अरे, कहीं चाणक्य जाट तो नहीं था?

subhash-chandraविवेक सक्सेना

शायद ही इससे पहले कभी राज्यसभा चुनाव में इतनी रुचि ली हो। सच्चाई तो यह थी कि इस बार भी अपनी रुचि सिर्फ हरियाणा की उस सीट पर थी जहां से इनेलो और कांग्रेस समर्थित राम कुमार आनंद दूसरे निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा के मुकाबले मैदान में थे। दोनों ही इस देश की जानी मानी हस्तियां हैं। दोनों ने ही कांग्रेस से लाभ उठाए। यह बात अलग थी कि चुनाव में दोनों एक दूसरे के सामने आ खड़े हुए थे। सुभाष गोयल को भाजपा का समर्थन हासिल था। हरियाणा विधानसभा के 90 विधायकों की संख्या को देखते हुए चौधरी बीरेंद्र सिंह को जीतने के लिए 31 वोटों की जरुरत थी जब कि इनेलो के 19 व कांग्रेस के 17 वोटों को मिलाकार आर के आनंद की जीत तय मानी जा सकती थी।

पर सुभाष चंद्रा के कांग्रेस से कितने गहरे संबंध रहे है, इसका खुलासा खुद उन्होंने कुछ दिन पहले लिखी अपनी आत्मकथा में किया था कि किस तरह से इस पार्टी के वरदस्त के कारण उन्होंने रुस को बासमती चावल निर्यात करने का ठेका हासिल किया और बाद में उसकी जगह परमल चावल निर्यात करके जबरदस्त माल कमाया। जी चैनलों के मालिक सुभाष चंद्रा की दिक्कत यह है कि उनका अपने ही शहर के दूसरे बनिए नवीन जिंदल से टकराव हो गया। जिंदल ने उनके दो कर्मचारियों को उनके खिलाफ खबर रोकने की एवज में सौ करोड़ की मांग करने की बातचीत रिकार्ड कर ली। मुदकमा दर्ज करवाया। उन लोगों को जेल जाना पड़ा।

यही नहीं फिर जिंदल ने जी चैनल के मुकाबले अपना चैनल शुरु किया। यह झगड़ा इतना बढ़ गया कि सुभाष चंद्रा चाहते थे कि भाजपा उन्हें हिसार से लोकसभा का चुनाव लड़वाए पर उनकी दाल नहीं गली। नवीन जिंदल हार गए। चूंकि जिंदल कांग्रेसी थे इसलिए सुभाष चंद्रा का भाजपाई बनना जरुरी था। सो वे और उनका चैनल नरेंद्र मोदी के गुणगान करने लगे। उन्हें पूरा भरोसा था कि हरियाणा विधानसभा चुनाव का टिकट तो मिल ही जाएगा पर वह भी नहीं हुआ। तब अभी कांग्रेस का खेल बिगाड़ने के लिए भाजपा ने उन्हें दूसरी पसंद के वोट दिलवाने का फैसला लिया।

अब जरा आर के आनंद के बारे में जान लिया जाए। वे देश के जाने-माने वकील है। दो बार दिल्ली बार काउंसिल के अध्यक्ष रह चुके हैं। राजग के शासनकाल में राज्सभा के सदस्य बने। उन्होंने तीन प्रधानमंत्रियों के वकील रहने का गौरव हासिल किया। उन्होंने इंदिरा गांधी की वसीयत तैयार की। उनकी ओर से मेनका गांधी के खिलाफ मुकदमा लड़ा। राजीव गांधी के मुकदमे लड़े और फिर वीपी नरसिंहराव का जेएमएम रिश्वत कांड, चंद्रास्वामी प्रकरण में जबरदस्त बचाव करते हुए जीत हासिल की। जब नवंबर 1984 के दंगों की जांच के लिए रंगनाथ मिश्र आयोग बना तो उसमें वे दिल्ली पुलिस व भारत सरकार की ओर से पेश हुए।

फिर जब पूर्व नौसेनाध्यक्ष एम एम नंदा के पोते संजीव नंदा का बहुचर्चित बीएमडब्ल्यू दुर्घटना मामला आया तो वे उसका शिकार बन गए। वे नंदा के वकील थे। उन्हें गवाह सुनील कुलकर्णी को प्रभावित करने के आरोप में अदालत की अवमानना का दोषी पाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने उनसे सीनियर वकील का तमगा छीन लिया। चंद महीनों के लिए उन पर वकालत करने से रोक लगा दी गई। यह बात अलग है कि उन्होंने उस समय प्रायश्चित के रुप में बार काउंसिल को 21 लाख रुपए दान में दिए थे। वे एक बार दक्षिण दिल्ली से कांग्रेस के टिकट पर व 2014 में फरीदाबाद से इनेलो के टिकट पर चुनाव लड़े। वे दोनों बार हारे। उन्होंने कुछ किताबें भी लिखीं जिसमें सबसे चर्चित उनकी किताब ‘क्लोज इनकाउंटर्स विद नीरा राडिया’ थी। इस किताब में उन्होंने लिखा कि वे नीरा राडिया के पड़ोसी, दोस्त व सबसे विश्वासपात्र थे पर उन्होंने कुछ ऐसा किया जिससे उनका मोहभंग हो गया।

उन्होंने खुलासा किया कि नीरा राडिया ने राव धीरजसिंह को धोखा दिया। वे उसकी पत्नी की तरह रहती थी, ताकि अनंत कुमार की तेजस्वनी पत्नी को यह भरोसा दिला सके कि उनकी नजर उनके पति पर नहीं है। वे कैबिनेट के नोट हासिल कर भारत में धंधा करने के इच्छुक लोगों को प्रभावित करती थी कि उनकी पहुंच कहा तक है। वगैरह-वगैरह। कांग्रेस हाईकमान से अपने रिश्तों के चलते आर के आनंद ने सीधे ऊपर बात कर ली। इनेलो से तो उनके संबंध थे ही। उनकी हालत उस छाबड़ी वाले जैसी हो गई जो कि पुलिस कमिश्नर का परिचित हो और दरोगा को सलाम किए बिना ही अपनी दुकान सजाना चाहता हो। हरियाणा से उनको उम्मीदवार बनाए जाने के पहले कांग्रेस हाईकमान ने वहां के नेताओं के साथ विचार विमर्श नहीं किया। चिंतन, मंथन, सलाह मशविरा तो करना दूर रहा, सीधे आदेश जारी कर दिया कि इन्हें जिताना है।

मतलब राज्य में लगातार दो बार सरकार बनाकर इतिहास रचने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को तो हाईकमान ने कलेवा की दुकान पर बैठा मैनेजर मान लिया जिसके पास मालिक लाला परची लिखकर भेज देता है कि फलां को इतने डब्बे मिठाई पैक कर के पकड़ा दो। आर के आनंद को भी पूरा विश्वास था कि भले ही हरियाणा में उनका जनाधार नहीं हो पर 10-जनपथ में तो है सो हुड्डा मानने को मजबूर होंगे।

कांग्रेस हाईकमान यही मान कर चल रहा था कि कांग्रेसियों के रीढ़ की हड्डी नहीं होती है। इसीलिए ध्यान दे कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में पीठ के पीछे गोल तकिए लगाकर बैठने की परंपरा चली आयी है। जब यह खबर उन लोगों तक पहुंची तो सबका स्तब्ध रह जाना संभव था। हाईकमान को बताया गया कि जिस इनेलो के साथ कांग्रेस का छत्तीस का आंकड़ा रहा है अगर उसके उम्मीदवार को समर्थन किया तो जनता में हमारी क्या छवि रह जाएगी। हरियाणा के कांग्रेसी सर्जन तब आर के आनंद का सिटीस्केन कर लाए। पर यहां नेतृत्व तो निर्मल बाबा बन चुका था जिसने उन्हें आदेश दिया जाओं मुर्गे को जलेबी खिलाओ सब ठीक हो जाएगा। पार्टी महासचिव बीके हरिप्रसाद ने अध्यादेश जारी कर दिया। बताते हैं कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बीच का रास्ता निकालते हुए यह सलाह दी थी कांग्रेसी विधायक चुनाव का बायकाट कर दें पर उनकी नहीं सुनी गई। हरियाणा विधायक दल तो 1962 की भारतीय सेना बन गई और हाईकमान ने कृष्णा मेनन की तरह आदेश जारी कर दिया कि राजनीतिक हाराकीरी करने के लिए तैयार हो जाओ।

सो जो नतीजा अब सामने आया तो वह हिला देने वाला था। क्या गजब की रणनीति रही। कांग्रेस के 17 विधायकों में से 14 के वोट रद्द कर दिए गए। सिर्फ विधायक दल की नेता किरण चौधरी व हाल ही में पार्टी में शामिल हुए कुलदीप बिश्नोई व उनकी विधायक पत्नी का ही वोट सही पाया गया।

इससे पहले इसी हरियाणा में दिवंगत भजनलाल दावा करते थे कि मैं राजनीति में पी.एचडी हूं। गोवा में सरकार बचाने के लिए दो विधायकों के इस्तीफे करवा कर एक अनूठा प्रयोग होते देखा था। भजनलाल कहते थे कि जिन हाथों को मेरी किस्मत का फैसला करना होता है उनमें में अपना पैन पकड़ा देता हूं। पर यहां तो कमाल हो गया। कलम, तलवार से कहीं ज्यादा ताकतवर होती है, यह कहावत धरी रह गई। स्याही ने ही कमाल कर दिखाया। आर के आनंद व हाईकमान की पूरी मेहनत पर स्याही फिर गई।

क्या गजब की एकता दिखायी विधायक दल ने। पेशे से वकील कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रनदीप सुरजेवाला ने भोलेपन में आकर वोट देने के बाद उसे किरण चौधरी को दिखा दिया। बाकी काम स्याही ने कर दिखाया। यह भी महज संयोग ही था कि पहली बार राज्यसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने आम चुनाव की तरह उंगली पर लगाए जाने वाली बैंगनी स्याही की तरह इसी रंग की स्याही वाले पैन उपलब्ध करवाए। खबर तो यह भी है कि खुद सुरजेवाला ने ‘धोखाधड़ी’ की आशंका को देखते हुए यह लिखकर दे दिया था कि अगर कोई गड़बड़ी पायी जाए तो वोट रद्द कर दिए जाएं। गड़बड़ी हुई व वोट रद्द कर दिए गए। चुनाव एजेंट बी के हरिप्रसाद चील की तरह घोसले पर बैठे रहे। विधायक उन्हें दिखा कर वोट डालते रहे पर यहां तो घोसले में छेद था। सारे वोट नीचे से सरक लिए। सुनते हैं कि नतीजा आने पर कांग्रेसी विधायकों ने नारेबाजी की कि ‘बचा ली हमारी इज्जत बिना खड़ग बिना ढाल, रोहतक के जाट तूने कर दिया कमाल’।

हारने के बाद आर के आनंद सीधे भूपेंद्र सिंह हुड्डा को जिम्मेदार ठहराते नजर आए। अगर वे सही है तो इस कदम से यह साबित होता है कि किरण चौधरी भले ही विधायक दल की नेता बना दी गई हो पर हरियाणा में कांग्रेस के एकमात्र नेता वही हैं जिनमें इतना साहस है कि वे बिना किसी डर या दबाव के न सिर्फ मनचाहे फैसले करा सकते हैं बल्कि पूरा विधायक दल उनके साथ है।

फिर बलदेव सिहाग का फोन आया। इससे पहले वे कुछ कहते मैंने पूछा कि क्या चाणक्य जाट था? वे बोले भाई यह तो नहीं पता पर हमारे यहां जो ‘मोर’ होते हैं वही शायद कभी ‘मौर्य’ रहे हो।

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