धर्मशाला की आनन्ददायक यात्रा

लालकृष्‍ण आडवाणी

मैं हाल ही में धर्मशाला की आनन्ददायक यात्रा करके लौटा हूं। कुछ समय पूर्व प.पू. दलाई लामा नई दिल्ली के पृथ्वीराज रोड स्थित मेरे निवास पर आए थे। तब उन्होंने सुझाया था कि कभी मैं उनके स्थान धर्मशाला आऊं।

मैं वहां जाने की काफी दिनों से इच्छा रखता था जिसे उन्होंने तिब्बत से निर्वासित होने के बाद अपने सैकड़ों तिब्बतियों के साथ इसे अपना घर बनाया है। जैसाकि मैंने अपने पूर्ववर्ती ब्लॉग में लिखा था कि दलाई लामा से मेरी अंतिम भेंट सन् 2010 के कुंभ मेले के दौरान ऋषिकेश में हुई थी और मैं उनकी सहज अच्छाईयों और उससे भी ज्यादा उनकी बालसुलभ सादगी पर गहराई से प्रभावित रहा हूं। अत: जब लोकसभा में मेरे सहयोगी और हमारी पार्टी के युवा मोर्चा के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने 17 मई को बंगलौर और पंजाब के बीच खेले जाने वाला आईपीएल क्रिकेट मैच धर्मशाला में देखने को आमंत्रित किया तो मैंने उन्हें यह पता लगाने को कहा कि क्या उन दिनों में दलाई लामा वहां पर उपलब्ध होंगे। उन्होंने जानकारी लेकर बताया कि तिब्बती नेता विदेश गए हुए हैं परन्तु 16 मई को वापस लौट रहे हैं।

कुछ दिनों के पश्चात् उन्होंने मुझे बताया कि यदि मैं 17 मई का आईपीएल मैच देखने के लिए आता हूं तो 18 मई को दलाई लामा मेरे लिए दोपहर भोज आयोजित करना चाहेंगे। और इस तरह धर्मशाला जाने का मेरा कार्यक्रम बना।

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17 मई को अपनी सुपुत्री प्रतिभा के साथ मैंने कांगड़ा जिले के धर्मशाला जाने के लिए किंगफिशर एटीआर विमान से जाने की टिकट बुक कराई। हमने देखा कि विमान अमेरिकी लड़कों और लड़कियों से भरा है। हमें बाद में पता चला कि वे सब अमेरिकी यहूदी हैं जो दलाई लामा से मिलने जा रहे हैं।

धर्मशाला के लिए किंगफिशर की प्रतिदिन दो उड़ाने हैं, और हमें पता चला कि उस दिन दोनों उड़ानों में अमेरिकी यहूदी यात्रा कर रहे थे। जहां तक मुझे जानकारी मिली कि सभी के सभी लगभग 61, पहली बार भारत आए थे और यहां से वापसी में उन्होंने इस्राइल जाने की योजना बनाई हुई है।

ये सभी 61 अमेरिकी यहूदी वापसी में दिल्ली और मुंबई भी जाने वाले थे। अत: मैंने उन्हें अपने घर चायपान पर निमंत्रित किया। उन्होंने इसे सहर्ष तुरंत स्वीकारा और 19 मई को हमारे निवास पर एक घंटे से ज्यादा रुके तथा जाना कि कैसे भाजपा ने, भारत को इस्राइल के साथ सामान्य कूटनीतिक सम्बंध कायम करने में अपना योगदान दिया।

जनवरी, 1992 की शुरुआत में मैं ‘ओवरसीज़ फ्रेण्ड्स ऑफ बीजेपी‘ की स्थापना सम्मेलन हुेतु अमेरिका गया था। इस यात्रा में मुझे अमेरिका के दस विभिन्न स्थानों पर जाने का अवसर मिला। स्थान-स्थान पर यहूदी समुदाय के लोग मुझसे मिले और पूछा: ”हम भारत के मित्र हैं। हम चाहते हैं कि भारत मजबूत शक्ति बने और वैश्विक मामलों में प्रमुख भूमिका निभाए। लेकिन आपके देश ने अभी तक इस्राइल के साथ पूर्ण कूटनीतिक संबंध क्यों नहीं स्थापित किया है?” उनको मेरा उत्तर था: ”मेरी पार्टी इस्राइल के साथ पूर्ण सामान्य संबंधों की पक्षधर है। लेकिन हम सत्ता में नहीं हैं। कांग्रेस पार्टी, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही सत्ता में है, इसकी विरोधी है, और इसी तरह कम्युनिस्ट पार्टियां भी।”

अमेरिकी से लौटने के बाद मैं तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव से मिलने गया। मुझे ज्ञात हुआ कि कुछ सप्ताहों के भीतर ही वे स्वयं अमेरिका जाने वाले हैं। अमेरिकी यहूदी समुदाय के समूहों से मेरी मुलाकात की जानकारी देने के बाद मैंने कहा ”नरसिम्हा राव जी, आप जाने से पहले इस्राइल के साथ पूर्ण कूटनीतिक संबंध कायम करने का साहसी निर्णय कीजिए।” उनका जवाब था, ‘मैं भी ऐसा ही चाहता हूं लेकिन मेरी पार्टी तैयार नहीं है।‘

मैंने उनसे कहा, ‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि इस्राइल के प्रति हमारी नीति अभी भी भारत में कुछ मुस्लिमों की प्रतिक्रिया की काल्पनिक आशंका से ग्रसित है। आखिरकार सभी अनेक मुस्लिम देश भी इस्राइल के साथ कूटनीतिक संबंध बनाने की योजना तैयार कर रहे हैं। मिस्र और तुर्की तो यह कदम उठा ही चुके हैं। यहां तक कि फिलीस्तीनी भी इस्राइल के साथ सह-अस्तित्व से रहना चाहते हैं। इसलिए, यदि कुछ हमारे राष्ट्रीय हित में है तो हमें उसे उन लोगों को बताना चाहिए जो इसके विरोध में हो सकते हैं। किसी भी हालत में, हमारी विदेश नीति, घरेलू दबावों के मिथ्या विचारों से निर्लिप्त होनी चाहिए।” राव ने यह कहते हुए उत्तर दिया, ‘मैं सहमत हूं। मैं इसे मंत्रियों का समूह बनाकर सिफारिश करने को कहूंगा ताकि इस निर्णय पर सभी की भागीदारी हो सके।‘

उन्होंने अपने वचन को निभाया। उन्होंने केबिनेट की एक जीओएम (ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स) गठित की। जीओएम ने इस संबंध में अपनी सिफारिश की। आज इस्राइल के साथ भारत के सामान्य संबंध हैं, और यह वाजपेयीजी के एनडीए शासन के 6 वर्षों में और मजबूत हुए।

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ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में क्रिकेट पिच से जुड़ी मेरी स्मृतियां चालीस वर्ष से ज्यादा की हैं। मैं तब दिल्ली महानगर परिषद का चेयरमैन था। अपनी पत्नी कमला के साथ मैं शिमला गया था। शिमला को आधार बनाकर जिन अन्य स्थानों पर जाना हुआ उनमें मैं चैल गया था जहां पटियाला महारानी का चैल महल था, जिसे एक सुंदर होटल में बदल दिया गया था।

वस्तुत: चैल कभी पटियाला राजपरिवार की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करता था। माना जाता है कि पटियाला के एक पूर्व महाराजा अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला से एक कमांडर-इन-चीफ की बेटी के साथ लुप्त हो जाने के कारण यह इस अस्तित्व में आया।

चैल का प्रसिध्द क्रिकेट मैदान सन् 1893 में पहाड़ी के शिखर को समतल कर बनाया गया। यह लगभग 2500 मीटर की ऊंचाई पर है और दुनिया का सर्वाधिक ऊंचा क्रिकेट मैदान तथा पोलो ग्राउण्ड है।

चैल पिच भले ही सर्वाधिक ऊंचाई वाली होगी, मगर हाल ही में बनकर तैयार हुआ धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम बहुत लुभावने दृश्यों वाला है जिसे देखकर कोई भी हर्षित हो सकता है। पंजाब टीम (प्रीति जिंटा के स्वामित्व वाली) और बंगलौर टीम (विजय माल्या के स्वामित्व वाली) के बीच खेले जाने वाला आई पी एल मैच काफी रोमांचक था। किंगफिशर एयरलाइन्स के माल्या उस विमान में साथ ही थे जिसमें हम आए थे। और प्रीति वहां पूरे मैच के दौरान अपनी टीम का उत्साह बढा रही थीं। मैंने कहा कि बंगलौर पहले ही अंतिम चार में पहुंच चुका है। पंजाब जो कुछ समय पूर्व तक आई पी एल की अंकतालिका में नीचे था, अब नंबर पांच पर पहुंच चुका है। इसलिए इस मैच जिसके लिए मुझे आमंत्रित किया गया है, में मेरी स्वाभाविक सहानुभूति पंजाब के साथ है। और जब रोमांचक मुकाबले के बाद वास्तव में पंजाब जीत गया, तो प्रीति ने मुझसे कहा: ‘आपका इस मैच को देखने आना मेरे लिए सौभाग्यशाली सिध्द हुआ है!‘

लेकिन जैसाकि मैंने पूर्व में लिखा कि धर्मशाला की इस यात्रा में हमारे लिए मैच से ज्यादा महत्वपूर्ण बर्फ से ढकी धौलाधार पहाड़ियों की पृष्ठभूमि में बनाये गए सर्वोत्तम क्रिकेट स्टेडियम की झलक पाना था। इसके लिए राज्य सरकार और हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसाोसिएशन के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर का अभिनंदन। आकार और सुविधाओं के मामले में यह नया एच पी सी ए स्टेडियम सर्वोत्तम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्टेडियमों के समतुल्य है।

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दलाई लामा ने 18 मई की दोपहर को मुझे दोपहर भोज के लिए आमंत्रित किया। प्रतिभा और मेरे साथ-साथ उन्होंने मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को भी आमंत्रित किया था। तिब्बती गुरु द्वारा बोले गए प्रत्येक शब्द से अपनापद और सादगी फूट रही थी। मैंने गौर किया कि वह धूमल को सदैव ‘मेरे मुख्यमंत्री‘ (माई चीफ मिनिस्टर) कह कर सम्बोधित कर रहे थे। इस मीटिंग में हमने विस्तार से तिब्बत के मुद्दे पर चर्चा की। दोपहर के भोज के उपरांत, प्रतिभा ने दलाईलामा से जाने की अनुमति मांगी और कहा ‘मै खरीददारी के लिए जा रही हूं, ‘वह दलाईलामा की यह टिप्पणी सुन कर भावविभोर हो गई ” खरीददारी ? क्या तुम्हें कुछ पैसे चाहिएं?”

दलाईलामा मैक्लोडगंज में एक सुदर और सुचारु ढंग से बनाए गये बंगले में रहते हैं, जो धर्मशाला से भी उंचे स्थान पर स्थित सैन्य छावनी क्षेत्र तथा मुख्य शहर से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जब हमने उनसे विदा ली तो उन्होंने हमें भगवान बुध्द का एक सुंदर तिब्बती तंखा दिया और जिस पर अंकित था कि‘ ‘सर्वाधिक सम्माननीय मित्र आडवाणीजी और प्रतिभाजी: आपकी सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूर्ण हों। मेरी प्रार्थना है: आप लोगों की सेवा करने में सफल हों।”

(टेलपीस) पश्च्य लेख

समाचारपत्र और पत्रिकाएं अभी भी ओसामा-बिन -लादेन प्रकरण पर समाचार और लेख प्रकाशित कर रहे हैं, इण्डिया टूडे में एम. जे. अकबर ने ”ऐसे मित्रों के साथ” (With friends like these) शीर्षक से एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को इसके लिए झिड़का है कि उसने अपने समूचे कर्जे को समाप्त कर सकने वाले अवसर को गंवा दिया।

अकबर लिखते हैं: ”जैसाकि अब कुछ स्वर दावा कर रहे हैं कि यदि पाकिस्तान पहले से जानता था तो क्यों उसने ओसमा को गिरफ्तार करने और मुकदमा चलाने का अपना संप्रभु अधिकार त्याग दिया बजाय अमेरिकियों की प्रतीक्षा करने जो उसका पता-पता ठिकाना ढूंढ निकालें तथा अपरिहार्य नतीजे सहें? यह विचार संभावनाओं से भरा है। यदि सलमान तसीर के हत्यारे का लाहौर में लाल गुलाबों से स्वागत किया गया और उसे हीरोनुमा माहौल मिला तो ओसमा को उनके मुकदमे के समय कितनी प्रशंसा मिलती? पाकिस्तान दाखिला फीस वसूल कर अपना कर्जा चुका सकता था।”

एम.जे. ने इसका निष्कर्ष यूं निकाला है: ”ओबामा को अपने मित्र चुनने में उतनी चिंता करने की जरुरत है जितनी उसने अपने शत्रुओं को चुनने में बरती है।”

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