हिंदू की बदनामी, हिंदू का बदला!

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sonia-manmohanइसरत जहां, साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, असीमानंद को मोहरा बना कर कांग्रेस ने मनमोहन सरकार के वक्त अपनी जो राजनीति की उससे सवाल उठता है कि आखिर सोनिया गांधी ने ऐसा क्यों किया या होने दिया? कोई माने या न माने, अपना मानना है कि सोनिया गांधी की कांग्रेस अध्यक्षता के देश-दुनिया में भले कई अर्थ हों मगर इतिहास में, भारत की राजनीति में उनका योगदान नरेंद्र मोदी, अमित शाह की तख्तपोशी से याद रखा जाएगा। सोनिया गांधी और उनके मैनेजरों ने ऐसी राजनीति की जिससे हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति को पंख लगे! क्यों? इसलिए कि सोनिया गांधी ने कांग्रेस का बुनियादी चरित्र बदला। महात्मा गांधी की रामधुनी वाली कांग्रेस को उन्होंने हिंदू विरोधी बनवाया। सन् 2004 से 2014 के बीच कांग्रेस ने जो किया उसने हिंदू को दुनिया में बदनाम बनाया। बदनामी का वह प्रचार ‘भगवा आतंक’ का था। राहुल गांधी विदेशी नेताओं से बात करते हुए ‘हिंदू आतंकवाद’ की फिक्र बताते थे तो सोनिया गांधी गुजरात की सभाओं में नरेंद्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहती थीं। अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह हर बात में आरएसएस, भाजपा पर हमले करते थे। भगवा आतंक का राग अलापते थे। दिल्ली में बाटला हाऊस की मुठभेड़ हो या गुजरात में पुलिस-आतंकी मुठभेड़, सबमें समझाया जाता था कि जो सामने है उसे सत्य नहीं मानें। हकीकत हिंदू कट्टरता है न कि मुस्लिम कट्टरता!

हां, ये बातें ही वह धीमी-धीमी आंच थी जिससे हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति पकी। कांग्रेस ने भगवा आतंकवाद को सियासी साजिश में प्रतिपादित किया। मनमोहन सरकार और चिदंबरम जैसे उनके गृह मंत्री समझौता एक्सप्रेस से ले कर मालेगांव की आतंकी घटनाओं में एनआईए को घुसेड़ कर एंगल निकलवाते थे कि हिंदू आतंकवाद बहुत गंभीर है। दुनिया ने दस सालों में इस्लामी कट्टरवाद, आतंकवाद को सतत झेला, उसकी चिंता में वह दुबली हुई मगर भारत में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, दिग्विजय सिंह से ले कर पी चिदंबरम ने बहस चलवाई कि इस्लामी आतंकवाद एक पहलू है दूसरा पहलू हिंदू आतंकवाद है जिस पर देश-दुनिया को ध्यान देना चाहिए!

इस थीसिस के लिए क्या कुछ नहीं किया गया! हर तरह का प्रोपेगेंडा, झूठ और जांचें बैठाई गई। लॉजिक इस मनोविज्ञान पर भी था कि मुस्लिम आतंकवादी यदि हरकत करता है तो प्रतिक्रिया होगी ही। हिंदू बदले की भावना में बम का जवाब बम से देने की सोचने लगा है। इसी पर फिर हिंदू भावना, हिंदू प्रतिक्रिया और हिंदू संगठनों में जो चपेटे में आए वह आ जाए। सो अभिनव भारत से ले कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभी को विलेन बना दिया गया।

यह कांग्रेस का हिंदू के साथ ‘भगवा आतंकवाद’ का बैगेज नत्थी करना था। इसका रेडिमेड मसाला दंगों की पृष्ठभूमि के कारण गुजरात था। 2004 से कांग्रेस के लिए गुजरात, नरेंद्र मोदी, अमित शाह और आरएसएस बतौर खलनायक पहले से मौजूद थे। ये ही राजनैतिक तौर पर मुख्य चुनौती भी थे। इनसे अपने आप दिल्ली का सेकुलर मीडिया कांग्रेस और मनमोहन सरकार की हां में हां मिलाने वाला था। मोदी जब हिंदू ऑईकान, राष्ट्रवादी हिंदू राजनीति के प्रतिनिधि तो इन्हें ही विलेन बना कर इस हवाले अपने को महानायक बनाने की राजनीति कांग्रेस के लिए आसान रास्ता था। एक तरफ देश में, दुनिया में एक के बाद एक मुस्लिम आतंकी घटनाओं की थर्राहट तो दूसरी और उसको बैलेंस करने के लिए कांग्रेस की यह कोशिश की आतंकवाद भगवाई रंग भी लिए हुए है।

2004 से औऱ खासकर 2008 से 2014 के बीच कांग्रेस, मनमोहन सरकार ने मानो यह मिशन बना रखा था कि मुस्लिम आतंकवाद के आगे हिंदू आतंकवाद पर राष्ट्रीय बहस, वैश्विक हल्ला हो!

यह सोनिया गांधी का, उनकी कमान में कांग्रेस का हिंदुओं को कलंकित करना था। यही सोनिया गांधी का अपने पांवों कुल्हाड़ी मारना था। इसलिए कि सोनिया गांधी और उनके मैनेजरों ने कभी सोचा ही नहीं कि हिंदू का अवचेतन सामूहिक तौर पर रिएक्ट हो सकता है। ये सोचते रहे कि हिंदू तो अलग-अलग बंटा हुआ है। हिंदू वह जानवर है, वह ढोर है जिसे जनवादी, सेकुलर मीडिया के शोर से हांका जा सकता है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी या उनके मैनेजर शायद अभी भी नहीं समझे होंगे कि यदि उनकी इतिहास की सबसे बुरी हार हुई और 44 सीटों पर कांग्रेस सिमटी है और ऐसा थोक के मुस्लिम वोटों के एकतरफा व्यवहार के बावजूद हुआ है तो यह हिंदू अवचेतन के सामूहिक गुस्से का भी नतीजा है।

अपना मानना है जैसे नरेंद्र मोदी को गलतफहमी है कि लोग उनके विकास, मार्केटिंग के नुस्खों से उल्लू बने और राष्ट्रवादी हिंदू राजनीति का रोल नहीं रहा वैसे सोनिया-राहुल इस गलतफहमी में हैं कि उनकी पराजय में हिंदू बेकलास याकि गुस्से का रोल नहीं है जबकि नरेंद्र मोदी, अमित शाह बने ही हिंदू राजनीति के कारण हैं। उस राजनीति को हवा सोनिया गांधी, उनके मैनेजरों की करनियों से मिली। बाकी सब छोटी-मोटी बातें हैं। जैसे मुसलमान ने 2014 में या आज हिंदू राजनीति को पराजित करने का संकल्प लिया हुआ है वैसे ही मई 2014 में हिंदू अवचेतन का संकल्प था और यह संभावना अभी भी है व यदि नीतीश कुमार ने संघ-विरोधी याकि हिंदू विरोधी राजनीति में कांग्रेस को गुमराह किया तो फिर 2019 में भी वही संभव है।

पर वह बाद की बात है। फिलहाल मुद्दा यह है कि सोनिया, राहुल गांधी और कांग्रेस को क्या अभी भी बोध हुआ है कि ‘भगवा आतंक’ का हल्ला बनवा उसने हिंदुओं में अपने प्रति कैसी एलर्जी पैदा की है? उसने अपने को कितना समेटा है? क्या था इसके पीछे सियासी हिसाब?

2 COMMENTS

  1. कांग्रेस यदि पुनः स्थापित होना चाहती है तो उसे सोनियां और राहुल से छुटकारा अवश्य पा लेना चाहिए । या मरने के लिए तैयार रहे ।

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