क्षणजन्मा डॉक्टर हेनरी नॉर्मन बेथुन

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किताब चलते रहने का हौसला पैदा करती है, रास्ता दिखाती है और कभी कभी हमारा रास्ता रोककर खड़ी हो जाती है। — अनाम

 

कभी कभार ही ऐसा होता है कि आपके हाथ ऐसी किताब लग जाए जो सालों बीत जाने पर भी आपकी चेतना को संस्कार-मण्डित करती रहती है और सदा के लिए महत्वपूर्ण उपस्थिति बनाए रखती है। टेड ऐलन एवम् सिडनी गॉर्डन द्वारा लिखित द स्कालपेल, द सोर्ड(The Scalpel, the Sword: The Story of Doctor Norman Bethune  by Ted Allan and Sydney Gordon) का बांग्ला अनुवाद मैंने आज से चालीस साल पहले पढ़ा था। पर आज तक इस पुस्तक के वक्तव्य को अधिकाधिक संवेदनशील लोगों से शेयर करने की  बेचैनी बनी हुई है। कनाडा के मॉण्ट्रिल नगर में जन्मे और चीन के युद्धक्षेत्र में मृत्यु को वरण करने वाले एक क्षणजन्मा सर्जन का जीवन वृतान्त इस पुस्तक में उल्लिखित है। डॉ नॉर्मन बेथुन यक्ष्मा से पीड़ित हुए थे। स्व्स्थ्य लाभ करने के बाद इन्होंने यक्ष्मा के रोगियों के इलाज पर ही सीमित कर लिया था। इलाज के दौरान डॉ बेथुन ने पाया कि गरीबी के रहते यक्ष्मा से निजात नहीं पाया जा सकता।  इसलिए यक्ष्मा का इलाज करने के लिए वे गरीबी दूर करने के संग्राम में अपने को समर्पित हो गए। गम्भीर अवलोकन, चिन्तन और मनन के पश्चात वे इस नतीजे पर पहुँचे कि मौजूदा समाज व्यवस्था (पूँजीवाद) अपने निहित स्वार्थ में असमानता, वर्गभेद और गरीबी को पालती है। निदान की तलाश में उनका ध्यान साम्यवादी विकल्प की ओर गया। यक्ष्मा से मानवता को निजात दिलाने के लिए गरीबी और वंचना दूर करनी होगी। उन्होंने स्पेन के गृह-युद्ध में गणतान्त्रिक सरकारी सेना के पक्ष से युद्धक्षेत्र के सर्जन के रुप में योगदान किया।  युद्धक्षेत्र में घायल सैनिकों की त्वरित चिकित्सा के लिए पद्धतियाँ और सर्जरी के औजार विकसित किए उन्होंने। इसीलिए पुस्तक का नाम स्कालपेल और सोर्ड है।

1890 ई में कनाडा के मॉण्ट्रिल नगर में धर्मप्राण पादरी परिवार में जन्मे हेनरी नॉर्मन बेथुन अनीश्वरवादी थे। किशोरावस्था से ही औसत व्यक्ति से अलग एवम् परिवश के प्रति संवेदनशीलता के लक्षण दिखे, जब उन्होंने आप्रवासी खान मजदूरों को अंगरेजी लिखना पढ़ना सिखाने वाले स्वयंसेवक शिक्षक के रुप में काम करने के लिए अपनी पढ़ाई एक साल के लिए रोक दी।

सन 1926 में बेथुन यक्ष्मा रोग से ग्रस्त हो गए। उस समय ऐण्टिबायटिक्स का आविष्कार नहीं हुआ था। इस रोग की चिकित्सा किसी अच्छे सैनिटोरियम में पूर्ण विश्राम लेना ही थी। बचने की सम्भावनाएँ बहुत ही क्षीण हुआ करती थी। फ्रांसिस पेरी उनकी पत्नी थीं। नॉर्मन पत्नी से प्यार करते थे। उन्होंने सैनिटोरियम में दाखिल होने के लिए पत्नी के सामने विवाह विच्छेद की शर्त रखी। पत्नी उनकी जिद्द के सामने  मानने को बाध्य हो गईं। विवाह विच्छेद होने के बाद ही वे सैनिटोरियम गए। वहाँ चिकित्साधीन रहते हुए बेथुन ने एक चिकित्सा जर्नल में यक्ष्मा के इलाज की न्यूमोथोरैक्स नाम की नई तकनीक के बारे में पढ़ा। इस तकनीक में संक्रमित फेफड़े को कृत्रिम रुप से सिकुड़ाकर निष्क्रिय कर दिया जाना था। ताकि इसे विश्राम मिले और यह अपने आप स्वास्थ्य लाभ करने का अवसर पाए। बेथुन ने सैनिटोरियम के चिकित्सकों की बोर्ड के सामने इस पद्धति को अपने आप पर आजमाने का प्रस्ताव दिया। चिकित्सक हिचकिचा रहे थे क्योंकि यह तकनीक अभी नई थी, इसमें खतरे थे। पर्याप्त परीक्षण अभी नहीं हुआ था। पर बेथुन अड़े रहे और चिकित्सकों को राजी कर लिया। ऑपरेशन हआ और बेथुन सम्पूर्ण स्वस्थ हो गए। स्वास्थ्य लाभ करने पर बेथुन ने अपनी पूर्वपत्नी फ्रांसिस को पुनर्विवाह के लिए राजी कर लिया।

अब  यक्ष्मा रोग की चिकित्सा पर ही उनका ध्यान केन्द्रित हो गया।  उन्होंने वर्षों तक के लगातार परिश्रम से थोरैसिक सर्जरी  में अपनी कुशलता में इजाफा ही नहीं किया, एक दर्जन से भी अधिक सर्जिकल औजार भी विकसित किए। उनका सर्वाधिक लोकप्रिय औजार बेथुन रिब शियर्स था जिसका आज भी उपयोग किया जाता है ।

अपनी प्रैक्टिस के दौरान उन्होंने देखा कि यक्ष्मा का प्रकोप गरीबी के साथ जुड़ा हुआ है।  इस अवलोकन ने उनका ध्यान सामाजिक संरचना और सामाजिक वंचना पर केन्द्रित किया। समाज यक्ष्मामुक्त तभी हो सकता है जब गरीबी, शोषण समाप्त हो। उनका अवलोकन यह भी था कि समाज व्यवस्था ही गरीबी के कायम रहने के लिए जिम्मेदार है। उनका ध्यान अभी हाल में उदित सोवियत यूनियन की ओर गया जिसका आश्वासन शोषणमुक्त समाज निर्माण करने का था। बेथुन को सोवियत यूनियन से आश्वासन सा मिला कि शोषण और वंचना से मुक्त समाज का उदय सम्भव है।

इसके बाद बेथुन उत्तरोत्तर यक्ष्मा के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं से सम्बद्ध होते गए। 1930 के दशक की आर्थिक मंदी के दौर में  बेथुन अक्सर गरीबो की मुफ्त चिकित्सा किया करते। इसके साथ उन्होंने अन्य चिकित्सकों का आह्वान किया और आन्दोलित करने का असफल प्रयास किया।

सन 1935 में उन्होंने सोवियत यूनियन की स्वास्थ्य सेवा का निकट से अवलोकन करने के लिए वहाँ का सफर किया। तभी वे साम्यवादी विचारधारा से प्रतिबद्ध हो गए और कैनाडा की कम्युनिस्ट पार्टी  के सदस्य बने।

उन्होंने स्पेन के गृह-युद्ध में गणतान्त्रिक पक्ष की ओर से भाग लिया। इसी युद्ध में उन्होंने घायल सैनिकों के युद्ध-क्षेत्र में ही मोबाइल ब्लड ट्रान्सफ्यूज़न सेवा की तकनीक का विकास किया।

स्पेन के लिए रवाना होने के कुछ पहले उन्होंने यह कविता लिखी, जो कनाडियन फोरम नामक पत्रिका में जुलाई 1937 में प्रकाशित हुई थी।

 

आज की रात का वही विवर्ण चाँद,

जो इतनी खामोशी, से ऊँचाई पर चढ़ता जाता है

हमारी धुँधलाई और परेशान टकटकी का आइना

कनाडा के सर्द आसमान पर टँगा हुआ है।

 

ध्वस्त पहाड़ों की चोटियों के ऊपर

पिछली रात, उगा मंद, खामखयाली और लाल,

उसके प्रकाशमान ढाल से वापस प्रतिफलित

मृतकों के रक्तरंजित चेहरे

उस फीके चक्के की ओर, हम अपनी बँधी मुट्ठी उठाते हैं

और उन अनाम मृतात्माओं के लिए हमारे शपथ दुहराते हैं

साथियों, तुम आजादी और भविष्य की दुनिया के लिए लड़ते रहे

तुम हमारे लिए मरे, हम तुम्हें याद करते रहेंगे।

 

हेनरी नॉर्मन बेथुन मार्च 1890- नवम्बर 1939 कैनाडियन चिकित्सक और विख्यात फासिस्ट विरोधी थे। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार  स्पेन के गृह युद्ध में गणतान्त्रिक तरीके से चुनी गई  सरकार के पक्ष से भागीदारी के लिए विख्यात हुए । लेकिन द्वितीय चीनी-जापानी युद्ध में  माओत्से तुंग की आठवीं रूट सेना  में भागीदारी से उनकी पहचान स्थापित हुई। डॉ बेथुन ने प्रभावकारी तरीके से चीन के ग्रामीण चीन में आधुनिक चिकित्सा की पहुँच बनाई और बीमार ग्रामीणों का इलाज उसी तत्परता से किया जितना सिपाहियों का। चीनी जनता के प्रति उनकी निस्वार्थ प्रतिबद्धता को चेयरमैन माओ ने नॉर्मन बेथुन की स्मृति में नाम से अपने इस आलेख में  लिखा———

“कॉमरेड बेथुन की भावनाएँ, अपने हित का कोई खयाल किए बग़ैर, उनकी दृढ़ कर्तव्यनिष्ठा तथा सभी साथियों एवम् जनता के प्रति उनके लगाव में प्रदर्शित होती थीं। हम सबों को अवश्य ही सम्पूर्ण विःस्वार्थता की भावना उनसे सीखनी चाहिए  ऐसी भावना से हर कोई लोगों के लिए उपयोगी हो सकता है। किसीकी क्षमता कम या अधिक हो सकती है, लेकिन अगर उसकी ऐसी भावना है तो वह प्रारम्भ से ही पवित्र और उदार होता है, वह नैतिक प्रामाणिकता तथा अश्लील स्वार्थों से परे होता है,। वह ऐसा व्यक्ति होता है, जो जनता के लिए मूल्यवान होता है।“ उनके सम्मान में उनकी मूर्तियाँ चीन के विभिन्न क्षेत्रों के शहरों में पाई जा सकती हैं।

विडंबना है कि जिस बेथुन ने युद्ध-क्षेत्र में मोबाइल ब्लड ट्रांसफ्युज़न पद्धति का आविष्कार किया उसकी मौत ब्लड पॉयज्निंग से हुई।  युद्ध के सम्बन्ध में उनका अवलोकन— युद्ध  सिद्धान्तों द्वारा नहीं, बल्कि मुनाफे के द्वारा प्रेरित किए जाते हैं।

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