हिंदू नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा और चैत्र माह का विशेष महत्व

मृत्युंजय दीक्षित

सम्पूर्ण विश्व आमतौर पर एक जनवरी को नववर्ष बड़ी धूमधाम से मनाता है लेकिन हिंदूधर्म का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रारम्भ होता है। हिंदी पंचांग में इस तिथि का बहुत अधिक महत्व है, यही नहीं ज्योतिष और धार्मिक एवं सामाजिक आधार पर भी चैत्र माह का विशेष महत्व है। यह दिन अनेक ऐतिहासिक पलों या या फिर कई घटनाओं को याद करने का दिन है। वैज्ञानिक मान्यता यह है कि हिंदू पंचांग व कालगणना अधिक वैज्ञानिक व प्राचीन  है।

सृष्टि के आरम्भ से अब तक 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हजार 99 वर्ष से अधिक बीत चुके हैं । यह गणना ज्योतिष विज्ञान के द्वारा निर्मित है। आधुनिक वैज्ञानिक भी सृष्टि की उत्पत्ति का समय एक अरब वर्ष से अधिक का बता रहे हैं। भारत में कई प्रकार से कालगणना की जाती है। युगाब्द (कलियुग का प्रारंभ)श्रीकृष्ण संवत्,  विक्रमी संवत्,शक संवत् आदि। वर्ष प्रतिपदा का दिन एक प्रकार से मौसम परिवर्तन का भी प्रतीक है। बसंत ऋतु का प्रारंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है। यह उल्लास, उमंग, खुशी लाने वाला दिन होता हैैं। इस दिन से एक प्रकार से मोैसम परिवर्तन की शुरूआत हो जाती है। चारों ओर पीले पुष्पों की सुगंध भरी होती है।इस समय नयी फसलंें भी पककर तैयार हो जाती हैं जिसके कारण ग्रामीण परिवेश में नयी खुशियों और नवजीवन का संचार होता है। नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने का शुभ समय  चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही होता है। कहा जाता है कि इसी दिन सूर्योदय से  ब्रहमा जी ने जगत् की रचना प्रारम्भ की। 2069 वर्ष पहले समाट विक्रमादित्य ने अपना राज्य स्थापित किया था। जिनके नाम पर विक्रमी सम्वत् आरम्भ हुआ।

कहा जाता है कि  उनके राज्य में न तो कोई चोर था और नही कोई भिखारी । इसी दिन लंका विजय के बाद अयोध्या वापस आने के बाद प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था। अतः यह दिन श्रीराम के राज्याभिषेक दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना करी थी। सिंध प्रांत के समाज रक्षक वरूणावतार  संत झूलेलाल भी इसी दिन प्रकट हुये। अतः यह दिन सिंधी समाज बड़े ही उत्साह के साथ मनाता है। पूरे देशभर में सांस्कृतिक समारोहों का आयोजन किया जाता है। झंाकियां आदि निकाली जाती है। विक्रमादित्य की भांति उनके पौत्र शालिवाहन ने हूणों  को पराजित करके दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने के लिये शालिवाहन संवत्सर का प्रारम्भ किया। सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा़ केशवराम बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ था।

इस वर्ष  चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का का शुभआगमन 8 अप्रैल 2016 से हो रहा है। प्रत्येक संवत्सर का एक नाम होता है। वर्ष 2073 “सौम्य” नामक संवत्सर है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार इस वर्ष प्रजा और शासक के बीच तनाव और टकराव आदि की स्थितियां पैदा हो सकती हैं। सौम्य नाम संवत्सर अपने नाम के अनुरूप फल प्रदान करेगा। इस दिन देशप्रेम जागने वाले कई प्रसंगों का उदय माना गया है। अपनी कालगणना हिंदू जीवन क रोम – रेाम एवं भारत के कण-  कण से अत्यंत गहराइ्र से जुड़ी है। भारत की भोली- भाली ग्रामीण जनता भी अच्छी तरह से जानती हैं कि आज अष्टमी है, आज नवमी है। देश का किसान  व ग्रामीण परिवेश भी चंद्रमा की गति से परिचित होता हैं ।

हिंदू नववर्ष व अंग्रेजी नववर्ष मनाने में बड़ा ही अंतर है। इस दिन जहां हिंदू घरों में नवरात्रि के प्रारम्भ के अवसर पर कलश स्थापाना की जाती है घरों में पताका ध्वज आदि लगाये जाते हैं तथा पूरा नववर्ष सफलतापूर्वक बीते इसके लिए माता – पिता सहित सभी बड़ांे का आशीर्वाद लिया जाता है। अंग्रेजी नववर्ष में जो उत्साह व उमंग दिखाया जाता है वह ग्लोबलाइजेशन व उदारीकरण का परिणाम है। अंग्रेजी नववर्ष को मीडिया जगत की जबर्दस्त हाइप मिलती है। यह दिन पूरे विश्व में हुड़दंग का दिन होता है। अंगे्रजी नववर्ष का उपयोग अब बड़ी कम्पनियां व घराने अपने उत्पादों की मार्केंिटंग  में करती हैं तथा अरबों का व्यापार व खरीदीदारी की जाती है। हिंदू नववर्ष  की शुरूआत में ही मां दुर्गा के नवरूपों के आराधना के रूप में महिलाओं के सम्मान की बात सिखायी जाती है। जबकि अंग्रेजी नववर्ष में नारी शक्ति का उपयोग मनोरंजन प्रधान वस्तु के रूप में करता है। जबकि हिंदू नववर्ष प्रारम्भ होने पर और चैत्र माह के हर दिन का अपना अलग ही विशेष महत्व होता है। हर दिन शुक्लपक्ष में विशेषकर लभग अधिकांश देवी देवताओं के पूजने व उन्हें याद करने का दिन निर्धारित है। शुक्ल पक्ष की तृतीया को उमा शिव की पूजा की जाती है , वहीं चतुर्थी तिथि को गझोश जी की।पंचमी तिथि को लक्ष्मी जी तथा  नागपूजा की जाती है। शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को स्वमी कार्तिकेय की पूजा की जाती है । सप्तमी को सुर्यपूजन का विधान है। अष्टमी के दिन मां दुर्गा की पूजन और ब्रहमपुत्र नदी में स्नान करने का अपना अलग ही महत्व है इस दिन असोम में ब्रहमपुत्र नदी के घाटों पर  स्नानार्थियों की  भारी भीड़ उमड़ती है। नवमी के दिन भद्रकाली की पूजा की जाती है। इसी प्रकार चैत्र माह का हर दिन का अपना अलग महत्व है।

एक प्रकार से भारत में गणित पर आधारित एक वैज्ञानिक पद्धति अत्यंत पुरातन काल से चली आ रही है जिसका प्रयोग आज धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र तक ही सीमित रह गया है। आज आवश्यकता इस बात की है कि भारतीय पद्धति को अपनी सीमा से बाहर दैनिक जीवन में भी लोकप्रिय बनाया जाये।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here