कैसे हुई थी हेमा के पिता की मौत

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 रामकृष्ण

सन् 1978 के मध्य में सुप्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी के पिता और भारतीय दर्शन के सुपरिचित अध्येता श्री वी.आर. चक्रवर्त्ती का जिस आकस्मिक और आश्चर्यपूर्ण तौर-तरीके से अवसान हुआ था उसकी तुलना भारतीय फ़िल्मों की किसी भी रहस्य और रोमांचपूर्ण पटकथा के साथ आसानी से की जा सकती है.

उस वर्ष 20 जुलाई के ब्राह्ममुहूर्त्त में श्री चक्रवर्त्ती बम्बई के अभिजातवर्गीय उपनगर जुहू-पार्ले में स्थित अपने विशाल वासस्थान में दिल के दौरे के कारण मृत पाये गये थे. मृत्यु के समय पुत्री हेमा मालिनी के अतिरिक्त पत्नी श्रीमती जया चक्रवर्त्ती भी वहां उपस्थित थीं. श्रीमती जया बासु चटर्जी निर्देशित स्वामी जैसी उत्कृष्ट फ़िल्म की निर्मात्री के रूप में पर्याप्त ख्याति अर्जित कर चुकी थीं.

कहा जाता है कि इस दुर्घटना के एक दिन पूर्व 19 जुलाई की शाम एक व्यक्ति ने श्री चक्रवर्त्ती से मिल कर उनकी पुत्री से भेंट करने की इच्छा व्यक्त की थी. उसने बताया था कि हेमा से मिलने मात्र के लिये वह पाकिस्तान से सीधा चला आ रहा है, और अपने मंतव्य में अगर उसे सफलता नहीं मिल पायी तो आत्महत्या करने के अतिरिक्त उसके समक्ष कोई दूसरा पर्याय नहीं बचेगा.

हेमा उस समय अपनी किसी फ़िल्म की शूटिंग के सिलसिले में बाहर गयी हुई थी, अतः श्री चक्रवर्त्ती ने उस व्यक्ति को यह कह कर वापस कर दिया कि हेमा के वापस लौटने पर ही उससे मुलाकात संभव हो पायेगी. बाद में घर के नौकरों से मालूम हुआ कि वह आदमी उस क्षेत्र का एक नामी गुंडा था और हेमा के घर में घुसने की कोशिश करते हुए इसके पहले भी एक बार उसे पुलिस के हवाले किया जा चुका था. चक्रवर्त्ती परिवार से निकट संबंध रखने वाले अन्यान्य व्यक्तियों के अनुसार किन्हीं विरोधी लोगों द्वारा उस व्यक्ति को हेमा का अपहरण करने के लिये नियुक्त किया गया था, और इस कार्य के लिये उसे प्रचुर धनराशि भी प्रदान की गयी थी.

चक्रवर्त्ती परिवार नित्य की तरह उस रात भी बारह बजे के आसपास शयन करने चला गया था. हेमा मालिनी भी तब तक घर वापस पहुंच चुकी थीं. रात में डेढ़ बजे के आसपास वह व्यक्ति फिर वहां आया. संयोग से घर का चौकीदार उस समय किंचित तन्द्रालीन हो गया था, अतः उस व्यक्ति को परिसर में घुसने में कोई दिक्कत नहीं हुई. घर के पीछे वाले हिस्से में अवस्थित रसोईघर के द्वार पर उसका सामना घर की एक नौकरानी से हुआ जो उस समय वहां सो रही थी. नौकरानी के चिल्लाने पर उस व्यक्ति ने अपने रामपुरी चाकू से उस पर वार किया, और कहा कि फ़ौरन से पेश्तर वह श्री चक्रवर्त्ती को वहां उपस्थित करे.

इस कोलाहल से जग कर क्षण भर में ही घर के सब लोग अपने अपने शयनकक्षों से बाहर निकल पड़े और उस स्थल पर एकत्र हो गये जहां वह व्यक्ति अपने लम्बे चाकू को खोल कर खड़ा हुआ था. हेमा भी वहां पहुंच गयी. हेमा को देखते ही उस व्यक्ति ने अपना चाकू फेंक दिया और एकटक उसकी ओर निहारने लगा.

उसके द्वारा चाकू फेंकते ही घर वालों ने उसे पकड़ लिया. इस बीच श्री चक्रवर्त्ती पुलिस को टेलिफ़ोन करने के इरादे से जैसे ही घर के ऊपर वाले हिस्से में पहुंचे उनको दिल का दौरा पड़ गया और डॉक्टरों के बुलाने के बावजूद सुबह चार बजे के आसपास उनकी मृत्यु हो गयी. इस अवधि में नौकरों के पंजों से अपने को छुड़ाने में वह व्यक्ति सफल हो गया था, और इसके पहले कि उसके विरूद्ध कोई कार्रवाई की जाती वह वहां से भाग खड़ा हुआ था.

श्री चक्रवर्त्ती की गणना भारतीय दर्शन के प्रमुख टीकाकारों में की जाती थी, और तत्संबंध में उनकी आधा दर्ज़न से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. एम्प्लाईज़ स्टेट इंश्योरेंस के एक वरिष्ठ अधिकारी के पद से उन्होंने कुछ ही दिनों पहले अवकाश ग्रहण किया था. तब से वह स्वाध्याय, लेखन तथा हेमा के मद्रास-स्थित नृत्य विद्यालय की व्यवस्था में कार्यरत थे. लगभग चार महीने पहले उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा था, और अपने अवसान के एक सप्ताह पूर्व ही वह मद्रास से बम्बई वापस लौटे थे.

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