दीवाली के नाम पर दिवाला दिलवालों का निकलता है। सेल के नाम पर बचा खुचा सब माल गोदामों से निकल जाता है। सब छूट से खिंचे चले आते हैं और सेल में सारा माल ऐसे निपट जाता है, मानो फ्री में बंट रहा हो। यह तो नेताओं का असर है कि देकर छूट लेते हैं लूट।
दीपावली एक ऐसा त्योहार कि इधर गुजरा, उधर अगली का इंतजार शुरू गया। इसमें कसूर आपका नहीं है, इसमें है ही ऐसा आकर्षण। सब लौट लौट कर दीपावली मनाना चाहते हैं। आखिर यह त्योहार है ही खूब नोट बरसाने वाला। जिनके खर्च होते हैं, उनके पास भी कई गुने होकर बरसते हैं।
अब मैं आपको एक ऐसा रहस्य बतला रहा हूं कि क्यों एक दीवाली जाते ही अगली दीवाली का बेसब्री से इंतजार होने लगता है। राम नाम जपना और बचा खुचा माल खपना। छूट और त्योहार के नाम पर सब बिक जाता है। गिफ्ट आइटम टूटे फूटे भी धकेल दिए जाते हैं। इन दिनों थोक में भरपूर ऑर्डर आते हैं और धंधा चोखा चमकता है। गिफ्ट एक जगह से चलकर कहां रुकेगा, यह न गिफ्ट देने वाला जानता है और न लेने वाला ही। गिफ्ट को गिफ्ट कर शिफ्ट कर दिया जाता है। वैसे भी बम फटने की घटनाओं के कारण जब तक जरूरी न हो और पक्का विश्वास न हो, कोई भी गिफ्ट को अनपैक करने के नुकसानदायक खेल में नहीं उलझता है। बम निकला और फट गया तो नुकसान और दोबारा से पैक करना पड़ा तो श्रीमान परेशान और पैक करने की फिजूलखर्ची साथ में तंग करती है।
दीपावली का लुत्फ लेते हुए हलवाई तो बची खुची बासी मिठाई थोक ऑर्डर के डिब्बों में ही घुसा देते हैं। गिफ्ट लेने वाले भी उसे आगे सरका देते हैं। आफिसों के लिए थोक में खरीद करने वाले दुकानदार से सैटिंग करके किलो के डिब्बे में दो चार बासी मिठाई के खपाने की जो छूट देते हैं, उसका लाभ भी दीवाली पर ही मिलता है और गत्ते का डिब्बा तो इन सौदों में मिठाई के रेट से ही तुलता है। अच्छी मिठाई मिलावटी ही होगी, इसकी भी गारंटी बनी रहती है। इसके बदले खरीदार की सेवा पानी हलवाई कर ही देते हैं, जिसके बारे में खुलासा करना जरूरी नहीं है।
अन्ना हजारे के अनशन तक में इस संबंध में किसी ने भी जानबूझकर इस तरह के भ्रष्टाचार के निदान के बारे में नहीं सोचा। दिवाली के डिब्बे दिवाली के कई दिन पहले से बंटने शुरू हो जाते हैं और कई दिन बाद तक बंटते रहते हैं। कौन डिब्बा कहां से चला, किधर से होता हुआ किधर पहुंचा, कोई नहीं जानता, वे कब खुलते हैं लेकिन यह तय है कि उनकी अंतिम परिणति घरों में जाकर नौकरों और काम करने वालों तक पहुंचने में ही होती है और वे भी उसे खाते नहीं हैं, सीधे कूड़ा घरों में पहुंचा देते हैं।
ड्राई फ्रूट्स में तो बिल्कुल भी रिस्क नहीं होता है, वे पहले से ही इतने सूखे होते हैं कि उन्हें कितना ही सुखा लो, उनका रूप और दमक कर सामने आता है, मानो उन्हें फेशियल करके निखारा गया हो। मेवों का तेल पानी भला किसने जांचा है। वे कितने ही पुराने और खराब हो चुके हों परंतु बहुत आराम से गिफ्ट के तौर पर बांट दिए जाते हैं। मिलावट करने वाले भी इन दिनों खूब बिजी रहते हैं। इतनी मिलावट करते हैं कि कई बार किसी आइटम में बूरे की जगह आटा या नमक डाल देने तक की दुर्घटनाएं घट जाती हैं।
पुलिस वालों और ट्रेफिक वालों, एमसीडी, इंकम टैक्स,सेल्स टैक्स, खाद्य सामग्री जांच विभाग मतलब जितने लोगों पर कानून के पालन करवाने का जिम्मा होता है, वे पूरी जिम्मेदारी और ईमानदारी से उसे कारनामा बनाने में जुटे रहते हैं। इन दिनों जिनको उपहार ढोने और बाद में बेचने का मौका नहीं मिला तो उसकी दीपावली तो व्यर्थ गई, समझ लीजिए। अनेक अधिकारी तो दीवाली पर मिलने वाले गिफ्ट, मिठाईयों की रीसेल के लिए दुकानदारों से डील कर लेते हैं और ढेर के ढेर डिब्बे दोबारा बिक जाते हैं। कई बार तो ऐसा हुआ है कि कोई डेढ़ बजे जिस डिब्बे को खरीदकर ले गया, उसने दो बजे गिफ्ट किया और तीन बजे वापिस वही डिब्बा दुकानदार के पास दोबारा बिकने के लिए लौट आया।
जब मंदिरों में भगवान की और शमशान में शवों की मौजूदगी में ऐसे ही कार्य किए जाते हैं तो आफिसों और घरों में किसे दिक्कत होगी। वहां पर सब अपने अपने मालिक खुद होते हैं। भगवान के यहां चढ़ाए जाने वाले नारियल, फूल मालाएं और पूजा सामग्री वगैरह से धन कमाने की ऐसी सैटिंग होती है कि इधर चढ़ावा चढ़ता है और उधर पिछले दरवाजे पर तैनात भगवान के नितांत निजी भक्त अति गोपनीय तरीके से उसे वापिस दुकानों में फिर से बिकने के लिए भिजवा देते हैं। फिर यह मंदिरों के लिए भी अच्छा है क्योंकि बेहिसाब पूजा सामग्री,फूल, फल इत्यादि आएं और वे भगवान के चरणों में पड़े सड़ते रहें, भगवान भी इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। सारी सामग्री भगवान खा लेंगे तो निश्चित ही उनका पेट खराब होने से कोई नहीं रोक सकता। अगर उस सामग्री को वहां से न ले जाया जाए तो भगवान उसी में खो जायेंगे और भक्तों को कैसे नजर आयेंगे।
अन्ना हजारे को सलाह एक नेक सलाह है कि वे एक अनशन दीपावली जैसे त्योहारों पर भी किया करें। ऐसा न हो कि इस सलाह की भनक किसी को लग जाए और वे अमल करके लाभ उठा लें जिसमें इस गिफ्ट रूपी भ्रष्टाचार की समाप्ति का आग्रह किया गया हो। जिस तरह दीपावली लोकप्रिय है उसी तरह अन्ना और भी अधिक लोकप्रिय हो जायेंगे। दीपावली वैसे तो प्रेम का त्योहार है, विजय का त्योहार है। असली प्रेम उपहारों से किया जाता है और विजयी वही होता है जो सबसे अधिक गिफ्ट हथियाता है।
गिफ्ट पाना या हथियाना भी एक कला से कम नहीं है। इस अवसर पर जूते कपड़ों की इतनी सेल लगती हैं और सभी सपरिवार उन्हें खरीदने में इस कदर जुटे रहते हैं कि लगता है कि जूते, कपड़े फ्री में बंट रहे हैं। पहले नए कपड़ों के खरीदने से दीवाली होती थी और अब नए गैजेट्स खरीदने से दीवाली की खुशियां मिलती हैं। बम पटाखे के रूप में नोटों का दहन नहीं किया तो कैसी दीवाली और वरिष्ठ रचनाकारों की सब पुरानी रचनाएं इस अवसर पर नहीं छपीं तो फिर काहे की दीवाली। रही बची कसर इस अवसर पर जुआ खेलकर, लाटरी के टिकट खरीद कर भाग्य आजमाने में निकाल ली जाती है। जुआ खेलना, शराब पीना जैसी कलाएं दीपावली के उत्साह में खूब बढ़ो%E