हिंदी ग़ज़ल

अविनाश ब्यौहार

तूफाँ की अलामत है।
फिर भी सब सलामत है।।

बदगोई का अक्स औ,
उसकी ही जसामत है।

वे तो मतलब धन्य हैं,
ईश्वर की नियामत है।

जिस पर भी भरोसा था,
वह करता हजामत है।

लाड़ प्यार की जगह पर,
होती अब मलामत है।

लुब्ध करता ताजमहल,
आखिर में क़दामत है।

नौबहार बाग में हो,
आई क्यों कयामत है।

अविनाश ब्यौहार,
रायल एस्टेट कटंगी रोड
जबलपुर।

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