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हिंदी ग़ज़ल - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
अविनाश ब्यौहार उपदा का कमाना है। वाइज़ का जमाना है।। बुतों का यह शहर है, बाजों को चुगाना है। जंगल में बबूलों के, खिजाँ को ही आना है। सपनों का खंडहर है, भूतों को बसाना है। बस नाम के कपड़े हैं, फ़क़त अंग दिखाना है। बहार की जुस्तजू क्या, जब…