भोपाल,14 सितंबर। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में हिन्दी दिवस के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने इस अवसर पर कहा कि हिन्दी भाषा को दीन-हीन मानना एक गलत सोच है। हिन्दी भाषा दीन-हीन नहीं बल्कि दिन-ब-दिन प्रभावशाली और सम्पन्न हो रही है। हिन्दी भाषा की यह खासियत है कि यह हर भाषा के शब्दों के साथ सामंजस्य बैठा लेती है। चाहे मनोरंजन का क्षेत्र हो, राजनीति हो या विज्ञापन। हिन्दी सब जगह अपनी पैठ लगातार बढ़ा रही है।
कार्यक्रम में विभाग के विद्यार्थियों ने विभिन्न कार्यक्रम पेश किए। बीजेएमसी के ओमप्रकाश पवार ने मजबूत इच्छाशक्ति को हिन्दी भाषा की दशा सुधारने का एकमात्र मंत्र बताया। प्रगति तिवारी ने कविता के माध्यम से हिन्दी भाषा के इस दर्द को उजागर किया कि उसको केवल हिन्दी दिवस के दिन ही याद किया जाता है। आलोक पाण्डेय ने हिन्दी भाषा के बीते और आने वाले कल के बारे में अपने विचार रखे। एमएएमसी की छात्रा शाहीन बानो ने इस अवसर पर गजल प्रस्तुत की। ‘कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे’ नीरज का यह सुप्रसिद्ध गीत विकास मिश्रा ने प्रस्तुत किया। पुनीत कुमार पाण्डेय ने हिन्दी भाषा के विभिन्न कालों के इतिहास के बारे में उपयोगी जानकारी दी। अभिषेक कुमार झा ने कविता पाठ किया। इसी क्रम में एमएएमसी तृतीय सेमेस्टर के छात्र संजय शर्मा ने अपने अनुभवों को कविता के माध्यम से लोगों के बीच रखा। कृष्ण कुमार तिवारी, बिकास शर्मा एवं देवाशीष मिश्रा ने भी कविता पाठ किया। इस अवसर पर विभाग की व्याख्याता डॉ. मोनिका वर्मा, सन्दीप भट्ट, शलभ श्रीवास्तव, पुर्णेन्दु शुक्ल सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी मौजूद रहे। संचालन एमएएमसी की छात्रा एन्नी अंकिता एवं सोनम झा ने किया।
“हिन्दी एक सम्पन्न भाषा : द्विवेदी”
संजय द्विवेदी जी,
(१) आश्वस्त्व हुए कि हिन्दी हीन नहीं रही है. हिन्दी सब जगह बढ़ रही है.
(२) हिन्दी के भविष्य की चिंता कर, आम हिन्दी प्रेमी रो-धो रहा है ; और अधिक गति से आगे बढ़ने के कदमों के अभाव पर सोच रहा है.
(३) योजनाबद्ध प्रगति के लिए आम हिन्दी हितेषी को क्या करना चाहिए – मार्ग दर्शन करें.
धन्यवाद.
॥अथाऽतो राष्ट्र भाषा जिज्ञासा॥
सारे राष्ट्र भाषा हितैषियों से निम्न विचार बिंदुओं पर सोचने के लिए बिनती:
कुछ ऐतिहासिक, विशेषतः उत्तर भारतीयों की गलतियों के कारण ही, दक्षिण में राष्ट्र भाषा को स्वीकार कराने में अधिक कठिनाइयां खडी हुयी थी।{ऐसा पूरी प्रामाणिकता से मानता हूं}
॥गलती थी उर्दू प्रचुर हिंदी का बढावा॥
संस्कृत प्रचुर (बहुल) हिंदी ही सारे भारत में लागु करनेमें कम कठिनाई होगी।
जिस गलती के कारण हमें राष्ट्र भाषा प्राप्त ना हुयी उसे दोहराना अनुचित है।==
(१) संस्कृतमें २००० धातु, २२ उपसर्ग, और ८० प्रत्यय, केवल इन्हीके आधारपर ३५ लाख शब्द रचे जा सकते हैं। इससे अतिरिक्त समास, संधि इनका आधार ले तो संख्या अनेक गुना हो जाती है।{इतने तो “अर्थ” भी होते नहीं है}
संस्कृतमें शब्द रचना का अनुपम शास्त्र है।
(२)अभी किसी भी विशेष आर्थिक प्रोत्साहन बिना ही, हिंदी भारतमें कुछ फैली है। मुरारी बापु गुजरातमें भी तुलसी रामायण{संस्कृत प्रचुर हिंदी} पर ही प्रवचन करते हैं।
(३) बंगलूरू प्रवासपर गया हुआ मेरा मित्र, रामानंद सागर के रामायण को दूर दर्शन पर देखने के लिए, बाहर आंगनमें खडी भीड में लोग इकठ्ठे देखकर चकित होता है। पूछनेपर पता चलता है, कि यह रामायण की हिंदी (संस्कृत निष्ठ) समझने में इन्हे कम कठिन प्रतीत होती है।
(४)दक्षिण भारतीयों के नाम, जैसे रामन, कृष्णन, राधाकृष्णन, स्वामीनाथन ….इत्यादि संस्कृत ही होते हैं।
(५) पाठ: (जो उत्तर भारतीयों के लिए समझने में शायद कठिन है) कि, “==दक्षिण में भी संस्कृत प्रचुर (बहुल) राष्ट्र भाषा स्वीकृत कराना सरल है।==” उत्तर भारतीय इस बिंदुकी ओर दुर्लक्ष्य़ करके हिंदी की हानि (की थी) और करते हैं।आज तक की गलतियां फिरसे ना दोहराएं। आप राष्ट्र भाषाकी हानि कर सकते हैं।
(५) इसे “राष्ट्र भाषा भारती ”{हिंदी नहीं} नाम देनेसे और ==”
(६) सारे **”गैर उत्तर भारतियों की समिति”** गठित करनेसे काम सरल होगा।
(७) व्याकरण खडी बोलीका, शब्द सारी(तमिल — कश्मिर, उर्दु सहित सभी) भाषाओंसे लिए गए, हो। नौकरियों में उन्नति “भाषा भारती” के आधारपर हो। फिर देखिए “भाषा भारती” आगे बढती है, या नहीं? बहुत कुछ कहना है, पर संक्षेप में अभी यहीं छोडता हूं।मैंने इस विषयपर कुछ चिंतन/मनन/विचार/लेखन किया है।
वैसे कोई प्रश्न खडा होता है, तो (प्रवास पर हूं) २० सितंबर के बाद उसका उत्तर दूंगा।
टिप्पणीकार गुजराती मातृभाषी है।स्ट्रक्चरल(निर्माण अभियांत्रिकी) इन्जिनीयरिंग के प्रोफ़ेसर है, और निर्माण की शब्दावलि पर काम कर रहे हैं।
University of Massachusetts at Dartmouth, USA
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ….
भाषा का सवाल सत्ता के साथ बदलता है.अंग्रेज़ी के साथ सत्ता की मौजूदगी हमेशा से रही है. उसे सुनाई ही अंग्रेज़ी पड़ती है और सत्ता चलाने के लिए उसे ज़रुरत भी अंग्रेज़ी की ही पड़ती है,
हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं
एक बार इसे जरुर पढ़े, आपको पसंद आएगा :-
(प्यारी सीता, मैं यहाँ खुश हूँ, आशा है तू भी ठीक होगी …..)
https://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_14.html