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हे! राजनीते , अहम त्वमेव शरणम गच्छामि - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
प्रभुनाथ शुक्ल हे! राजनीते तुझे शत्-शत् नमन। तेरी कोई भाषा और परिभाषा भी है यह मैं आज तक नहीं पढ़ पाया हूं। तेरे व्यक्तित्व की लावण्यता कितनी खूब सूरत है कि हर कोई तुझमें समाहित होना चाहता है। वह सदाचारी हो या दुराचारी। कर्तव्य पथ के प्रगतिवाद का समर्थक हो…