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हिंदी गजल - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
अविनाश ब्यौहार देश का नहीं उनका विकास है। जिनके तन पर महँगा लिबास है।। रहजनी रात के अंधेरे में, दिन में उनकी इज्जत झकास है। वे बैठे मिले तनहाईयों में, क्यों लगा कि कोई आस पास है। दफ्तर ज्यों पीपल का पेड़ हुआ, देव नहीं बल्कि जिन का वास है।…