अपनी खोई शान मांगती .
बहुत हो गया, हिंदी-जननी
अपनी इक पहचान मांगती.
हिंदी अब बलिदान मांगती .
अंगरेजी की जय-जय कब तक?
अपना गौरव- गान मांगती.
जहां खिले सारी भाषाए,
हिंदी वो उद्यान मांगती.
हिंदी अब बलिदान मांगती.
मै हूँ जन-गन-मन की भाषा
अपना यह सम्मान मांगती.
हिंदी अब बलिदान मांगती.
खून नहीं, हम प्यार बाँटते
हिंदी वही जहान मांगती
हिंदी अब बलिदान मांगती .
-गिरीश पंकज
Bahoot achhi rachna hai………..
subhkamnayen