इतिहास का सच — जयराम ‘विप्लव’

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kutub-minarइतिहास को जानने की जरुरत है या नही ,ये मुद्दा हम अखबारी लोगों के बीच अक्सर बहस का विषय होता है। आए दिन किसी न किसी से तो इतिहास पढने और अतीत को जानने-समझने की सलाह मिल ही जाती है। वैसे भी हमारे यहाँ मुफ्तकी नसीहत कुछ आसानी से उपलब्ध हो जाया करती है। लगता है हम मसले से दूर जा रहे हैं, चलिए वापस इतिहास के मुद्दे पर लौट जायें। यूँ देखें तो हम-आप में से हर कोई इतिहासकार है। प्रत्येक को किसी न किसी तरह का समय बोध होता ही है। कोई पढ़ कर जानकारी ग्रहण करता है, कोई वर्षों पुरानी श्रुति-स्मृति की परम्परा के माध्यम से सीखता है। हाँ ,यह बात गौर करने योग्य है कि आम इंसान हो या फिर इतिहासविद, सबों का मत एक जैसा नही होता । इसके पीछे भी तर्क दिया जाता है- हर इंसान का नजरिया अलग-अलग होता है।

अब बात है,  इतिहास को किस स्तरपर जानना चाहिए?  क्या ख़ुद के बारे में जान लेना काफी होगा?  नही,  हमें इतिहास को एक बड़े परिप्रेक्ष्य में सोचने का प्रयास करना चाहिए। हालाँकि आजकल लोगो को इतनी फुर्सत कहाँ होती है। शहरमें न जाने कितने ऐसे लोग हैं जिन्हें अपने दादा-परदादा का नाम तक मालूम नही होता! परन्तु, निराश होने की बात नही है। मानव स्वाभाव ही कुछ ऐसा है किहम जाते तो हैं निरंतर भविष्य कीओर लकिन हमारा अतीत हमें अनवरत आकर्षित करता रहता है। हम अपने दैनिक जीवन में जब भी कोई ऐसी वास्तु पा जाते हैं जिनका भुत से सम्बन्ध हो तो हमारी आँखें चमक उठती है। अतीत को जानकर-समझ कर और उससे सीख लेकर वर्तमान तथा भविष्य दोनों को बेहतर किया जा सकता है। साथ ही इतिहास जानने का एक अन्य कारण है ,सदियों भारत पर विदेशी आक्रान्ताओं का शासन । किसी ने कहा है -“जिस जाति के पास अपने पूर्व-गौरव की ऐतिहासिक स्मृति होती है वो अपने गौरव की रक्षा का हर सम्भव प्रयत्न करती है। ” अफ़सोस की आज हमारे अन्दर वो स्मृति गायब होती जा रही है! बंकिमचंद्र चटर्जी को भी यही दुःख था -‘साहब लोग अगर चिडिया मरने जाते हैं तो उसका भी इतिहास लिखा जाता है’। वैसे ये नई बात नही, अंग्रेज साहबों से सक्दो साल पहले का इतिहास भी शासकों के इशारों पर कलमबद्ध होता रहा है। अनगिनत काव्य और ग्रन्थ चाटुकारिता के आदर्श स्थापित करने हेतु लिखे गए। कलम के पुजारियों ने निजी स्वार्थ या दवाब में आकर डरपोकों को शूरवीर, गदारों को देशभक्त, जान-सामान्य के पैसो से मकबरा बनने वाले को मुहब्बत का देवता बना डाला। मुगलों से अंग्रेजो तक आते -आते हमारा वास्तविक इतिहास कहाँ चला गया ,पता भी नही चल पाया। कविश्रेष्ठ रविन्द्रनाथ ने इस सन्दर्भ में एक बार कहा था कि “एक विशेष कोटि के इतिहास द्वारा सांस्कृतिक उपनिवेश्ता इस देश के वास्तविक इतिहास का लोप कर देना चाहती है। हम रोटी के बदले, सुशासन, सुविचार, सुशिक्षा – सब कुछ एक बड़ी………….. दूकान से खरीद रहे हैं- बांकी बाजार बंद है……………..जो देश भाग्यशाली हैं वे सदा स्वदेश को इतिहास में खोजते और पते हैं। हमारा तो सारा मामला ही उल्टा है। यहाँ देश के इतिहास ने ही स्वदेश को ढँक रखा है। ”

चर्चा तो आगे भी होगी। अगर कोई पूछे कि इस इतिहास को पढने से क्या मिला ? परीक्षाओं के अलावा इस तरह के इतिहास का कोई और फायदा ढूँढना मेरे \बस का नही। नुक्सान अवश्य बता सकता हूँ – विदेशी सभ्यताओं -संस्कृतियों को आदर्श मानकर हमारा ह्रदय स्वदेश,स्वसंस्कृति से विमुख हो चुका है। हमारी नक़ल हर दिन चलती रहती है मानो पाश्चत्य सभ्यता से बढ़ कर इस दुनिया में और कुछ है ही नही।

 

— जयराम चौधरी

बी ए (ओनर्स)मास मीडिया
जामिया मिलिया इस्लामिया
मो:09210907050

1 COMMENT

  1. One Hindi saying is there “Dood Ka Jala Chhach Bhi Phook Phook Kar Peeta Hai”. A good article. There is a conspiracy that our true history has not been taught in school or collages. When we do not have our true history how can be differentiate between the good and bad. It is a matter of deep analysis.

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