समाजवादी पार्टी का इतिहास और उठापठक

bsp-spडा. राधेश्याम द्विवेदी
पार्टी का गठन :-25 साल पहले समाजवादी जनता पार्टी से अलग होकर माननीय मुलायम सिंह जी ने नई पार्टी बनाई थी तो सजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर ने उन पर अपनी महत्वाकांक्षा के चलते धोखा देने का आरोप लगाया था. मुलायम सिंह जी का कहना था कि वे चंद्रशेखर की कांग्रेस के साथ बढ़ती नज़दीकियों से परेशान थे. इन 25 सालों में उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी ने तीन बार सरकार बनाई और केंद्र की राजनीति के केंद्र में लगातार बने रहे. किसी नई पार्टी के लिए यह छोटी उपलब्धि नहीं है. 1989 से 1992 तक चले राजनीतिक झंझावातों से मुलायम सिंह जी उलझन में थे. नित नई साज़िशें रची जा रही थीं. मंडल और मंदिर मामलों में उन्होंने सख्त रुख़ अपनाया था. पहले वो वीपी सिंह की जनता दल से नाता तोड़ कर चंद्रशेखर की सजपा में शामिल हुए. कांग्रेस का समर्थन ले उत्तर प्रदेश में सरकार बचाई.लेकिन चंद्रशेखर से मतभेदों का पहला संकेत तब मिला जब तत्कालीन संचार मंत्री जनेश्वर मिश्र ने चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. जनेश्वर छोटे लोहिया के नाम से जाने जाते थे और मुलायम सिंह जी से नज़दीकियों के लिए भी.मुलायम सिंह जी इस बात से भी बेचैन थे कि राजीव गांधी बार-बार कहते थे कि चंद्रशेखर पुराने कांग्रेसी हैं, वे कभी भी कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे.
राजीव की मृत्यु के बाद चंद्रशेखर तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव के करीब हो गए.राव के घर अक्सर चाय पीने जाने लगे. राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर उनके चार में से तीन सांसदों ने वोट ही नहीं दिया.राव के हिमायती चंद्रशेखर अकेले पड़ गए. मुलायम सिंह जी ने अपना अलग रास्ता ढूंढ़ने का फैसला किया. वे दारुलशफा स्थित अपने मित्र भगवती सिंह के विधायक आवास पर जाकर साथियों के साथ लंबी बैठकें करते और भविष्य की रूपरेखा तैयार करते. साथियों ने डराया – अकेले पार्टी बनाना आसान नहीं है. बन भी गई तो चलाना आसान नहीं होगा. मुलायम सिंह जी का कहना था, “भीड़ हम उन्हें जुटाकर देते हैं और पैसा भी. फिर देवीलाल, चंद्रशेखर, वीपी सिंह आदि हमें बताते हैं कि क्या करना है, क्या बोलना है. हम अपना रास्ता खुद बनाएंगे.” आख़िर सितंबर 1992 में मुलायम ने सजपा से नाता तोड़ ही दिया. चार अक्टूबर को लखनऊ में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा कर दी.चार और पांच नवंबर को बेगम हजरत महल पार्क में उन्होंने पार्टी का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया. मुलायम सिंह जी सपा के अध्यक्ष, जनेश्वर मिश्र उपाध्यक्ष, कपिल देव सिंह और मोहम्मद आज़म खान पार्टी के महामंत्री बने. मोहन सिंह को प्रवक्ता नियुक्त किया गया. लेकिन बेनी प्रसाद वर्मा कोई पद न मिलने की वजह से रूठकर घर बैठ गए. सम्मेलन में नहीं आए. मुलायम सिंह ने उन्हें घर जाकर मनाया और सम्मेलन में लेकर आए.
सपा-बसपा गठबंधन की नींव:-समाजवादी पार्टी बनने के ठीक एक महीने बाद देश की सबसे बडी राजनीतिक घटना घट गई. कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिरा दी. पूरा देश भाजपा-मय हो गया. इसी दौरान मुलायम सिंह जी के पैर की हड्डी टूट गई. वे जनवरी-फ़रवरी में अपने घर के लॉन में बैठे-बैठे पार्टी के भविष्य के बारे में सोचते. नित नई रणनीति बनाते. इसी बीच उनके गृह जिले इटावा में लोकसभा का उपचुनाव हुआ. बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष कांशीराम ने पर्चा दाखिल किया. सपा के उम्मीदवार थे मुलायम सिंह जी के पुराने सहयोगी- राम सिंह शाक्य. इस चुनाव में मुलायम सिंह जी ने अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार शाक्य के ख़िलाफ़ गुपचुप प्रचार कराया और कांशीराम को जिताया. वहीं से दोनों को लगा कि कांग्रेस और भाजपा का मुक़ाबला करने के लिए “पिछड़ों और दलितों” के साथ आना पड़ेगा. और सपा-बसपा गठबंधन की नींव पड़ी.बसपा इससे पहले यूपी में आठ से दस सीटें जीतती थी. 1993 में सपा के साथ गठबंधन करने से बसपा ने 67 सीटों पर विजय प्राप्त की.कांशीराम ने पार्टी उपाध्यक्ष मायावती को उत्तर प्रदेश की प्रभारी क्या बनाया, वे पूरा शासन ही परोक्ष रूप से चलाने लगीं.
मायावती का परोक्ष शासन मुलायम को स्वीकार नहीं:-मायावती मुलायम सिंह जी पर हुक्म चलाती. मुलायम सिंह जी को यह क़तई स्वीकार नहीं था. उन्होंने पहले जनता दल, सीपीएम और सीपीआई के विधायकों को तोड़ा और फिर अपना खुद का बहुमत करने के लिए बसपा पर डोरे डाले.मायावती ने समर्थन वापस ले लिया. कहा जाता है कि मायावती को ‘डराने’ के लिए दो जून, 1995 को स्टेट गेस्ट हाउस कांड करवाया गया.कथित तौर पर सपा के लोगों ने मायावती पर हमला कर दिया और 12 बसपा विधायकों के जबरन उठा कर ले गए.उसके बाद बीजेपी के सहयोग से बसपा ने सरकार बनाई. मुलायम सिंह जी के आधे दिमाग में समाजवाद, राजनीति आदि है और बाक़ी में सिर्फ अपराध. यही वजह है कि राजनीति में अपराधियों का वे न सिर्फ लाए बल्कि उन्हें मान्यता भी दिलाई.
केंद्र में रक्षामंत्री:-इस बीच मुलायम सिंह जी सांसद हो गए. केंद्र में रक्षामंत्री बन गए और अगर लालू यादव ने विरोध न किया होता तो बहुत संभव है कि देवगौड़ा की सरकार गिरने के बाद इंद्र कुमार गुजराल की जगह मुलायम सिंह जी ही प्रधानमंत्री होते.इसी दौरान मुलायम सिंह जी को अमर सिंह का साथ मिला. पैसा और ग्लैमर सपा का अभिन्न हिस्सा बन गया. 1999 में चुनाव प्रचार के दौरान मुलायम सिंह जी का अपने उम्मीदवारों को एक ही नसीहत होती – यह लो पाँच लाख रुपया. कल से प्रचार की बीस गाड़ी बढ़ा देना. इसमें से पैसा बचाना नहीं क्योंकि अगर कम प्रचार की वजह से हार गए तो कोई दो पैसे को भी नहीं पूछेगा. और जीत जाओगे तो जिंदगी भर पैसे की कमी नहीं रहेगी.
2003 में सपा की यूपी में सरकार बनी:- 2003 में सपा की यूपी में एक बार फिर सरकार बनी जबकि उसका न तो बहुमत था न ही किसी पार्टी का समर्थन. मुलायम सिंह जी ने बसपा को एक बार फिर तोड़ दिया. रही सही कसर बीजेपी के साथ डील से पूरी हो गई. प्रमोद महाजन के साथ अमर सिंह के समझौते के तहत बीजेपी ने विश्वास प्रस्ताव पर वाक आउट किया. महाजन को लगा था कि मुलायम सिंह जी के अल्पसंख्यकवाद से बहुसंख्यक बीजेपी के साथ आ जाएंगे. लेकिन 2006 में महाजन की हत्या के बाद यूपी में बीजेपी की हालत बहुत ख़राब हो गई.
2007 के चुनाव में बसपा को लाभ:-2007 के चुनाव में सपा के ख़िलाफ़ जबरदस्त लहर थी. लेकिन उसका लाभ बीजेपी की जगह बसपा को मिला और मायावती एक बार फिर मुख्यमंत्री बनीं. अमर सिंह ही एक बार फिर सपा के दूत बने और 2009 में मनमोहन सिंह सरकार से वाम दलों की समर्थन वापसी के बाद उन्होंने अमरीका के साथ सिविल न्यूक्लियर डील पर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सपा के समर्थन के जरिए यूपीए सरकार को बचा लिया. तब अमर सिंह के सपा में बढ़ते प्रभुत्व के खिलाफ राम गोपाल यादव से लेकर अखिलेश तक सभी खड़े हो गए. मुलायम सिंह जी न चाहते हुए भी अमर सिंह जी को पार्टी ने निकालना पड़ा.
अखिलेश को युवजन सभा का अध्यक्ष बनाकर 2012 में चुनाव जीता गया:- उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के दो कार्यकालों को पूरा कर लेने के बाद अखिलेश को समाजवादी युवजन सभा का अध्यक्ष बनाकर 2012 का विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा .पार्टी के तीन बार मुख्य मंत्री रहे धरतीपुत्र मा. मुलायम सिंह यादव के पुराने कार्यों पर यकीन करते हुए प्रदेश की जनता ने मार्च 2012 में स्पष्ट विशाल बहुमत देकर सत्तासीन किया .चाचा शिवपाल की आपत्तियों को ख़ारिज कर अखिलेश मुख्यमंत्री बने. लेकिन आधे अधूरे.उनके पिता, चाचा और दूसरे वरिष्ठ नेता प्रशासन में दख़ल देते रहे. वे चुपचाप काम करते रहे. सर्व प्रथम इस सरकार ने अपने करीबियो तथा खास लोगों को वोट बैंक के लिहाज से कन्या विद्या धन योजना से लेकर लैपटॉप बांटने तक की कई स्कीमें तथा बेरोजगार भत्ता देना शुरू किया. इसके बाद अपने खास आदमियों को विभिन्न विभागों एवं निगमों में राज्यमंत्री का मानद पद बांटना शुरू कर दिया. पुलिस लेखपाल, शिक्षमित्रों आदि अनेक तरह के विवदित तथा पक्षपात पूर्ण भर्तियां की जाने लगी. दागियों को महिमा मंडित किया जाने लगा है. रेवड़ियां बंटने लगी हैं. सुरक्षा एजेसियों द्वारा पकड़े गये आतंकवादियों तथा माफियाओं को जेलों से मुक्त किया जाने लगा है. हजारो एवं करोड़ों के भ्रष्टाचार में आरोपी यादव सिंह जैसे अन्यानेक के कृत्यों की जांच रोकने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरूप्योग किया जाने लगा है. अनिल यादव जैसे अपने व्यक्तिगत प्रभाव वाले लोगों को राज्य लोक सेवा आयोग तथा माध्यमिक शिक्षा सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है. इनके पक्षपात पूर्ण निर्णयों की न केवल आलेचना हुई है अपितु सरकार की पूरी किरकिरी भी हुई है. अमरमणि तथा राजा भैया जैसे लोगों को तरह तरह सुविधायें दी जाने लगी है. न्यायालयों को वेवकूफ बनाने तथा बरगलाने के प्रयास किये जाने लगे हैं. लखनऊ, इलाहाबाद के उच्च न्यायालयों तथा माननीय उच्चतम न्यायालय को बार बार हस्तक्षेप करना पड़ा है. फटकार भी लगी और उससे कोई नसीहत भी नहीं मानी गई है. देश के मंहगे एवं नामी गिरामी वकील जैसे श्री रामजेठ मलानी तथा कपिल सिब्बल आदि को लगाकर केसों की पैरवियां की गई है. बार बार सरकार को माननीय कोर्टो द्वारा लताड़ा गया है. एक्सप्रेसवे से लेकर मेट्रो तक विकास की लोकलुभावनी योजनायें सफलता पूर्वक पूरी भी की गई. माननीय मुलायम सिंह जी ने अनेक अवसरों पर ना केवल मा. अखिलेशजी को डांट की घुटटी पिलाई है, अपतु मोदी जी व भाजपा के कार्यकर्ताओं के आचरण से सीख लेने का पाठ अपने कार्यकर्ताओं, मंत्रियो व विधायको पढ़़ाया है। विगत दो तीन माह से जो उठापठक चल रहा है उससे तो आम जन पूर्णरूपेण परिचित ही है। इसे अलग से बताने की जरूरत ही नहीं है। छह महीने पहले अमर सिंह की पार्टी में वापसी हुई और उसके बाद जो कुछ भी हुआ, वह समाजवादी पार्टी के इतिहास में एक यादगार अध्याय के रूप में याद रखा जाएगा.

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