बांग्लादेश में हिंदू लगातार असुरक्षित

Hindus_Bangladeshबांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। वहां कट्टरपंथी हावी होते जा रहे हैं। हमारे मीडिया में बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय खासकर हिंदुओं की जान-माल की सुरक्षा से संबंधित खबरें प्रायः देखने को मिलती है। हिंदुओं पर आये दिन हमले होते हैं और कट्टरपंथी ताकतें उनकी संपत्ति और उनके धर्मस्थलों को नुकसान पहुंचाती है। पिछले साल ढाका में कट्टरपंथियों ने कुछ हिंदू ब्लागरों की हत्या कर दी थी। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का दावा करने वाली शेख हसीना सरकार भी इन घटनाओं के बाद शक के दायरे में आ गई है।

बांग्लादेश की राजनीति, शिक्षा, प्रशासन, फिल्म-संगीत जगत में हिंदुओं की खासी भागीदारी है। यहां तक कि देश की 350 सदस्यीय जातीय संसद में 19 सांसद हिंदू है। यह आंकड़ा बीते कई सालों की तुलना में बेहतर है। इतना ही नहीं शेख हसीना सरकार में शामिल मंत्रियों के निजी सचिवों की बात करें तो उनमें से तकरीबन 40 फीसदी हिंदू हैं। देश की सिविल सेवाओं में 40 फीसदी अधिकारी हिंदू है। उसी तरह स्कूल कालेज और विश्वविद्यालय में 20 से 25 फीसदी शिक्षक और अन्य कर्मचारी हिंदू हैं। सबसे बड़ी बात यह कि देश की सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार सिन्हा भी हिंदू हैं। बांग्लादेश बेशक एक मुस्लिम बहुल देश है। लेकिन यहां हिंदुओं के प्रति कोई नफरत या गैर-बराबरी नहीं दिखती। इस बार तो संसद में सरस्वती पूजा का आयोजन भी किया गया था। समारोह में प्रधानमंत्री शेख हसीना और स्पीकर समेत कई सांसद और मंत्री शामिल हुए। बांग्लादेश में दुर्गा पूजा, होली और दीवाली धूमधाम से मनाए जाते हैं। ढाका में कई स्थानों पर भव्य पूजा पंडाल में देवी दुर्गा की पूजा होती है। हिंदुओं के कई महत्वपूर्ण त्यौहारों पर सरकारी अवकाश घोषित होता है। बांग्लादेश की कुल आबादी में 9 फीसदी हिंदू हैं। हालांकि सन 1951 के बाद हर वर्ष उनकी संख्या कम होती गयी हैं। पहली जनगणना (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में मुसलमानों की आबादी 3.22 करोड़ थी जबकि हिंदुओं की 92.39 लाख। फिलहाल हिंदू यहां 1.22 करोड़ है जबकि मुस्लिम आबादी 12.63 करोड़ पहुंच चुकी है। हिंदुओं के अलावा यहां बौद्ध आबादी भी तेजी से कम हुई है।

अमेरिका में रहने वाले बांग्लादेशी मूल के प्रोफेसर अली रियाज अपनी पुस्तक गाड विलिंग: द पालिटिक्स आफ इस्लामिज्म इन बांग्लादेश में यह उल्लेख किया है कि बीते 25 साल में करीब 53 लाख हिंदू वहां से पलायन कर चुके हैं। बांग्लादेश में जमात ए इस्लामी जैसे कुछ दल है जो देश को पाकिस्तान की राह पर ले जाना चाहते हैं। पहले बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष देश था लेकिन सन 1977 में संविधान से धर्मनिरपेक्षता शब्द हटा दिया गया और साल 1988 में उसे इस्लामिक घोषित कर दिया गया। मौजूद संसद के 18 हिंदू सांसदों में से 16 अवामी लीग से हैं जबकि दो निर्दलीय हैं।

बांग्लादेश में लागू शत्रु संपत्ति विधेयक को लेकर हिंदू जरुर नाराज है। उनका मानना है कि यह कानून बांग्लादेशी हिंदुओं को उनकी संपत्ति से बेदखल करने का जरिया है। बीते कुछ सालों में शत्रु संपत्ति अधिनियम के चलते बड़ी संख्या में हिंदुओं को अपनी संपत्ति गंवानी पड़ी है। एक अनुमान के मुताबिक इस कानून के तहत हिंदुओं की करीब 20 लाख एकड़ जमीन हड़पी जा चुकी है जो देश की कुल भू संपदा का पांच फीसदी है। लेकिन यह हिंदुओं की कुल जमीन का 45 फीसदी है।

इस अधिनियम के शिकार बौद्ध भी हुए है। चटगांव डिवीजन के तीन जिलों बंदरवन, खग्राछारी और रंगमती में 22 फीसदी बौद्धों की जमीन इस कानून की आड़ में छीन ली गई। बांग्लादेश में शत्रु संपदा अधिनियम के अलावा वेस्टेड प्रापटी एक्ट भी है। ‘शत्रु संपदा अधिनियम’ उन लोगों के लिए हथियार बन गया है जो अल्पसंख्यकों की जमीन पर निगाहें गड़ाये थे। अगर सरकार इस पर ध्यान नहीं देती है तो वह दिन दूर नहीं जब सभी अल्पसंख्यक भूमिहीन हो जाएंगे। यह कानून तत्कालीन पाकिस्तान सरकार ने बनाया था। कानून के मुताबिक, 1965 की लड़ाई के बाद जो लोग पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) छोड़कर भारत चले गए, उनकी अचल संपत्ति को सरकार ने शत्रु संपदा घोषित कर दिया।

सवाल यह है कि 1965 में जब ‘शत्रु संपदा विधेयक’ लागू किया गया था, उस वक्त पाकिस्तान था। लेकिन 1971 के मुक्ति युद्ध के समय भारत गये लोगों की संपत्ति को ‘शत्रु संपदा अधिनियम’ और वेस्टेड प्रापर्टी एक्ट के दायरे में क्यों शामिल किया गया? क्या बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में भारत की ऐतिहासिक मदद और हजारों भारतीय सैनिकों की कुर्बानी का यही प्रतिफल है? ‘शत्रु संपदा अधिनियम’ न सिर्फ बांग्लादेश और पाकिस्तान बल्कि भारत में भी लागू हैं। भारत में भी 1947 के बंटवारे के बाद पाकिस्तान गये लोगों की संपत्ति को ‘शत्रु संपदा’ घोषित कर दिया गया।

हालांकि बांग्लादेश और पाकिस्तान के मुकाबले इस मामले में भारत सरकार और अदालतों का रवैया बेहतर है। भारत में इस कानून की लगातार समीक्षा हुई और संशोधन किये गये। बांग्लादेश में भी ‘शत्रु संपदा अधिनियम’ और ‘वेस्टेड प्रापर्टी एक्ट’ में संशोधन की पहल हुई है, लेकिन वह नाकाफी है।

साल 2003 में प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने मंत्रिमंडल की बैठक में ‘वेस्टेड प्रापर्टी एक्ट’ में अहम बदलाव करने का फैसला किया। बावजूद इसके बांग्लादेशी हिंदुओं को इसका पर्याप्त लाभ नहीं मिल सका है। भारत और नेपाल के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं की सर्वाधिक आबादी है। नेपाल में जहां करीब ढाई करोड़ हिंदू हैं वहीं बांग्लादेश में करीब डेढ़ करोड़ हिंदू रहते हैं। सन 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हिंदुओं की संख्या 28 फीसदी थी। 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद 1981 में वहां पहली जनगणना हुई। उसमें हिंदू आबादी महज 12 फीसदी रह गई। वर्ष 2011 की जनगणना में हिंदुओं की आबादी घटकर नौ फीसदी रह गई। 1947 के बाद से बांग्लादेश के इलाके में इस्लामीकरण के नाम पर करीब 30 लाख हिंदुओं की हत्या हुई।

साल 2013 और 2014 में बांग्लादेश के विभिन्न जिलों में हिंदू विरोधी हिंसा में करीब चार दर्जन मंदिरों और सैकड़ों हिंदुओं के घरों में लूटपाट की गई। इसमें कोई शक नहीं कि बांग्लादेश में खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी जैसी पार्टियों की नीतियों की वजह से कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा मिला है। जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश में ईश निंदा कानून लागू करने के लिए सड़क से लेकर संसद तक प्रयास कर रही है। कुछ साल पहले इसे लेकर राजधानी ढाका में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। ईशनिंदा कानून काला कानून है, जो पाकिस्तान में जियाउल हक ने लागू किया था।

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