने का दावा करते हैं। पश्चिम-बंगाल में, जहां कल तक माक्र्सवादियों का लंबा राजपाट था, मुसलमानों की प्रति व्यक्ति आय मात्र 748 रूपए है। उत्तर प्रदेश तो भिन्न-भिन्न सेकुलर दलों का राजभोग चुका है। यहां यह अनुपात केवल 662 रूपए है।

मुसलमानों की सरकारी नौकरियों में भागीदारी के मामले में भी गुजरात सबसे आगे है। गुजरात में मुसलमानों की आबादी 9.1 प्रतिशत है, किंतु सरकारी नौकरियों में उनकी भागीदारी 5.4 प्रतिशत है। पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी 25.2 प्रतिशत है, किन्तु सरकारी नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी केवल 2.1 प्रतिशत है। उत्तर-प्रदेश में 18.5 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम समुदाय की सरकारी नौकरियों में भागीदारी 5.1 फीसदी है। महाराष्ट्र में मुसलमानों की आबादी 10.6 प्रतिशत है, किंतु सरकारी नौकरी में उनका अनुपात 4.4 फीसदी है। दिल्ली में लगातार तीन बार कांग्रेस की सरकार रही, तथा चैथी बार कांग्रेस समर्थित अरविंद केजरीवाल की सरकार, किंतु 11.7 फीसदी मुस्लिम आबादी वाली दिल्ली की सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की भागीदारी केवल 3.2 प्रतिशत ही है।

इसलिए गुजरात के विकास में मुसलमानों का भी बराबर का योगदान है और यह तभी संभव हो पाया है, जब नरेन्द्र मोदी ने समाज में नफ़रत के बीज बोकर वोटों की कमाई करने की बजाय अपना सारा श्रम गुजरात को विकास के पथ पर लाने में लगाया तथा यह दिखा दिया कि यदि दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो दस सालों में राज्य की सूरत कैसे बदली जा सकती है, इसका प्रमाण और मापदंड आज गुजरात ही हो सकता है।

हिंसा के लिए किसी भी सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिए। नरेन्द्र मोदी पर दंगों को समर्थन देने का सेक्यूलर आरोप बिल्कुल निराधार है। गुजरात सरकार ने समय रहते दंगों पर काबू पाने का प्रयास किया और जांच के बाद कसूरवारों को दंडित करने की पहल की, किंतु सेक्यूलरिस्टों ने न्यायिक प्रक्रिया को पटरी से उतारने के लिए कुतर्कों की झड़ी लगा दी। पहले तो गोधरा नरसंहार को पूर्व नियोजित साजिश मानने से इन्कार किया गया। फिर पीड़ितों के जख्म पर मलहम लगाने की जगह सेक्यूलरिस्टों व मीडिया के बड़े वर्ग ने उनके घाव कुरेदने का घृणित काम किया। 2002 के दंगों में सेक्यूलरिस्टों के हिंदू द्रोह भाव ने आग में घी डालने का काम किया था।

माननीय ‘उच्च-न्यायालय’ द्वारा नरेन्द्र मोदी को ‘क्लीन-चीट’ दिए जाने के बाद क्या छह धर्मनिरपेक्षतावादियों, मानवाधिकारवादियों में अपने इस गुनाह को स्वीकार करने का साहस है, अथवा उन्हें न्यायालय के इस निर्णय पर भी भरोसा नहीं है? ऐसा भी नहीं है कि 2002 के गुजरात दंगों से पूर्व प्रदेश में कभी दंगे हुए ही नहीं। सच्चाई तो यह है कि कांग्रेसी मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के जमाने में तो सांप्रदायिक तनाव का यह आलम था कि प्रायः रोज ही कहीं न कहीं कर्फ्यू लगाने की स्थिति रहती थी। 1969 का अहमदाबाद दंगा जानमाल के नुकसान की दृष्टि से भयावह था। 1964 के कोलकाता दंगे, 1989 में भागलपुर दंगा और 1993 में मुंबई के दंगे इस देश देश के इतिहास में बदनुमा दाग है।

1984 के सिख नरसंहार को सरकारी तंत्र का खुला समर्थन प्राप्त था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था, ‘‘जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है।’’ पिछले लगभग दो साल में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल में 130 से ज्यादा दंगे हुए हैं। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे की आग तो अभी ठंडी भी नहीं हुई है। सेक्यूलर मीडिया इन बातों को बिसार चुका है, किंतु पिछले 12 सालों से उसने गुजरात दंगों की लौ जला रखी है। आखिर क्यों?

‘गोधरा संहार’ के पश्चात भड़के दंगों के बाद हुए गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को दो-तिहाई बहुमत से अधिक अंतर के साथ जीत हासिल हुई थी। मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक की राजनीति करने की बजाय विकास पर अपना ध्यान केंद्रित किया और उसके परिणामस्वरूप ही गुजरात का कायाकल्प संभव हो पाया है। देशी-विदेशी निवेश के लिए गुजरात को सर्वाधिक सुरक्षित प्रांत माना जा रहा है। विकास की सभी मानकों पर आज गुजरात अन्य राज्यों से आगे है।

सेक्यूलरिस्ट ‘गोधरा संहार’ को गौण कर और गुजरात दंगों का अतिरंजित चित्रण कर देश-विदेश में गुजरात का नाम धुमिल करते आए हैं, जिसे गुजरात की जनता स्वयं नकारती आ रही है। मोदी सरकार पर जनता का अटूट विश्वास तथा संपूर्ण भारतवर्ष में नरेन्द्र मोदी की रैलियों में उमड़ने वाला जनसमुद्र इसका प्रमाण है।

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