डिजिटल इंडिया और फिट इंडिया में हिंदी।

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 अंग्रेजी भाषा के बढ़ते प्रभाव और हिंदी की उपेक्षा को रोकने के लिए 14 सितंबर को हर वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है ।अन्य दिवसों की तरह इस दिन भी हिंदी की खूब चर्चा होती है और इसकी महानता पर व्याख्यान होता है ।और हिंदी को विलुप्त होने से बचाने के लिए आह्वान किया जाता है। राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने  सन् 1918 में हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था ।और हिंदी को गांधी ने जनमानस की भाषा कहा था। लेकिन आजादी के बाद धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की तरह देश भाषा निरपेक्ष भी बन गया। आज हिंदी और अंग्रेजी राजभाषा है मगर हिंदी राष्ट्रीय भाषा का दर्जा आजादी के 7 दशक बाद भी नहीं पा सकी ।स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए काका कालेकर ,मैथिलीशरण गुप्त, हजारी प्रसाद द्विवेदी ,सेठ गोविंद दास, आदि साहित्यकारों ने भरसक प्रयत्न किया मगर सफलता नहीं मिली। आजादी मिलने के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था। और इसके बाद हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। अनेकता में एकता ही भारतीयता की मुख्य पहचान है।इंद्र धनुषी समाज, परंपरा और संस्कृति  इसको सुशोभित करती है। यहां विभिन्न धर्मों के अनुयाई हैं,विभिन्न भाषाएं और बोलियां हैं ,भेषभूषा भी अनेकों हैं। एक ही चीज है जो इन सभी अनेकताओं को एक सूत्र में पिरोता है ,वह है भारत का संविधान ।और संविधान से निकली धाराएं जनकल्याण और लोक कल्याणकारी राज्य की भावना को साकार करता है ।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है।

     हिंदी विश्व की तीसरी और भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है ।हिंदी को इसका नाम फारसी भाषा के शब्द से मिला है। और एक सच्चाई यह भी है कि हिंदी भारत की राजभाषा तो है मगर हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने या हिंदी को अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों की तरह जैसे -भारत का राष्ट्रीय चिन्ह ,भारत का राष्ट्रीय पशु, भारत का राष्ट्रीय फूल ,आदि की तरफ हिंदी को भी राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए स्वतंत्रता के बाद प्रयास होते रहे लेकिन सिर्फ प्रयास करने मात्र से ही इस समस्या का समाधान नहीं हो सका। संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत की 22 भाषाएं सम्मिलित हैं । ये इस बात की द्योतक है कि सभी का संवैधानिक रूप से समान अधिकार है। अगर इन 22 संवैधानिक दर्जा प्राप्त भाषाओं में से हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाता है तो अन्य भाषा क्षेत्रों से इसके विरोध के स्वर उठने लग जाएंगे। और जिससे देश का माहौल खराब हो सकता है क्योंकि भारत कई समस्याओं से जूझ रहा है। हिंदी राष्ट्रीय भाषा बने या न बने हिंदी की अपनी पहचान है और हिंदी से ही हिंदुस्तान की पहचान मानी जा सकती है। 

            भारत के प्रधानमंत्री   देश को वैज्ञानिकता की ओर ले जाने ,साइंस और टेक्नोलॉजी की ओर बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं ।डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, बुलेट ट्रेन ,स्मार्ट सिटी , फिट इंडिया आदि कई अभियान चलाए गए हैं। लेकिन इन अभियानों में हमें  कही भी हिंदी की झलक नहीं मिलती है ।हम हिंदी जिसे हिंदुत्व की भावना को जोड़ सकते हैं ,उसे हम राष्ट्रीयता की भावना को उजागर कर सकते हैं ।मगर इससे हम अंतरिक्ष नहीं लांघ सकते हैं ।हिंदी से हम डिजिटल इंडिया के दौर में पश्चिमी देशों का मुकाबला नहीं कर सकते हैं। “भारत की राजव्यवस्था “पुस्तक के लेखक लक्ष्मीकांत लिखते हैं -संविधान में न्यायपालिका विधायिका  एवं विधायिका की भाषा के संबंध में किये गए उपबन्ध निम्नलिखित है -1- जब तक संसद अन्यथा यह व्यवस्था न दे ,निम्नलिखित कार्य केवल अंग्रेजी भाषा में होंगे-(अ)उच्चतम न्यायालय व प्रत्येक उच्च न्यायालय की कार्यवाही।(ब)केंद्र और राज्य स्तर पर सभी विधेयक ,अधिनियम,अध्यादेश, आदेश,नियमों व उप – नियमों के आधिकारिक पाठ।

   हालांकि संसद ने उच्चतम न्यायालय में हिन्दी के प्रयोग के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की है ।अतः उच्चतम न्यायालय केवल उन्हीं याचिकाओं को सुनता है ,जो केवल अँग्रेजी में हों।सन 1971 में एक याचिकाकर्ता द्वारा  हिंदी में बहस के लिए एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका उच्चतम न्यायालय में प्रस्तुत की गई परंतु न्यायालय ने उस याचिका को इस आधार पर निरस्त कर दिया कि वह अंग्रेजी में नहीं है तथा हिंदी का प्रयोग असंवैधानिक है।

हिंदी दिवस के उपलक्ष में भाषणों में सभी यही कहेंगे कि हिंदी को हमें अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए लेकिन हिंदी को राष्ट्रीय भाषा कहने वाले खुद कान्वेंट स्कूलों से पढ़े होते हैं । आज  हर कोई अपने ब्च्चों को आईआईटी या एमबीबीएस कराना चाहते हैं,कंप्यूटर सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनाना चाहते है,विदेश में पढ़ाना चाहते है आखिर क्यों?इसका सीधा जबाब निकलता है कि हिंदी माध्यम से पढ़ाई कर हम पश्चिमी मुल्कों के साथ  मुकाबला करने में समर्थ नहीं हो सकते हैं। हमने न यंत्र खोजे हैं,न कंप्यूटर खोजा है ,न इंटरनेट खोजा है।मेडिकल और इंजीनियरिंग किताबें सब अंग्रेजी में ही हैं। पहले ऊपर से तो शुरूवात हो क्योंकि न्याय के लिए भी भारतीयों को अंग्रेजी में ही याचिका डालनी पड़ती है।जो भाषा आज सर्वाधिक दान करेगी वही भाषा जगत की भाषा बनेगी।भारत को  इतना समर्थ होना पड़ेगा, इतने आविष्कार ,इतने वैज्ञानिक पैदा करने होंगे,तब हमारी हिंदी राष्ट्रभाषा क्या जागतिक महत्व की हो सकती है।आज के वैज्ञानिक युग में हम सिर्फ हिंदी के सहारे ही चाँद या मंगल तक नहीं पहुंच सकते हैं। आज अंग्रेजी को भारत में गुलामी का प्रतीक माना जाता है लेकिन हम कहीं न कहीं यह भूल जाते हैं कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा भी प्राप्त की हुई है।

       देश की आजादी के लिए सभी भाषाओं के लोग लड़े थे और आजादी के बाद भी भारत निर्माण में सभी विभिन्न भाषाई प्रान्तों के लोग अपना योगदान दे रहे है।भाषा कोई भी हो भावना राष्ट्रीयता की होनी चाहिए।भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है ।और  ये कहा जाए कि भाषा निरपेक्ष भी है तो गलत नहीं होगा।

आई.पी. ह्यूमन 

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