हिंदू-मुस्लिम साझी विरासत

क्या आप हमारी इस साझी विरासत के बारे में जानते हैं जिसमें हिन्दू धर्म व इस्लाम में सांस्कृतिक समावेश और मेलजोल के कुछ अनोखे उदाहरण मिलते हैं जैसे:

1. अवध के नवाब तेरह दिनों तक होली मनाते थे। नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में कृष्ण रासलीला खेली जाती थी। भगवान हनुमान के सम्मान के तहत राज्य में बंदरों को मारना कानूनी अपराध था। एक मुसलमान लेखक ने सुविख्यात नाटक ‘‘इन्द्र सभा’’ का मंचन किया जिसे तमाम जनता बड़े चाव से देखती थी। जब अंग्रेज़ों ने अवध के राजा को वनवास देकर अवध से निकाल दिया, तब प्रजा रो-रोकर ‘‘राम जी को फिर हुआ वनवास’’ गीत गाती थी। नवाब का कलकत्ता का महल जिसमें वह नजरबंद रहते थे ‘‘राधा मंजिल’’ कहलाता था।

2. रामभक्त गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना अपने प्रिय मित्रा अब्दुल रहीम खानखाना, जो बनारस के गवर्नर थे, के संरक्षण में रह कर की। रहीम खानखाना कृष्ण भक्त थे और आज भी उनके दोहे हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं। बनारस के शक्तिशाली ब्राह्मण पंडे तुलसीदास को नुक़सान पहुंचाना चाहते थे। वे चाहते थे कि तुलसीदास रामचरित मानस की रचना आम बोलचाल की भाषा में नहीं बल्कि शुद्ध संस्कृत में करें।

3. पंजाबी सूफी कवि गुरु बाबा बुल्लेशाह का असली नाम माधव लाल हुसैन था, जो कि न हिन्दू न मुसलमान नाम है। उनकी सबसे पसंदीदा पंक्तियां थीं: ‘‘मस्जिद ढा दे, मंदिर ढा दे, ढा दे जो कुछ ढाहंदा, पर किसी दा दिल ना ढाई, रब दिलों विच रहदां’’।

4. अहमदाबाद की सूफी सुहागनें खुद को भगवान की दुल्हन मानती थीं। वे हिन्दू दुल्हनों की तरह शृंगार करती थीं, लाल सिंदूर लगाती थीं। आज तक लाल सिंदूर और कांच की चूडि़यां (उनके दरगाह पर) चढ़ाई जाती हैं।

5. मुगल सम्राट शाहजहां के प्रिय कवि का नाम जगन्नाथ पंडित राज था जिन्हें सम्राट ने ‘कवि राय’ की उपाधि से नवाज़ा था। कवि राय हिन्दी व संस्कृत में रचनाएं लिखते थे। मुमताज़ महल बेगम की प्रशंसा में गीत लिखने वाले मुख्य कवि थे, श्री बंसीधर मिश्रा और हरि नारायण मिश्रा। राज्य में मनेश्वर, भगवती और बेदांग राजा नामक अन्य विद्वान भी थे जो ज्योतिष-शास्त्रा की रचनाएं करते थे और उन्हें सम्राट को (संस्कृत में) समझाते थे।

6. प्रसिद्ध मराठा राजा शिवाजी की फौज में हिंदू व मुसलमान दोनों अफसर थे। शिवाजी सभी धर्मों को समान आदर देते थे। उनकी प्रजा और सेना को सख्त निर्देश थे कि वे औरतों, बच्चों और कुरान, गीता आदि धार्मिक ग्रंथों का कभी अनादर नहीं करेंगे और न ही उन पर हमला करेंगे।

7. स्वर्ण मंदिर की नींव गुरु अर्जुन देव के प्रिय मित्र हज़रत मियां मीर ने रखी थी, जो एक मुसलमान सूफी थे। मियां मुगल युवराज दारा शिकोह के गुरु भी थे। बचपन में गुरु अर्जुन देव ने दारा शिकोह की जान बचाई थी। जिसके कारण दोनो में बहुत स्नेह था।

8. गुरु नानक के जीवन भर के साथी थे मियां मरदाना, जो एक मुसलमान थे और रबाब वादक थे। मियां मरदाना गुरुवाणी गाने वाले पहले गायक हैं। कहा जाता है कि मियां मरदाना गुरु नानक के साथ हरिद्वार से मक्का तक घूमे। मियां मरदाना के वंशज पांच सौ साल तक स्वर्ण मंदिर में रबाब बजाते थे। यह किस्सा सन् 1947 में बंटवारे के साथ खत्म हुआ।

9. रसखान एक मुसलमान कृष्ण भक्त थे जो एक बनिये के बेटे को कृष्ण का अवतार मानकर उसकी पूजा करते थे। वे उसके नजदीक रहने के लिए वृंदावन में संन्यासी का जीवन व्यतीत करने लगे। रहीम, हज़रत सरमद, दादू, बाबा फरीद जैसे बहुत से मुसलमान कवियों ने बड़ी तादाद में कृष्ण भक्ति से ओत-प्रोत रचनाएं की जिनमें से कुछ गुरु ग्रंथ साहिब में पायी जाती हैं।

10. मुसलमान राजा बाज बहादुर और राजपूत पुत्राी रूपमति के प्रेम के किस्से मांडू में आज भी सुनाए जाते हैं। मांडू युद्ध में पराजित होने के बाद, रानी रूपमति ने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली क्योंकि उन्हें बाज बहादुर से बिछड़ना गंवारा नहीं था।

11. बंगाल में देवी स्तुति के समय ऐसा भजन गाया जाता है जिसमें कहा जाता है कि जब हिंदू और मुसलमान प्रेम और शांति से एक साथ रहेंगे तभी मां लक्ष्मी वहां वास करेंगी।

12. 1857 की क्रांति में (झांसी की रानी) रानी लक्ष्मीबाई की रक्षा उनके मुसलमान पठान जनरल गुलाम गौस खान और खुदादाद खान ने की थी। उन्होंने अपनी मौत तक झांसी के किले की हिफाज़त की। उनके अंतिम शब्द थे ‘‘अपनी रानी के लिए हम अपनी जान न्यौछावर कर देंगे’’

13. 1942 में सुभाष चंद बोस की आज़ाद हिंद फौज के नारे ‘जय हिंद’ की रचना कैप्टन आबिद हसन ने की थी। यह नारा फौज में अभिवादन का तरीका बनाया गया। और सभी भारतीयों ने इसे मूल मंत्रा की तरह स्वीकारा।

14. सरहदी गांधी, खान अब्दुल गफ़्फार खान ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए दो लाख अहिंसावादी सत्याग्रहियों की फौज तैयार की। अंग्रेजी सल्तनत के दौरान खान साहब ने कहा, ‘‘मेरे दीन में मेरी आस्था और भारत और बापू के प्रति मेरी वचनबद्धता दोनों एक हैं।’’

15. गुरु गोविन्द सिंह के प्रिय मित्रा सूफ़ी बाबा बदरुद्दीन थे। औरंगजेब के विरुद्ध युद्ध में बाबा बदरुद्दीन ने अपनी, अपने बेटों, अपने भाइयों और अपने सात सौ शिष्यों की जान न्यौछावर कर दी थी। उनके अनुसार यह असमानता और अन्याय के खिलाफ इस्लाम द्वारा सुझाया सच्चा रास्ता है। गुरु गोविन्द सिंह बदरुद्दीन बाबा को बेहद प्यार व सम्मान देते थे। गुरु जी ने उन्हें अपना खालसा कंघा और कृपाण भेंट दी थी। यह दोनों चीज़ें बाबा बदरुद्दीन के दरगाह ‘कंघे शाह’ में अभी तक महफूज़ रखे हैं।

16. बादशाह शाहजहां के सबसे बड़े पुत्रा दारा शिकोह एक उच्च कोटि के संस्कृत विद्वान थे जिन्हें काशी के पंडित, सिक्ख गुरु और सूफी संत समान रूप से चाहते थे। कहा जाता है कि दारा शिकोह को एक सपना आया था जिसमें राम भगवान ने उन्हें उपनिषद्, योग वासिष्ठ और भगवद् गीता को फारसी में अनूदित करने का आदेश दिया था। दारा शिकोह का यह अनुवाद मैक्सम्यूलर ने दुनिया भर में प्रचलित किया। बयालीस वर्ष की उम्र में दारा शिकोह ने फारसी में ‘मजमौल-बहरैन’ (दो समुन्दरों का मिलाप अर्थात वैदिक और इस्लामी संस्कृतियों का मिलाप) नाम के ग्रंथ की रचना की जिसमें उन्होंने हिन्दू धर्म व इस्लामी सोच की समानताओं का बखान किया। इस रचना के अनुसार हिंदू वेदान्त और इस्लामी सूफियत सिर्फ एक ही सोच के अलग-अलग नाम हैं। हिंदू धर्म में ‘मोक्ष’ और इस्लाम में ‘जन्नत’ जाने का अर्थ एक ही है यानी मुक्ति पा जाना। (समरथ पत्रिका से साभार)

7 COMMENTS

  1. यह लेख सम्मोहक तो है, किन्तु किसके लिये सम्मोहक्? अधिकांशतया हिन्दुओं के लिये ।.
    यह हिन्दू‌मौस्लिम जैसी साझी विरासत विश्व में कहिं भी “ईसाई – मुस्लिम साझी विरासत” या “यहूदी -मुस्लिम” साझी विरासत नज़र नहीं आती। इसका अर्थ यह है कि हिन्दू‌ही शान्ति और् मेल् से रहना चाहता है, और अन्य नहीं।.

    तिवारीजी के आंकड़ों पर बिना टिप्पणी किये (पाकिस्तान में १९४७ में‌२५% से अधिक हिन्दू थे, और अब वहां १ % बचे हैं! बांग्लादेश में भी ४० % के लगभग हिन्दू थे, अब ७ या ८ % बचे हैं।) मुझे जहां तक पता है १९४७मे १६ % मुस्लिमों को ३३% जमीन दे दी गयी पर उनमे केवल ९% उधर पाकिस्तान में रहे/ गए कुला मिलकर यानी ९% को ३३ % जमीन , उपजाऊ जमीन मिली फिर भी वे आज गरीब है -अधिक बच्चे पैदा कर रहे हैं और भारत की जनसंख्या के धार्मिक अनुपात में परिवर्तन कर आरहे हैं.
    साझी विरासत, यह एक तरफ़ा व्यवहार नहीं हो सकता।.
    हमें मुसलमानों को मारना नहीं है, किन्तु अपनी रक्षा तो करना ही‌है और आप मजबूत होंगे तभी वे समझेंगे- समर्थ को नहीं दोस गोसाईं और जहा जाता देहातों में गरीब की पत्नी सबकी भाभी ।.
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  2. आध्यात्मिक और दर्शन की दृष्टी से वैसे “अहम् ब्रह्मास्मि’ ही है, पर जब पाकिस्तानी और बंगला देशी मुसलमान भी एक होकर नहीं रह सके तो आपकी बात एक आत्म सम्मोहन (हिप्नोतिस्म ) से बढकर कुछ नहीं.
    इसी छलावे से पाकिस्तान बना, बंगलादेश बना, कश्मीर से तथाकथित हिन्दू निष्कासित हुआ.
    हमें साझी विरासत की “अफीम की गोली” खिलाकर नींद में मरने की इच्छा नहीं है.
    हम तो तब मानेंगे जब कुरान की संशोधित आवृत्ति जिससे काफिर, जजिया, और सारी हिंसा प्रेरक आयते निकाल कर नयी कुरान कोई प्रस्थापित करें.
    किसीका द्वेष नहीं करता –पर (१) बुद्धू नहीं बनूंगा
    (२) पाकिस्तानी मुसलमान हिन्दू ओं की रक्षा के लिए क्यों आगे नहीं आता?
    (३) कश्मीर के मुसलमान ने क्यों सारे हिन्दूओं को भगा दिया है? क्या कश्मीर साझी विरासत नहीं है?
    इस टिपण्णी से किसी का द्वेष अभिप्रेत नहीं है. पर फिरसे लुभावनी बातों में आकर बुद्धू बनना नहीं चाहता.
    आत्म सम्मोहित हिन्दू पहले से है.
    उस पर आप बाहर से भी सम्मोहित करेंगे –तो वह नींद में सोती अवस्था में मर जाएगा.
    साझी विरासत ? पहले मुस्लिम बहुल पाकिस्तान भी जो हमारी-आपकी साझी विरासत है, कश्मीर साझी विरासत है, बंगला देश साझी विरासत है.—–वहां के लोगों को समझा कर दिखाइए.

    • डॉ. मधुसूदन जी की बातें ठीक हैं वैसे उनकी मुस्लिमों से अपेक्षा ठीक नहीं है
      डॉ. राजेश कपूर का स्वामीजी का सन्दर्भ सही है या नहीं कहना कठिन है
      वैसे जरूर भरी संख्या में लोग मरे गए , लुटे गए,
      अंग्रेजों से लूट की तुलना भी ठीक नहीं है – पहले भी विभिन्न मुसलमान नादिरशाह तक बहुत खुछ ले जा चुके थे
      एक माने में अंग्रेज यहाँ से चले गए पर जो लूटेरे आये थे उनके वंशजों ने देश को बाँट कर भी चैन की सांस नहीं ली है =- ख़तरा अभी ५० साल पहले से अधिक है क्योंकि हिन्दू फिर निरपेक्ष सुविधाजीवी अध्यात्म से भी हीन आ और बलहीन होता जा रहा है
      वैसे जैसे हिन्दू, बुधा, जैन एक ही वंश वरिश से है यहीदी, ईसाई और मुसलमान भी एक ही वृक्ष (सेमेटिक) के धर्म हैं
      बहुत अंतर मत करिए- जब ऐसा लगे गोवा में ईसाईयों के द्वारा हुए नरसंहार को याद कर लीजिएगा
      मधुसूदनजी की बात में दम है- साझी विरासत का मतलब? हिन्दुओं की उपेक्षा का वर्तमान परिदृश्य तब तक नहीं बदलेगा जब तक १९४६ के धार्मिक आंकड़ों के आधार पर संसद आ और विध्यिकयों में सीटों का अनुपात तय न कर दिया जाये और उन धर्मों के बीच से प्रतिनिधि अलग चुने जाएँ और तीनो देश को मिला दिया जाये –

  3. hindu aur musalman dono ke liye hi ek prernadai lekh, par samasya samuday ke logon ko nahin, in rajnitigyon, aur dharam ke thekedaron se hae, kyonki, we inhen mil kar nahin rahne dena chahte.

  4. इसमें तो कोई संदेह नहीं कि अरब से आये लुटेरे इस्लामी आक्रमणकारियों ने सन ११०० से सन १६०० के बीच ३० करोड़ हिन्दुओं को समाप्त कर दिया. यह अनुमान स्वामी विवेकानंद का है. सूत्रों के अनुसार भारत की आबादी सन ११०० में ६० करोड़ थी जो १६०० में घट कर ३० -४० करोड़ के बीच रह गयी थी. इससे ३० करोड़ लोगों की ह्त्या का अनुमान लगता है. किन्तु इतना होने पर भी ये आक्रमणकारी भारत की संस्कृति और जल-वायु में निरंतर रमते रहे. एक समय ऐसा आया कि अधिकाँश इस्लाम के अनुयायी भारत की संस्कृति में काफी घुलमिल गए. तथ्य बतलाते हैं कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत में गोवध नगण्य था. युद्ध करते करते हिन्दू-मुस्लिम बहुत प्रेम से रहना सीख गये थे. कुछ अपवाद छोड़ कर मुसलमान भारत को लुट कर धन-सम्पत्ती बाहर न लेजाकर यहीं रहना पसंद करते थे. भारत की समृधी में भी उनका खूब योगदान रहा. मुसलमानों के विपरीत अँगरेज़ तथा अन्य ईसाई आक्रमणकारी कभी भी इस देश में रचे-बसे नहीं. उन्होंने भारत को कभी भी अपनाया नहीं, अपना नहीं समझा. इन विदेशियों ने भारत को इतनी बुरी तरह से लूटा और तबाह किया कि जो भारत मुस्लिम संघर्ष और शासन के छः -सात सौ साल में निर्धन नहीं बना वह अंग्रेजों के शासन के केवल १०० साल में कंगाल बन गया. एक और महत्वपूर्ण घटना यह है कि इसी शासन में गोवध को अत्यधिक बढ़ावा दिया गया. इसका आरोप ईसाईयों के सर न आने देने के लिए ब्रिटेन की रानी ने स्वयं पत्र लिख कर भारत के गवर्नर को निर्देश दिया कि कत्लखानों में ईसाईयों के स्थान पर मुस्लिम कसाईयों की नियुक्ती की जाए. हिन्दू – मुस्लिम भाईचारे को समाप्त करने के और भी अनेक कुटिल षड्यंत्र अंग्रेजों द्वारा रचे गए जो आज भी जारी हैं. खेद है कि इन षड्यंत्रों को न तो हिन्दू समझ पा रहे हैं और न ही मुसलमान. आपस में लड़कर ये अपनी शक्ती को नष्ट कर रहे हैं. यही उद्देश्य तो पश्चिमी शक्तियों का है. हिन्दू-मुस्लिम को कमज़ोर बना कर ईसाई शक्तियां हावी हो जायेंगी, हो रही हैं.
    अब तो यह भी सामने अ चुका है कि अरब और अफ्रिका के मुस्लिम देशों और मुस्लिम आबादी को बड़ी चालाकी से ये ईसाई ताकतें अमेरिका के नेतृत्व में नष्ट कर रही हैं. इरान, ईराक पर झूठे आरोप लगा कर हमले करना, उन्हें तबाह करना इसी योजना का अंग हैं. अनेक सूत्रों से प्रमाण मिल रहे हैं कि ट्विन टावर की तबाही भी अमेरिका द्वारा स्वयं करवा कर मुसलमानों के विरुद्ध नफरत फ़ैलाने और इस्लाम के विरुद्ध संसार को एकजुट करने का काम किया गया. इस्लामी जेहादी इन सब षड्यंत्रों से अनजान हैं. वे जिहाद के जोश में निरपराधों को मार कर अपने जीवन की आहुति तो दे ही रहे है, इस्लाम को बदनाम करने और मुसलमानों को समाप्त करने के अमेरिकी हथकंडे का शिकार भी वे बन रहे हैं. # यदि विदेश ईसाई षडयंत्रकारियों और उनके एजेंट भारतीय शासकों की कुटिल चालों के शिकार हम न बनते तो भारत में मुस्लिम समस्या जैसी कोई समस्या शेष न रही होती.

  5. मेरे जन्मस्थान का शहर फारबिसगंज जिला अररिया, मिथिला (बिहार में अभी ) जो कटिहार-जोगबनी लाइन में कटिहार से ९५ किलोमीटर उत्तर है, एक सुल्तानी माता का मंदिर है जिसे हिन्दू-मुस्लमान दोनों पूजते हैं- मजार पर आप्प कभी भी हिन्दुओं के द्वारा लगये लाल सिन्दूर के रेखा देखेंगे (मुझे इसमें फोटो आत्ताच करने नहीं आता है वैसे मैं प्रवक्ता के इ-पते पर अलग से भेज रहा हूँ की वे इसमें जोड़ दें)
    कथा ऐसी है की मुग़ल नबाबी कलमे एक सुलतान की नज़र बगल के गाँव खाव्स्पुर की एक ब्राह्मण बाला पर पडी और उसने उससे जबरदस्ती विवाह करना चाहा – लडकी ने एक शर्त्त की की एक तालाब खूनवा दो. मिथिला में तालाब खुनवाना एक महान कार्य माना जाता था,सुल्तान ने स्वीकार किया -फिर लडकी ने कहा की यग्य होने के बाद ही यह आम जनता के लिए खुल सकता है -यग्य आयोजित हुआ तो यज्ञकुंड में वह ब्राह्मण कन्या कूद कर मर गयी- सुलतान ने कहा की ‘तूँ मेरी माता थी’ और एक मजार उसने बनवाया जहां हिन्दू- मुसलमान दोनों पूजते हैं और कहा जता है की मन्नत मांगने पर बेटा वह किसो भी दे देती हैं- (मैं एक डॉ. देव्रंजन सिंह को जनता हूँ जो अभी सिवान में हैं – उनका जन्म उन्हीके पास मन्नत से हुआ था) फिर लोग उस बच्चे का मुंडन करने वहां जाते हैं- मेरे स्वर्गीय पिताजी ने यह कहकर एक पंडितजी को वहां नियमित रहने कहा की वह तो मुस्लिम हुई नहीं हिन्दू के रूप में ही मारी थी- जैन समाज ने उसमे लोहे की जाली आदि लगा दी है – हिन्दू-मुस्लिम दोनों उसे पूजते हैं.

    (एक दूसरी कथा में जो अभी भी मधुबनी जिला में सरिसब पाही नमक विख्यात गाँव में एक तालाब एक चमैन ने तब खूनबाया जब की किसी बच्चे को महाराजा दरभंगा ने प्रसन्न हो अपना कंठहार दिया तो विद्वान पिता ने चमाइन को बुला कहा की इसके नाल काटने के समय मेरे पास कुछ नहीं था और तब जो मैंने कहा था की इसकी पहली कमाई तुम्हे मिलेगी वह लेल लो -चमैन ने कहा मैं यह आभूषण लेकर क्या करूंगी, एक तालाब खुदवा दें- और उस बालक का वह श्लोक जो उसने महाराजा को सुनाया था हमें भी पिताजी ने सबसे पहले रटाया था- बालो अहम जगदानन्दः , न मे बाला सरस्वती , अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्र्यम -” मेरे पांच वर्ष पूरे नहीं हुए पर महाराज मेरी सरस्वती बाला नहीं है , मैं तीनो जगत का वर्णन कर सकता हूँ”- महाज्ञानी अयाची जिसने जीवन में कभी याचना किसी से नहीं की और अपने सवा कट्ठा जमीन पर साग- सब्जी उपजाकर जीवन यापन किया उसका वह होनहा r बालक महान मीमांसक शंकर मिश्र हुआ आज भी उनकी वह जमीन है और थोड़ी दूर पर बनाई गई चमाइन डाबर जिसके चारों और भी मुसलमान की बस्ती है और वे सभी उस तालाब के भक्त हैं और उनके एक दूकान का नाम भी मिथिला स्टोर्स देख मैंने जीवन में पहली बार केवल मुसलामानों की एक सभा में ८.१०.२०११ को भाषण दिया और उन सबोने मिथिला राज्य का समर्थन भी किया)

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