सरफ़राज़ ख़ान
टाइप 2 डायबिटीज के शिकार लोगों में इंटेंसिव ड्रग थेरेपी से ”बैड” एलडीएल कोलेस्ट्रॉल स्तर में महत्वपूर्ण कमी के साथ ही नैक (गले की) कैरोटिड आर्टरीज की मोटाई में भी कमी होती है जिससे मस्तिश्क को ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है।
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल के मुताबिक़ ऑफ द अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि बैड एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को 80 एमजी फीसदी से कम रखने के लिए हर संभव प्रयास किये जाने चाहिए। द स्टौप अथीरोस्लेरोसिस नेटिव डायबिटिक्स स्टडी या एसएएनडीएस की पड़ताल में पाया गया कि एलडीएल कोलेस्ट्रॉल में कमी करके 70 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर या इससे कम हो जाए और नॉन एचडीएल कोलेस्ट्रॉल 100 एमजी/डीएल या इससे कम हो जाए बनाम इनके कम स्तर वालों से नुकसानपरक लिपिड से लेकर मानक लक्ष्य (जोकि 100 एमजी/डीएल या एलडीएल में कमी और नॉन एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल 130 एमजी/डीएल से कम) से तुलना की गई।
अध्ययन में टाइप 2 डायबिटीज वाले 427 अमेरिकियों को शामिल किया जो 40 या इससे अधिक उम्र के थे और इनका हार्ट अटैक या अन्य हार्ट सम्बंधी बीमारी का कोई पारिवारिक इतिहास नहीं था। इनमें से 204 लोग मानक उपचार समूह में रखे गए, जबकि 223 को तीक्ष्ण उपचार समूह में रखा गया। मानक समूह वालों में अल्ट्रासाउंड टेस्ट में दिखाया गया कि नेक आर्टरी थिकनेस बदतर हो गई या बढ़ गई और एग्रेसिव ट्रीटमेंट ग्रुप में यह समान डिग्री में ही निकल गई। इंटिमा मीडया थिकनेस नाम का टेस्ट ही कैरोटिड का एकमात्र उपाय है जिसकी लागत भी अधिक नहीं है जिससे हार्ट ब्लॉकेज या ष्रिकिंग अथवा कैरोटिड की थिकनेस के बढ़ने के बारे में जाना जा सकता है जिसका हार्ट आर्टरीज की थिकनिंग से सम्बंध होता है। (स्टार न्यूज़ एजेंसी)