बड़ी खबर तो यह थी कि 10 विधानसभा और एक लोकसभा सीट के चुनाव-परिणाम पर मैं आज लिखता, जिसमें भाजपा ने अपना रुतबा कायम किया, कांग्रेस का सिर थोड़ा ऊपर उठा और ‘आप’ तथा माकपा ने मुंह की खाई लेकिन इससे भी बड़ी खबर मुझे वह लगी, जिसमें मुंबई की प्रसिद्ध हाजी अली दरगाह के रखवालों ने आगे होकर अपने अवैध कब्जे को हटाने का वादा किया। मुझे यह खबर चुनाव-परिणामों की खबर से ज्यादा बड़ी इसलिए लगी कि भारत में मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, गिरजों वगैरह को हम हमेशा कानून से ऊपर समझते हैं। जिसकी जहां मर्जी होती है, वहां वह अपना पूजा-स्थल खड़ा कर लेता है।
उसे किसी सरकारी अनुमति की जरुरत नहीं होती। उसे इसकी परवाह भी नहीं होती कि सड़क रुक जाएगी, मोहल्ले का माहौल दमघोंटू हो जाएगा, आस-पास रहनेवालों का जीना हराम हो जाएगा। पुलिस और अदालत की क्या मजाल है कि वे अवैध पूजा-स्थल को हटाने की कोशिश करें। यही हाल हम मथुरा, वृंदावन और वाराणसी में देखते हैं। दिल्ली की जामा मस्जिद के पास भी देखते हैं। मंदिरों और मस्जिदों के आस-पास भी लोगों ने मकानों और दुकानों का अंबार लगा रखा है। हाजी अली की दरगाह पर भी साल भर में लाखों लोग श्रद्धापूर्वक जाते हैं लेकिन उसके रास्ते सिकुड़ गए हैं, गंदगी से लबालब हैं और दुकानों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है।
1931 में दरगाह ट्रस्ट को 171 वर्ग मीटर जगह मस्जिद के लिए दी गई थी लेकिन प्रबंधकों ने 908 वर्ग मीटर जगह घेर ली। मुंबई की नगर निगम ने मुकदमा चलाया तो मुंबई उच्च न्यायालय ने मस्जिद और दुकानों को सारे इलाके से हटाने के आदेश जारी कर दिए लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे संकेत दिए कि यदि सारे अवैध कब्जे को ट्रस्ट हटा ले तो मस्जिद बच सकती है। ट्रस्ट ने आगे होकर कहा कि वह 737 वर्ग मीटर जमीन पर बने सारे अवैध निर्माणों को खुद खत्म करेगा।
ट्रस्ट के इस फैसले का अदालत ने दिल खोलकर स्वागत किया और देश के सभी धार्मिक संगठनों से आशा की कि वे भी हाजी अली मस्जिद के प्रबंधकों ने जैसी आदर्श पहल की है, वैसी ही करें। सर्वोच्च न्यायालय के इस संकेत को अपना मार्गदर्शक मान लिया जाए तो धार्मिक स्थलों के नाम पर होनेवाले अवैध कब्जे तो रुकेंगे ही, कई स्थानों पर चल रहे मंदिर-ओ-मस्जिद के झगड़े भी सुलझ जाएंगे।