हे भाई स्वदेश को अपना देश समझो

—विनय कुमार विनायक
हे भाई स्वदेश को अपना देश समझो,
तुममां भारती के स्वदेशी बेटे हो
अपने स्वदेशी धर्म में वापसी कर लो!

हे भाई स्वमाता-पिता को अपना समझो,
तुम अरबी,तुर्की मूलके वासिंदेनहीं हो
फिरविदेशी मजहब के गुलाम क्यों बने हो!

हे भाई तुमने क्यों परित्याग कर दिया,
देशी धर्म,संस्कृति,शास्त्रऔ’दर्शनको
अपना लिए अबूझ मजहबी किताब को!

हे मानव अपनेस्वदेशी भाई-बहनोंसे
क्योंनफरत करते होकाफिर कहकर
खुद केलिएकसाई संबोधनमिटा दो!

माना विदेशी गुलामी से उबर गए हो,
पर विदेशी धर्म से कबतक उबरोगे
कि तुम नहीं हो विदेशी नस्ल,वंश के!

इतनी छोटी-सीबात को तुम कब समझोगे
कि तुम महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी,
अलाउद्दीन,बाबर, तैमूरके वंशज नहीं हो!

कि तुम पर विदेशी आक्रांताओं नेथोपाहै,
विदेशीइस्लाम और ईसाई मजहबको
तुम कबतक मानते रहोगे विदेशीमजहब?

ये सिर्फ धार्मिक नहीं, भाषाई गुलामी भी है,
अपनी भाषा छोड़कर तुम पिछड़ रहे हो,
शैक्षणिक एवं सरकारीसेवा केक्षेत्रों में भी!

नाहक अरबी, फारसी,उर्दू, अंग्रेजी के फेर मेंहो,
रोजी-रोटी के लिए देशी भाषा अपना लो,
मत इतराओ विदेशी धर्म, भाषा, संस्कृति पर!

विदेशी धर्म-मजहब घृणा और आतंक के सिवा
कुछ भी सत्कर्म और मानवता नहीं सिखाते
विदेशी मजहब ईश्वर, रब,खुदा में भेद बतलाते!

खोखलेहोतेविदेशी धर्म, रीति-रिवाज,संस्कृति,
विदेशीमजहब सेविकृत हो जाती मति
मिलता नहींमानवकोसन्मार्ग, सत्संग,सद्गति!

अगर चहुंओरतरक्की करना हो तो प्यारेभाई,
अपनी धर्म, संस्कृति और भाषा में वापस आओ,
विदेशी ड्रेस कोड, दिखावा कोपरित्याग कर दो!

भेदभावपूर्ण और वर्जनायुक्त मजहब को त्यागो,
छोड़ोविदेशी धार्मिक,मानसिक, भाषाईगुलामीको,
तार्किक,नैतिक,स्वदेशीमूल केधर्म अपनाओ!

अपनी मां-माटी, पैतृक धर्म-संस्कृति कोत्यागकर
नकलची विदेशी मजहबी होना गौरव की बात नहीं,
स्वदेशी का विधर्मी होना स्वराष्ट्रके हित मेंनहीं!

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