राहुल तू निर्णय कर इसका…

शिकारी ने अपना तीर छोड़ा और तीर ने एक पक्षी को घायल कर दिया। घायल पक्षी जीवन रक्षा के लिए सिद्घार्थ की ओर दौड़ा। सिद्घार्थ ने पक्षी को गोद में उठा लिया और उसकी वेदना के साथ अपनी संवेदना को मिला कर उसे प्यार से सहलाने लगे। पक्षी शांत होकर गहरी गहरी सांसें ले रहा था मानो अपने जीवन की रक्षा की अंतिम पुकार उसकी हर सांस कर रही थी। तभी वहां शिकारी आ जाता है। वह सिद्घार्थ से अपना शिकार मांगता है। सिद्घार्थ शरणागत की प्राण रक्षा करना अपना दायित्व मानते हैं, अत: शिकार को पक्षी को देने से मना करते हैं।

एक दिन उनका बेटा राहुल अपनी रानी माता यशोधरा से कहानी सुनने की जिद करता है। इस जिद पर रानी उसे यही काहनी सुनाने लगती है। मैथिलीशरण गुप्त ने इस प्रसंग को बड़े भावपूर्ण ढंग से मां बेटे के संवाद में बांधने का प्रयास करते हुए कहा है :-

राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?

कह दे निर्भय जप हो जिसका, सुन लूं तेरी बानी।

मां मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी। राहुल ने कहा-

कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य उसे न उबारे?

रक्षक पर भक्षक को वारे न्याय दया का दानी।।

न्याय दया का दानी-तूने गुनी कहानी। न्याय दया का दानी मानकर राहुल ने सिद्घ कर दिया कि उसने कहानी को गुन लिया था।

आज भी देश में एक राहुल है। वह भी कहानी सुनना चाहता है, पर दुख की बात है कि उसकी महारानी मां विदेशी है। वह भारत की कहानी नही जानती। हो सकता है कि वह भारत को मानती हो पर पहचानती नही है। इसलिए आसाम में हुए दंगों के सच के बारे में इस आज के युवराज राहुल को कोई कहानी सुनाने वाला नही है। इसने भी अपनी मां से जिद की—

कह मां कह लेटी ही लेटी

राजा था या रानी, मां कह एक कहानी।

अत: सोनिया ने राहुल का संवाद सीधे भारत मां से करा दिया। भारत मां ने राहुल को बताया—-वत्स बात 1941 की है। मेरा कलेजा काटकर अलग राष्ट्र बनाने की तैयारी जब जोरों पर चल रही थी। साम्प्रदायिक आधार पर 1905 में बंग भंग किया गया। 1911 में श्रीलंका को अलग कर दिया गया और 1925 में बम्बई (हिंदु बहुल प्रांत) से सिंध मुस्लिम बहुल प्रांत को अलग कर दिया गया तो 1935 में बर्मा को मुझसे अलग कर दिया गया था। मैं अपने घावों को अभी सहला ही रही थी कि पाकिस्तान के नाम पर एक और अप्राकृतिक और अस्वाभाविक विभाजन की मांग मेरी छाती पर उठने लगी थी। मेरी करूण वेदना बढ़ती ही जा रही थी। दूर दूर तक कोई मेरी चीख को सुनने वाला नही दीख रहा था। तभी 1941 में मुस्लिम लीग ने पूर्वी बंगाल से मुस्लिमों को निकाल निकाल कर आसाम में बसाना आरंभ कर दिया ताकि उस प्रांत के जनसांख्यिकीय संतुलन को बिगाड़ा जा सके और कभी विभाजन के समय आवश्यकता पड़ी तो कहा जा सके कि हमारा विस्तार अमुक अमुक स्थानों तक है। तब मेरे एक तप:पूत क्रांतिवीर सावरकर ने मेरी पीड़ा को समझा और उसने मुस्लिम लीग की इस योजना का विरोध किया। उसने कहा था-यदि आसाम में मुसलमानों की संख्या बढ़ जाने दी तो भविष्य में देश के लिए यह भारी संकट सिद्घ होगा। मुसलमान हिंदुओं को भगाकर नये अस्तित्व का निर्माण करने का षडयंत्र रचेंगे। उस समय मेरे इस तप:पूत की इस धारणा को तुम्हारे पिता राजीव के नाना पंडित जवाहर लाल नेहरू ने यूं कहकर उपेक्षित करने का प्रयास किया था-आसाम में जगह खाली पड़ी है। मुसलमान वहां जाकर बस रहे हैं। प्रकृति नही चाहती कि कही रिक्त जगह पड़ी रह जाए। तब सावरकर ने पुन: तुम्हारे उस बुजुर्ग को समझाते हुए कहा था-जवाहर लाल नेहरू न तो दार्शनिक हैं और न शास्त्रज्ञ। उन्हें मालूम नही कि प्रकृति बलात घुस आयी विषाक्त वायु को दूर हटाना चाहती है। बाद में 1947 में मेरे पुन: किये गये विभाजन के समय सावरकर की सूझबूझ से आसाम प्रांत भारत में रह तो गया परंतु 1941 से ही यहां जाकर बसे मुसलमान निरंतर पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से स्वजातीय लोगों को अपनी ओर खींचते ला रहे हैं। तुम्हारी दादी ने अपने शासनकाल में बांग्लादेश को अलग राष्ट्र की मान्यता दी। लेकिन यह अलग बना मुस्लिम राष्ट्र मेरे लिये और भी अधिक पीड़ा दायक सिद्घ हुआ। इससे अवैध घुसपैठियों की समस्या अनवरत बनी रही। कारवां आते गये और दर्द बढ़ता गया।

वत्स, 1871 में बंगाल में हिंदुओं की संख्या 170 लाख और मुस्लिमों की संख्या 65 लाख थी परंतु 1901 तक आते आते अगले तीस वर्षों में यह स्थिति बिगड़ गयी, तब मुसलमान 200 लाख हो गये और हिंदू 170 से 180 लाख ही हो पाये। इसलिए इनकी अधिकता ने तुरंत विभाजन की प्रक्रिया को जन्म दे दिया। फलत: बंग भंग का खेल लॉर्ड कर्जन के द्वारा साम्प्रदायिक आधार पर खेला गया। पुत्र, धर्मांतरण से मर्मांतरण होता है, और मर्मांतरण से राष्ट्रांतरण होता है। इस राज को न तो तेरा बुजुर्ग नेहरू समझ पाया और न तेरी दादी इंदिरा गांधी समझ पायीं, तेरे पिता और तेरी माता की तो बात ही छोडिय़े और तू ठहरा एक छोटा सा बच्चा।

मुझे बहकाया गया कि खेल समझने के लिए पीछे मत देख। इतिहास का पोस्टमार्टम करने की मूर्खता मत कर। परंतु मैं क्या करूं, बेटे मेरे पास ही नही सबके पास इतिहास इसलिए होता है कि उसका समय समय पर परीक्षण किया जाता रहे और उसके पन्नों पर दर्ज गलतियों से वर्तमान को सुधारने संवारने और संभालने का कार्य किया जाता रहे, यहां के लोग इतिहास के प्रति बड़ा उपेक्षाभाव रखते हैं। इस प्रांत बंगाल के पड़ोस में कभी अंग देश था, तो यह बंगाल तब बंग देश था। यह अंग देश वही प्रांत था जहां का राजा दुर्योधन ने अपने मित्र कर्ण को बनाया था। कालांतर में यह बंग देश मुस्लिमों के आधिपत्य में आ गया। नवाब मुस्लिम था तो प्रज्ञा हिंदू थी। नवाब की बेटी एक हिंदू युवक से विवाह करना चाहती थी, नवाब को कोई संतान नही थी, इसलिए नवाब ने हिंदू युवक से कह दिया कि तुम हिंदू रहकर भी मेरी बेटी से विवाह कर सकते हो? युवक यद्यपि पूर्व से ही विवाहित था, इसलिए वह इस प्रस्ताव को ना चाहकर भी इससे सहमत हो गया। परंतु बुद्घि के मारे धार्मिक हिन्दू मठाधीशों ने उसे ऐसा करने की सलाह नही दी और उसे पूरी तरह अपमानित व उपेक्षित किया। तब वह युवक मुसलमान बना और उसने नवाब की बेटी से शादी कर हिंदुओं का कत्लेआम किया। इतिहास में यह युवक काला पहाड़ के नाम से जाना जाता है। आज का बांग्लादेश उसी काला पहाड़ के अपमान और उपेक्षा की परिणति है। लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पायी की जीती जागती बोलती मिसाल। वत्स, जिस देश के लोग और जिस देश का शासक वर्ग अपने अतीत से शिक्षा नही ले पाता है उसका हाल ऐसा ही होता है आज बांग्लादेश से मुसलमान यहां आसाम में आ रहे हैं, और धड़ाधड़ आते ही जा रहे हैं। जनसांख्यिकीय आंकड़े और संतुलन बड़ी तेजी से बिगड़ रहा है। नये राष्ट्र की मांग उठ रही है। ए.आई.यू.डी एफ नाम की एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी इन्ही बांग्लादेशी मुसलमानों की वोटों से शक्ति पाकर तुम्हारी लंगड़ी सरकार को केन्द्र में समर्थन दे रही है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के आधार कार्ड बनाने का काम पिछले दिनों रोकना पड़ गया था। क्योंकि ये लोग स्वयं को भारतीय नागरिक सिद्घ नही कर पाये थे। लेकिन यहां के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई कहते हैं कि आसाम मैं एक भी नागरिक बांग्लोदशी नही है। ऐसे छोटे नेताओं के छोटे बयानों ने सदा ही अलगाव वादी शक्तियों को बढ़ावा दिया है। जिसका परिणाम मुझे असीम वेदना के साथ झेलना पड़ा है। आज तुम्हारी सरकार के आंकड़े कह रहे हैं कि आसाम में 40 लोग मेरे हैं और 4 लाख लोग बेघर हो गये हैं। इन बेघरों को आजादी का 65वां जश्न क्या न्याय दिला पाएगा? कहानी सुनते सुनते नींद की झपकी ले रहे राहुल को मां भारती ने पकडक़र झकझोरते हुए कहा——

राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?

कह दे निर्भय जय हो जिसका, सुन लूं तेरी बानी?

तब नींद से ऊंघते आज के राहुल ने कहा– मां मेरी क्या बानी।

बेटे का उत्तर सुन मां पीड़ा से कराहकर रह गयी।

ना कहानी सुनी और नाही गुनी।

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

1 COMMENT

  1. इस राहुल मे न कहानी गुनने की बुद्धि है न माताश्री को को ई ज्ञान है।ये तो उनके चमचे हैं जो राहुल को
    युवराज बनाये हुए हैं माताश्री को राजमाता

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