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पराकाष्ठा - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
विजय निकोर आज जब दूर क्षितिज पर मेघों की परतें देखीं लगा मुझको कि कई जन्म-जन्मान्तर से तुम मेरे जीवन की दिव्य आद्यन्त "खोज" रही हो, अथवा, शायद तुमको भी लगता हो कि अपनी सांसों के तारों में कहीं, तुम्हीं मुझको खोज रही हो। कि जैसे कोई विशाल…