सिर्फ आदमी का ही मुकद्दर नहीं होता। आदमी की मुकद्दर की इबारत लिखनेलाले लफ्जों का भी मुकद्दर होता है। कल तक जो शब्द हमारी जिंदगी के अभयारण्य में शेर की तरकह दहाड़ा करते थे आज वक्त के म्यूजियम में मसाला भरे शेरों की तरह वह खड़े और पड़े हुए हैं। बड़े-तो-बड़े जिन्हें देखकर बच्चे भी अब नहीं सिहरते ऐसी निरीह अवस्था को प्राप्त हो चुके हैं कल के मुकद्दर के सिकंदर ये बाहुबली शब्द। मूंछ ऊंची करके बड़ी हेंकड़ी लिए राजा-महाराजा-से ये शब्द आज ए.राजा और एअर इंडिया के महाराजावाली एक्जीक्यूटिव बेइज्जती का लुत्फ उठा रहे हैं। कभी ब्रह्मा-विष्णु और महेश की रेपुटेशन इंन्ज्व्याय करनेवाला शब्द- गुरु आज अफजल गुरु और शिबू सैरेन गुरुजी के महा एंटीपारस व्यक्तित्व को छूकर कब का सोने से लोहा बन गया पता ही नहीं चला। ऐसा लोहा जिससे लोहा लेने के लिए अच्छे-अच्छे फन्ने खां लोहे के चने चबाने के जुनून में अपने वज्रदंती पराक्रम की जमानत जब्त कराकर इन गुरुघंटालों की चाकरी-जैसे पुण्य कार्य को स्वीकार करते हुए इस भवसागर से पार हो जाने को बिलबिला रहे हैं। किस्मत की कुटिल-क्रूर क्रीड़ा ने कुछ ऐसी ही दुर्गत बनाई है उस शब्द की जो कभी हाईक्वालिटी के सम्मान का प्रतीक हुआ करता था। वो आज का अभागा शब्द है- नेताजी। देश के पराक्रम और स्वाभिमान की पहचान बना ये शब्द नेताजी सुभाषचंद्रबोस के साथ जुड़कर देशभक्ति का मंत्र बन गया था। आजादी मिलने के बाद इतना हाइली रिस्पेक्टतम शब्द आज लाइन हाजिर होकर बॉयलाजिकल गाली की हैसियत में पड़ा सुबक रहा है। ठीक वैसे ही जैसे भूकंप में जमींदोज हुए किसी मंदिर की ईंट खरीदफरोख्त के खेल की बदौलत किसी संडास की शोभा बढ़ाए। आज किसी शरीफ आदमी को नेता कहभर दो। मरने-मारने पर आमादा हो जाता है। कुछ इसी तरह मट्टी-पलीत हुए मान्यवर शब्दों के दलदल में अभी हाल ही में एक और शब्द रपटकर फचाक से गिरा है। ये करमफूट शब्द है-माननीय। भ्रष्टाचारी कीचड़ और नफरत के मैले से लथपथ ये शब्द कभी शुभ्रज्योत्सना झकाझक सफेदी की चमकारवाला शब्द हुआ करता था। जिस तरह कोई जरायमपेशा किन्नर अपने समुदाय का क्षेत्रफल बढ़ाने की पवित्र भावना से किसी भी शरीफ आदमी को आवश्यक कांट-छांट के बाद उसे किन्नर बना डालता है कुछ-कुछ ऐसा ही हत्यात्मक संस्कार हुआ है इस बदनसीब शब्द का। अच्छे खानदान के किसी रईसजादे का अपहरण कर पूरी फिरौती वसूल करने के बावजूद उसे बलात किन्नर बना दिया गया। आजकल ये बेचारा शब्द क़त्ल,बलात्कार और गबन के जुर्म में जेलों में बंद उन ईमानदार विधायकों के लिए भी उपयोग में लाया जा रहा है जो जेल में रहते हुए भी निर्वाचनक्षेत्र भत्ता ,चिकत्सीय भत्ता और मासिक वेतन हड़पने का श्रमसाध्य करते हुए देश सेवा में दिन-रात जुटे हुए हैं। देशसेवा के मामले में काहे का तकल्लुफ। एक उत्साही और बिंदास जनसेवक ने तो मंत्री पद पर रहते हुए भी हेडमास्टरी का मासिक वेतन लेते हुए शिक्षक और शिक्षाविभाग दोनों का ही सम्मान बढ़ाने का पतित-पावन कार्य कर पतन की खाई में पड़े हम भारतवासियों की नाक एवरेस्ट जित्ती ऊंची कर दी। सारा देश मेरा लाम पर है,जो जहां है वतन के काम पर है। हमारे इन प्रयोगधर्मी समाजसेवकों को जहां भी मौका मिलता है ये हाथ की सफाई के ऐसे-ऐसे हैरतअंगेज, मौलिक और अप्रकाशित कारनामें पेश करते हैं कि मन अन्ना हजारे हो जाता है। इनकी प्रतिभा किसी 2-जी स्पेक्ट्रम या कॉमनवेल्थगेम की मुहताज नहीं होती है। पूरे स्वावलंबन के साथ मौका मिलते ही ये हेराफेरी की वारदात को इतनी निष्ठा के साथ अंजाम दे-देते हैं कि सीबीआई दांतो तले उंगली दबाना तो क्या चबाना भी शुरू कर देती है। इनके लिए महज मानव संसाधन ही नहीं पशुओं का चारा भी घोटाला भारी उद्योग में काम आनेलाला कच्चा माल है। भ्रष्टाचार की जितनी तकनीकों का आविष्कार हो चुका है उन सब पर इनका ही पैदाइशी कॉपीराइट है। और जो नई तकनीकें खोजी जाएंगी उनका फ्यूचर लाइसेंस, भी इन एडवांस इनके ही पास है। इनके भ्रष्टाचार पर उंगली उठाना देश की दिव्य गरिमा की अवमानना है। एक संज्ञेय अपराध है। ज़रा सोचिए कि क्या माननीय भी कभी अपराधी हो सकते हैं। अपराधी तो वह मूढ़ जनता है जो इन दो कौड़ी के चोर-उचक्कों को माननीय बनाने का संगीन जुर्म करती है। देशभक्ति,ईमानदारी,कर्तव्यनिष्ठा-जैसे योद्धा शब्द तो अनैतिकता के आतंकी युद्ध में लड़ते-लड़ते बहुत पहले ही वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। अभी हाल में शहीद शब्दों की कतार में माननीय शब्द और जुड़ गया है। आइए संवेदना के झंडे झुकाकर भीगी पलकों और सूखे कंठों से इसे भी आखिरी सलाम कहें।