सुरेश हिंदुस्थानी
भारत में एक वर्ग विशेष द्वारा जिस प्रकार से हिंसात्मक प्रदर्शन किये जा रहे हैं, उसके पीछे उस वर्ग की सोच क्या है, यह तो वही जानें। लेकिन यह भी सत्य है कि इस प्रकार के प्रदर्शन देश की एकता और अखंडता के लिए खतरनाक हैं। यह बात सही है कि किसी भी धर्म के बारे में अपमानजनक टिप्पणी किया जाना ठीक नहीं है, लेकिन इस प्रकार का विरोध करना भी ठीक नहीं कहा जा सकता। देश का हिंसक रूप दिखाने वाले ऐसे प्रदर्शन निश्चित ही भारत की छवि को वैश्विक स्तर पर बिगाडऩे का काम करते हैं।
पश्चिम बंगाल और अब बिहार के पूर्णिया में एक बेहद ही मामूली बात पर जिस प्रकार से हिंसा का भयानक प्रदर्शन किया गया। उससे देश के समक्ष उसी प्रकार की परिस्थितियां प्रादुर्भित होती दिखाई दे रहीं हैं। जिस प्रकार की स्तिथियाँ भारत विभाजन के समय थीं। भारत विभाजन के समय देश में जो हालात हुए, उसको जिन लोगों ने भी देखा होगा, उनको उसकी वीभत्सता का अंदाज होगा। भारत और पाकिस्तान के मध्य हर आने जाने मार्ग पर केवल हिंसक दृश्य ही नजर आ रहे थे। इस प्रकार की स्थितियों के चलते एक सवाल उठ रहा है कि क्या भारत फिर से विभाजन की तरफ जा रहा है। अगर यह सही है तो फिर इसका पूरी तरह से विरोध करना चाहिए। यहां तक कि देश के मुसलमानों को भी ऐसे कदम उठाने वाले लोगों को समझाना चाहिए, कि देश ने ऐसी घटनाओं का जो दंश झेला है। उसकी कराह आज भी दिखाई देती है।
जिस प्रकार से उत्तरप्रदेश में दादरी घटनाक्रम के समय देश के बुद्धिजीवियों ने केंद्र सरकार को आड़े हाथ लिया था, वह केवल तुष्टीकरण की भावना को प्रकट करने का राजनीतिक नजरिया ही था। आज उन बुद्धिजीवी साहित्यकारों का उदासीन रवैया निश्चित ही यह प्रमाणित करता है कि वे भी अब राजनीति की तरह ही सोचने लगे हैं। पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में जिस प्रकार से भारतीय मुसलमानों द्वारा हिंसा का नंगा नाच किया गया उसके प्रति धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों तथा राजनीतिक दलों की चुप्पी क्या इस बात को प्रमाणित नहीं करती की उन्हें केवल भारत की छोटी-छोटी घटनाएं घटनाएं दिखाई देती हैं, जबकि कट्टरवाद का प्रदर्शन करने वाली एक विशेष समाज द्वारा की गई बड़ी घटनाएं इनको दिखाई नहीं देती। घटनाओं पर मौन साधक की तरह चुपचाप रह जाना इनकी मनोवृति को संदेह के घेरे में खड़ा करता है। भारत में पश्चिम बंगाल के बांग्लादेश सीमा से सटे हुए जिलों में जिस प्रकार से मुस्लिम आबादी बढ़ती जा रही है उसके बारे में कभी भी धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों ने चिंतन नहीं किया। देश की राष्ट्रवादी संस्थाओं ने इसके विरोध में कई बार ध्यान आकर्षित कराया है कि बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण देश में अनेक प्रकार की समस्याएं भविष्य में पैदा होने वाली है लेकिन उस समय की केंद्र और राज्य सरकार ने इस सत्य को नकारने वाले अंदाज में अपनी कार्यवाही को अंजाम दिया। आज पश्चिम बंगाल में जिस तृणमूल कांग्रेस पार्टी का शासन है। सीधे-सीधे रूप से वह कांग्रेस पार्टी की उपज है। उसके नेता लंबे समय से कांग्रेस पार्टी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उसकी विचारधारा को समर्थन देते हुए उसके अनुरुप कार्य कर रहे थे। अब सवाल यह भी आता है की जिस कांग्रेस पार्टी के साथ उन्होंने अच्छी तरह समन्वय स्थापित करके कंधे से कंधा मिलाकर लंबे समय तक काम किया। वह उस की विचारधारा से कैसे अलग रह सकते हैं। हम यह जानते हैं की पश्चिम बंगाल में वाम दलों की सरकार ने लंबे समय तक राज किया और शेष समय कांग्रेस या उससे उत्पन्न दल का ही शासन रहा है। उन्होंने जिस प्रकार से हिंदुओं के विरोध में कार्य किया वह जग जाहिर है।
यहां सवाल फिर आता है भारतीय मुसलमान इतना कट्टर कैसे हो गया? क्योंकि भारत में जो मुसलमान रह रहे हैं उन सबके पूर्वज हिंदू ही थे, इस कारण कहा जा सकता है आज भी उनकी रगों में हिंदू पूर्वजों का खून बह रहा है। भारत का मुसलमान इतना हिंसक हो ही नहीं सकता। इतना ही नहीं भारत के मुसलमानों ने देश में ही कई प्रकार के सौहाद्र्र रूपी काम करके यह दिखाया है कि वे भाई चारे के भाव को जाग्रत रखना चाहते हैं। भारत के संस्कारों में कट्टरवादिता कोई स्थान नहीं है। इसके जवाब में यही दिखाई देता है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश घुसपैठ कर के आए मुसलमानों द्वारा बरगलाने पर वह भारतीय संस्कृति की राह से भटक गया है। भारत का बुद्धिजीवी मुसलमान इस बात को अच्छी प्रकार से जानता है कि पाकिस्तान में बांग्लादेश में भारतीय मुसलमानों की किस प्रकार इज्जत की जाती है इतना ही नहीं यह दोनों देश भारत से अलग होकर विकास की उस राह पर नहीं चल पाए, जिस राह पर उनको जाना चाहिए था।
पश्चिम बंगाल की मालदा जिले की हिंसा पर सबसे बड़ा सवाल यह आता है कि देश की छोटी छोटी घटनाओं पर कोहराम मचाने वाले विद्युतीय प्रचार तंत्र और धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलोंं की चुप्पी हैरान करने वाली है। बिहार चुनाव के दौरान जिस प्रकार से केंद्र सरकार के विरोध में देश के साहित्यकारों नहीं अपने पुरस्कार लौटा कर विरोध प्रदर्शित किया था, आज उन्हें भी यह घटना नजर नहीं आ रही। इसके साथ ही देश में पठानकोट में आतंकवादी हमला हुआ। इस हमले के विरोध में भी देश का कोई भी साहित्यकार पुरस्कार लौटाने की कार्यवाही नहीं कर रहा। इस घटना ने सहिष्णुता और असहिष्णुता को लेकर बहस चलाने वाले बुद्धिजीवी साहित्यकारों के चेहरे से नकाब हटता हुआ दिखाई दे रहा है।
वर्तमान में जिस प्रकार के हालात देश में पैदा किए जा रहे हैं। भविष्य में उसका खामियाजा पूरे देश को उठाना पड़ेगा। यह पूरे देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की महाशक्ति बनने से रोकने का बहुत बड़ा षड्यंत्र है। भारत में सभी धर्मों के लोगों को यह बात भली भांति समझना चाहिए कि पूरे विश्व में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में जिस प्रकार से भारत की ख्याति बढ़ रही है, उसके कारण वर्तमान में विश्व के कई देश भारत के विरोध में आते जा रहे हैं। वह देश कभी भी भारत को वैश्विक स्तर पर आयाम स्थापित करते हुए देखना नहीं चाहते। उन्हें डर इस बात का है कि अगर भारत महाशक्ति के मुकाम को हासिल कर लेता है, तब उन देशों को स्वाभाविक रूप से भारत के समक्ष झुकना ही पड़ेगा। इसलिए भारत में रह रहे हिन्दू और मुसलमानों को यह चाहिए कि वह विश्व के किसी देश के घटनाक्रम से प्रभावित न होकर केवल अपनी, अपने समाज और देश की भलाई के बारे में ही सोचें.