हिमाचल प्रदेश के चुनावी महासंग्राम में भाजपा इक्कीस ———-

 डा कुलदीप चंद अग्निहोत्री

हिमाचल प्रदेश में विधान सभा के लिये चार नवम्बर को मतदान हो रहा है । जाहिर है कि दोनों प्रमुख राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी और सोनिया कांग्रेस सत्ता के शिखर तक पहुँचने के लिये एंडी चोटी का जोर लगा रहीं हैं । रिकार्ड़ के लिये हिमाचल लोकहित पार्टी की निगरानी में एक तीसरा मोर्चा भी है जिसमें सी.पी.आई से लेकर सी.पी.एम तक सभी अस्तित्ववान व अस्तित्वहीन दल सिमटे हुये हैं । ममता वंद्योपाध्याय के तृणमूल कांग्रेस का शोर शराबा भी पहाड़ की चोटियों पर सुनाई दे रहा है,लेकिन मकसद शायद इतना ही है कि चुनाव आयोग के दफ्तर में अखिल भारतीय का दर्जा प्राप्त हो जाये । एक ध्येय और भी हो सकता है । भारतीय राष्टीय कांग्रेस की विरासत पर कब्जा करने की लड़ाई चल रही है ,जिसमें फिलहाल सोनिया गान्धी कामयाब हो गई लगती हैं । ममता उसी को चुनौती दे रही हैं । यदि वे आम कांग्रेसजन में यह विश्वास दिला दें कि भारतीय राष्टीय कांग्रेस की विरासत की असली उत्तराधिकारिणी तो वास्तव में तृणमूल कांग्रेस है तो वे सोनिया के सिंहासन को हिला सकती हैं । लेकिन इसके लिये जरुरी है कि आम कांग्रेसजन को विश्वास होना चाहिये कि सोनिया की सीटें जिताने की क्षमता क्षीण होती जा रही है । हिमाचल में ममता के गीत इस प्रयोग की शुरुआत भी हो सकती है । परन्तु फिलहाल इन सभी दलों की हिमाचल में हैसियत अखाड़े के बाहर वैठे दर्शकों से ज्यादा नहीं है । अखाडे के भीतर तो पुराने प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी और सोनिया कांग्रेस ही है ।

हिमाचल प्रदेश में भाजपा (उस समय जनता पार्टी ) प्रमुख खिलाड़ियों की हैसियत में १९७७ में आपात् स्थिति के बाद हुये विधान सभा के चुनावों में आई थी । आपात् स्थिति के खिलाफ़ जो संघर्ष तत्कालीन जनसंघ ने इस पहाड़ी प्रदेश में किया था ,उसी का नतीजा था कि कि १९७७ में हुये विधान सभा चुनावों में तत्कालीन जनता पार्टी ने विधान सभा की ६८ सीटों में से ५३ सीटें व ४९ प्रतिशत मत प्राप्त कर प्रदेश का राजनैतिक इतिहास बदल दिया था । कांग्रेस को केवल नौ सीटें मिली थीं । १९८२ के चुनाव में जब भाजपा को २९ और कांग्रेस को ३१ सीटें प्राप्त हुईं तभी स्पष्ट हो गया था कि अब प्रदेश में द्विदलीय प्रणाली स्थापित हो गई है । १९८५ के चुनावों में कांग्रेस की सीटें ५८ तक पहुँच गईं और भाजपा केवल सात सीटों पर सिमट कर रह गई । लेकिन यहाँ तक आते आते तीसरे मोर्चा की संभावना अपने आप समाप्त हो गईं । साम्यवादी दलों के जो कुछ गिने चुने प्रभाव क्षेत्र होते थे वे भी समाप्त हो गये ।

१९९० के चुनावों में स्थिति एकदम उलट गई । भाजपा ने ४६ सीटें प्राप्त कीं और कांग्रेस को ९ पर ही संतोष करना पड़ा । लेकिन १९९३ के चुनावों में मामला फिर पलट गया । भाजपा को आठ सीटें मिलीं और और कांग्ेस ने ५२ सीटें झटक लीं । १९९८ का चुनाव इस दृष्टि से महत्वपूर्ण कहा जायेगा कि भाजपा ने यह चुनाव उस समय के प्रभारी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा था । भाजपा और कांग्रेस में काँटे की जंग थी । दोनों पार्टियों ने ३१–३१ सीटें प्राप्त कीं । हिमाचल विकास पार्टी के पाँच सदस्य भी भाजपा का समर्थन कर रहे थे । लेकिन उस समय की राज्यपाल ने कांग्रेस पार्टी के वीरभद्र सिंह को ही सरकार वनाने के लिये निमंत्रित कर लिया । उस सरकार का चन्द दिनों बाद वही हश्र हुआ जो होना चाहिये थे । उसके बाद प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा ने सरकार बनाई । धूमल के नेतृत्व में चुनावी जंग में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन आया । इससे पहले सत्ता पर रहने के बाद जब भाजपा हारती थी तो सात आठ सीटों तक ही सिमट जाती थी । लेकिन अब की बार जब २००३ में चुनाव हुये तो कांग्रेस ने चाहे ४३ सीटें जीतीं लेकिन भाजपा ने भी १६ सीटें प्राप्त कीं । कांग्रेस और भाजपा को प्राप्त मतों का अन्तर भी मात्र ५.६२ प्रतिशत ही था । २००७ के चुनावों में परिणाम इसके ठीक विपरीत रहा । भाजपा ने ४३.७८ प्रतिशत मत प्राप्त कर ४१ सीटें जीतीं जबकि कांग्रेस ३९.५४ प्रतिशत मत प्राप्त कर २३ सीटें जीत सकीं ।

इस पृष्ठभूमि में २०१२ के चुनावों के बारे में कयास लगाये जा रहे हैं । जो राजनीति में शुद्ध गणित को आधार बना कर चलते हैं ,उनके अनुसार तो इस बार बारी कांग्रेस की है । लेकिन जो लोग प्रो प्रेमकुमार धूमल की रणनीति से वाकिफ हैं वे जानते हैं कि धूमल गणित के प्रश्नों को प्रचलित सूत्रों से हल नहीं करते बल्कि उस के लिये जन जन में प्रचलित देसी सूत्रों का सहारा लेते हैं । हिमाचल में यह माना जाता रहा है कि ऊपरी या पुराना हिमाचल कांग्रेस का गढ़ है और निचला या नया हिमाचल भाजपा का गढ़ है । धूमल अच्छी तरह जानते हैं कि यदि यही गणितीय सूत्र लम्बी देर तक चलता रहा तो ” एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस ” की परम्परा को तोड़ा नहीं जा सकता । इसलिये उन्होंने पिछले पाँच साल में पुराने हिमाचल में भाजपा की जड़ें गहरी करने के लिये बहुत मेहनत की । वैसे किन्नौर में तो ठाकुर सेन नेगी ही भाजपा को स्थापित कर गये थे ,लेकिन शिमला और सिरमौर ज़िला को राजाशाही मनोविज्ञान से मुक्त करवाने में महत्वपूर्ण कार्य धूमल ने ही किया है । पिछले साल हुये उपचुनाव में राजा वीरभद्र सिंह के गढ़ रोहडू में भाजपा को जिताकर उन्होंने सभी को आश्चर्य चकित कर दिया था । अभी कुछ अरसा पहले सिरमौर ज़िला में कांग्रेस की परम्परागत सीट रेणुका पर भाजपा ने जीत का परचम फहराया तो उसके समर्थक भी हैरान थे । इसलिये वीरभद्र सिंह को अपने इन्हीं पुराने गढ़ों को बचाने के लिये इस चुनाव में ज़मीन आसमान एक करना पड़ रहा है । भाजपा इस बार इन क्षेत्रों में हाशिये की पार्टी नहीं बल्कि मुख्य पार्टी के रुप में चुनाव लड़ रही है ।

चुनाव से पहले मीडिया के एक वर्ग की सहायता से शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल में मतभेदों की बहुत चर्चा की जा रही थी । लेकिन अब जब चुनाव अभियान ने गति पकड़ ली है तो कांग्रेस के दुर्भाग्य से जमीनी धरातल पर वे मतभेद कहीं दिखाई नहीं दिये । ये दोनों नेता जिस प्रकार एकजुट होकर चुनाव अभियान में जुटे हैं उससे आम कार्यकर्ता तो उर्जावान हुआ ही है , प्रदेश की आम जनता के मन में छाया कोहरा भी छँट गया है । प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती युवा वर्ग को साथ जोड़ने की जो कवायद कर रहे थे, उसका स्पष्ट असर इस अभियान में देखा जा सकता है ।प्रदेश में भाजपा ने लगभग पन्द्रह नये और युवा चेहरे मैदान में उतारें हैं । हिमाचल प्रदेश में भाजपा एकजुट होकर चुनाव के मैदान में उतरी है, जिसका यक़ीनन चुनाव के नतीजों पर असर पड़ेगा । कहीं कहीं भाजपा के बागी प्रत्याशियों के असर को लेकर चर्चा अवश्य हो रही है ,लेकिन यह कष्ट कांग्रेस भी उसी सीमा तक भोग रही है । राजनैतिक पंडितों का मानना है कि विद्रोह से जहाँ तक नफ़ा नुक़सान का प्रश्न है वह दोनों दलों के लिये समान कारक ही रहेगा । इसलिये इससे केवल भाजपा प्रभावित होगी यह नहीं कहा जा सकता । वैसे भी कांग्रेस में तो दोनों ग्रुप एक दूसरे के घोषित प्रत्याशियों को ही हराने में लगे हुये हैं । ऐसी स्थिति भाजपा में नहीं है ।

इस चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा सकारात्मक धरातल पर वोट माँग रही है । प्रोफैसर धूमल प्रदेश की जनता से पाँच वर्षों में किये गये काम के आधार पर वोट माँग रहे हैं । जब वे अपनी उपलब्धियों की चर्चा करते हैं तो उनके चेहरे पर अात्म संतुष्टि का भाव झलकता है । प्रदेश को अनेक क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ काम करने के कारण ७२ पुरस्कार प्राप्त किये । सड़कों के मामले में तो हिमाचल प्रदेश पूरे हिमालयी राज्यों में रोल माडल माना जाता है । स्वास्थय क्षेत्र में अटल स्वास्थय योजना ने इस पहाड़ी राज्य में भी त्वरित मैडीकल सहायता को यक़ीन बनाया है । प्रो धूमल एक और योजना की चर्चा करते हैं । अटल बिजली बचत योजना । प्रदेश में साढ़े सोलह लाख घरेलू बिजली उपभोक्ता हैं । राज्य सरकार ने प्रत्येक उपभोक्ता को चार चार सी एफ एल मुफ्त दिये गये । इससे प्रदेश में २७० मिलियन यूनिटबिजली की बचत हुई और प्रदेश को एक सौ दस करोड़ रुपये की बचत हुई, जिसे प्रदेश के विकास के लिये खर्च किया गया । राज्य में जितने भी राशनकार्ड़ धारक हैं उनको हर महीने तीन दालें, दो खाद्यान्न तेल , राशन तथा नमक इत्यादि सस्ती दर पर उपलब्ध करवाया जा रहा है ।

शिक्षा के क्षेत्र में प्रदेश सरकार की प्रशंसा की जानी चाहिये । राज्य के कुल बजट का उन्नीस प्रतिशत शिक्षा पर खर्च किया गया । यही कारण है कि राज्य में साक्षरता की दर बढ़ कर ८३,७८ प्रतिशत हो गई है । इस क्षेत्र में वह अब केरल के बाद दूसरे नम्बर पर आता है । सड़क निर्माण के क्षेत्र में निश्चय ही धूमल गर्व कर सकते हैं । जिस प्रकार हिमाचल में शान्ता कुमार को पानी वाला मुख्यमंत्री कहा जाता है उसी प्रकार प्रेमकुमार धूमल को सड़क वाला मुख्यमंत्री कहा जाता है । प्रदेश में ३४०० किलोमीटर नई सड़कों और २६० नये पुलों का निर्माण किया गया । सभी जानते हैं कि पहाड़ में सबसे ज्यादा खर्च वाला और कठिन काम सड़क बनाने का ही होता है । शिमला के डोडरा कवार और कांगड़ा के छोटा भंगाल जैसे दुर्गम क्षेत्र को भी सड़क मार्ग से जोड़ा गया । आम जनता के लिये स्वास्थ्य बीमा योजना शुरु की गई । ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को सस्ता राशन दिया जा रहा है । ६५ वर्ष के ऊपर के लोगों को जिनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है,राज्य सरकार उनको मुफ्त चावल दिये जा रहे हैं ।

प्रो धूमल मानते हैं कि कृषि और पर्यटन दो ऐसे क्षेत्र हैं जो िहमाचल की आर्थिकी को मज़बूत कर सकते हैं । सरकार कृषि के क्षेत्र में मौसमी फसलों को बीमा के दायरे में लाई गई । पर्यटन के क्षेत्र में आधारभूत संरचना के निर्माण में सरकार ने ४२८ करोड़ रुपये किये जा रहे हैं । प्रदेश में प्लास्टिक और गुटखा को प्रतिबन्धित किया गया । हिमाचल को कार्बन न्यूटरल राज्य बनाने के प्रयास हो रहे हैं ।जनसेवा गारंटी अधिनियम पारित किया गया है । इसके अतिरिक्त प्रेमकुमार धूमल के पास राज्यसरकार की उपलब्धियों की लम्बी फेहरिस्त है । और ये उपलब्धियां प्रदेश में जमीनी स्तर पर अनुभव की जा रही हैं ।

इसके विपरीत कांग्रेस की समस्याएं दिन प्रतिदिन बढती ही जा रही हैं । वीरभद्र पर भ्रष्टाचार के इतने आरोप लगे हैं कि उनका उतना समय चुनाव प्रचार में नहीं बीतता जितना इन आरोपों पर सफाई देने में । लेकिन अपने आप को पाक साफ़ सिद्ध करने की हड़बड़ी में उन्होंने एक ऐसा क़दम उठाया जिससे प्रदेश में उनकी भद््द भी पिट रही है और वे पाक साफ़ की बजाय ज्यादा धब्बेदार दिखाई देने लगे हैं । प्रदेश में बसपा के पूर्व अध्यक्ष विजय सिंह मनकोटिया एक लम्बे अरसे से वीरभद्र पर आचरण और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाते रहते हैं । मनकोटिया द्वारा दिये गये इन्हीं सबूतों के कारण न्यायालय ने राजा पर आरोप तय किये जिसके कारण उन्हे अपमानजनक ढं़ग से केन्द्रीय मंत्रिमंडल से रुख्सत होना पड़ा । लेकिन अब वीरभद्र सिंह ने उसी मनकोटिया के आगे एक किस्म से आत्मसमर्पण करते हुये उसे कांग्रेस में शामिल ही नहीं किया उसे शाहपुर से टिकट भी थमा दिया । प्रदेश भर में आश्चर्य प्रकट किया जा रहा है कि आखिर मनकोटिया के पास राजा के ऐसे क्या रहस्य हैं जिनके चलते वे उसके आगे आत्मसमर्पण कर रहे हैं । उनके इस क़दम ने उनकी विश्वसनीयता पर तो प्रश्न चिन्ह लगाया ही उनके आचरण को भी संदेह के घेरे में ला दिया है ।

चुनाव के इस अवसर पर कांग्रेस की भीतरी फूट पार्टी के लिये विनाशक सिद्ध हो रही है । चुनावी रणभूमि में भी वीरभद्र सिंह और शेष कांग्रेसियों में गोलाबारी थम नहीं रही है । वीरभद्र सिंह चुनाव प्रचार के बीच बीच में प्रदेशवासियों को बाकायदा सूचना देते रहते हैं कि उनके खिलाफ़ भ्रष्टाचार के तथ्य और कोई नहीं बल्कि पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कौल सिंह के रिश्तेदार ही मीडिया को मुहैया करवा रहे हैं । कौल सिंह भी तुरंत फुरत अपना चुनाव अभियान रोककर जवाब देते हैं कि वीरभद्र को कौल सिंह फोबिया हो ग़या है । इस समय सोनिया गान्धी के खास सिपाहसलार केन्द्रीय मंत्री आनन्द शर्मा रैफरी की भूमिका में उतर आते हैं और प्रदेश की जनता को बताते हैं कि कौल सिंह बड़े नेता हैं और अवश्य जीतेंगे । सारा प्रदेश चुनाव के दौरान यह प्रहसन देख रहा है ।

वीरभद्र सिंह के लिये एक और सिरदर्दी है । सोनिया गान्धी ने प्रदेश में चुनाव की बागडोर तो उनको थमा दी लेकिन टिकटों के आवंटन में तरजीह राजा विरोधी धड़े को ही दी । वीरभद्र सिंह बमुश्किल अपने बीस पच्चीस लोगों को टिकट दिलवा पाये । कांग्रेस के भीतर यह तो सभी जानते हैं कि वीरभद्र सिंह सोनिया की पहली पसन्द नहीं हैं । अत: यदि सरकार बनाने की नौबत आई भी तो सोनिया गान्धी हिमाचल प्रदेश में भी हरियाणा व उत्तराखंड़ की तरह किसी हुड्डा या विजय बहुगुणा की तलाश नहीं करेंगी ? यह कौन कह सकता है ,। इस वातावरण में जाहिर हैं कि वीरभद्र सिंह अपने व्यक्तिगत समर्थकों को जिताने के लिये ही जोर लगायेंगे । इस उम्र में अपने घोंसले में कोयल के अंडे सेने की जहमत वे क्यों लेंगे ? अलबत्ता उन अंडों को चूजे निकलने से पहले ही वे उन को नष्ट करने की कोशिश करें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये । कांग्रेस की ये भीतरी माईनज एक प्रकार से भाजपा को ही लाभ पहुँचा रही हैं । वैसे भी प्रदेश में कांग्रेस की लड़ाई भाजपा से इतनी नहीं लड़ रही जितनी अपने आप से ।

कमरतोड़ मंहगाई भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है । मंहगाई ने इस पहाड़ी प्रदेश के लोगों की , जिनकी आय के साधन पहले ही सीमित हैं, हिला कर रख दिया है । केन्द्रीय मंत्रिमंडल में नित्य प्रति उजागर हो रहे घोटालों एवं मंहगाई का संयुक्त प्रभाव ही है कि प्रदेश में केन्द्रीय सरकार के खिलाफ़ एन्टी इनकम्बैसी फैक्टर की हवा साफ़ देखी जा सकती है । शायद यही कारण है कि वीरभद्र सिंह की बौखलाहट अब सार्वजनिक रुप से सामने आने लगी है । हमीरपुर की एक जनसभा में उन्होंने कहा कि मैं तो जन्मजात राजा हूं । जब पत्रकारों ने जन्मजात राजा को उनके भ्रष्टाचार के तथ्यों से रू-ब-रू करवाया तो उन्होंने कैमरा तोड़ देने की धमकियाँ देनी शुरु कर दीं । शायद यही कारण था कि जन्मजात राजा के सहारे जब सोनिया गान्धी चुनाव प्रचार के लिये मंडी पहुँचीं तो ऐतिहासिक पड्डल मैदान का काफ़ी हिस्सा खाली पड़ा था । वैसे भी हिमाचल प्रदेश में पुरानी नजीर है कि सोिनया इस प्रदेश में यहां भी प्रचार के लिये गईं हैं वह सीट कांग्रेस ने अवश्य हारी है । चुनाव का नतीजा क्या निकलता है यह तो समय ही बतायेगा , लेकिन फिलहाल तो भाजपा के आक्रामक चुनाव प्रचार के आगे वीरभद्र सिंह रक्षात्मक मुद्रा ही अपनाये हुये हैं । कभी कबच से बाहर निकलते भी हैं तो कांग्रेस के ही कौल सिंह ,गुरूमुख सिंह बाली और आनन्द शर्मा जैसों के प्रहारों का डर बना रहता है । ऐसी स्थिति में यदि धूमल प्रदेश में ” एक बार कांग्रेस ,एक बार भाजपा ” की परम्परा को तोड़ पाते हैं तो एक नया इतिहास लिखा जायेगा । पड़ोसी राज्य पंजाब ने इसे आश्चर्यजनक ढंग से कर दिखाया है ,लगता है अब हिमाचल प्रदेश की बारी है ।

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