घुटन का मौसम

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-विजय कुमार- election
मौसम विज्ञानियों की बात यदि मानें, तो दुनिया भर में मुख्यत: तीन मौसम होते हैं। सर्दी, गर्मी और वर्षा। जहां तक भारत की बात है, तो यहां षड्ऋतु में वसंत, शिशिर और हेमंत भी शामिल हैं। हमारे कुछ मित्रों का कहना है कि दक्षिण भारत में गर्मी और बहुत अधिक गर्मी तथा पहाड़ों पर सर्दी और बहुत अधिक सर्दी नामक बस दो ही मौसम होते हैं।
लेकिन शर्मा जी के अनुसार इन सबसे अलग एक ‘घुटन का मौसम’ भी होता है। मजे की बात है कि ये मौसम किसी भी मौसम में और अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समय पर आ सकता है। हां, चुनाव के दिनों में इसकी धुंध सर्वत्र छायी रहती है।
कल शर्मा जी ने जब अपनी यह व्याख्या बतायी, तो मुझे विश्वास नहीं हुआ; लेकिन वे बिना तथ्यों के कोई बात नहीं कहते। उन्होंने मुझे साथ चलकर इसके प्रत्यक्ष प्रमाण देखने का निमंत्रण दिया। मैंने उनकी बात मान ली।
सबसे पहले हम बिहार के परम सेक्यूलर नेता रामविलास पासवान के पास गये। शर्मा जी ने बात चालू की – सर, आप इतने समय से लालू जी के साथ थे; पर अब अचानक… ?
– आपने ठीक कहा, मैं वहां घुटन महसूस कर रहा था। इसलिए जब मोदी जी ने मुझे अपने पास बुलाया, तो मैं इधर आ गया।
– पर आपने मोदी के नाम पर ही राजग को छोड़ा था..?
– हां। तब वहां घुटन थी, अब यहां। फिर वह बात भी पुरानी हो गयी।
– पर आप लालू जी के सहयोग से ही राज्यसभा में हैं..?
– राज्यसभा में कोई घुटन नहीं है। वहां हर समय एसी चलते रहते हैं। दिल्ली में मेरा निवास भी सोनिया जी के घर के पास ही है। वह भी काफी खुला है। घुटन तो बस लालू जी के घर में है।
शर्मा जी वहां से उठकर रामपाल यादव के घर जा पहुंचे। वे अपनी लालटेन को घूरे पर फेंककर लौटे ही थे। उन्होंने भी यही कहा कि वे लालू जी के दल में घुटन महसूस कर रहे थे।
– पर आप तो शुरू से ही लालू जी के साथ थे..?
– हां, आप ठीक कहते हैं। लालू और राबड़ी भौजी के साथ तो कोई दिक्कत नहीं थी; पर अब मीसा भतीजी हमें घर से ही निकालना चाहती है, तो घुटन तो होगी ही।
हम नीतीश कुमार से मिले, तो उनका कहना था कि बिहार में हमारा और सुशील मोदी का साथ कई साल से एक कमरे में अच्छा निभ रहा था; पर उसमें एक और मोदी घुस आये, तो घुटन होनी ही थी। इसलिए हम उनसे अलग हो गये।
– पर कई लोग घुटन की शिकायत करते हुए आपका दल छोड़कर नरेन्द्र मोदी के साथ जा रहे हैं।
– वे सब अवसरवादी हैं।
– पर वे तो स्वयं को समाजवादी बताते हैं ?
– समाजवाद का ही दूसरा नाम अवसरवाद है। समझे… ?
समाजवाद की यह असलियत जानकर हम कुछ कांग्रेसियों के पास गये। मनमोहन सिंह से पूछा, तो वे बहुत देर मौन रहे। फिर भारी मन से बोले, “मैं तो दस साल से घुट रहा हूं; लेकिन जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां ? पर अब तो बस दो ही महीने की तो बात है। फिर चंडीगढ़ की खुली हवा होगी और मैं।”
हम दोनों सोनिया मैडम के घर गये, तो वहां बड़े-बड़े अक्षरों में ‘कुत्तों से सावधान’ का बोर्ड लगा था। इसलिए हमने चौकीदार से ही यह प्रश्न पूछ लिया। वह बोला कि मैडम तो जब से भारत आयी हैं, तब से ही घुटन में हैं; पर पहले पति का बंधन था और अब पुत्र का, जो उन्हें खुली हवा में नहीं जाने देता। फिर भी वे साल में कई बार विदेश हो आती हैं। इटली में उनका पक्का ठिकाना है ही। हो सकता है चुनाव के बाद सदा के लिए वहीं चली जाएं।
राहुल बाबा प्रश्न सुनते ही गुस्से में आ गये। ऐसा लगा मानो टेप का बटन दब गया हो, “हां, घुटन है। बहुत घुटन है; पर इसके लिए सिस्टम बदलना होगा। महिलाओं को शक्ति और युवाओं को तरक्की देनी होगी। अल्पसंख्यकों का विकास करना होगा। हम इसके लिए मनरेगा लाये। सूचना का अधिकार लाये। पहले हम भूख, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी लाये और अब इसके विरुद्ध कानून भी लाएंगे…।”
उनके मन की घुटन देखकर हमने वहां से खिसकना ही उचित समझा। हम लोग मुलायम सिंह, मायावती, ममता, जयललिता, नवीन पटनायक आदि कई लोगों से मिले। सब इस बात से दुखी थे कि जब तक माल मिलता रहा, तब तक तो चुप रहे; पर अब उनके कई साथी घुटन की शिकायत कर रहे हैं।
केजरी ‘आपा’ के बारे में पता लगा कि वे प्रवास पर हैं; लेकिन कुछ दिन पहले ही उनके नौटंकी दल में जुड़ने वाले कई लोग अब घुटन अनुभव कर रहे हैं। अन्ना हजारे तो पहले ही उन्हें छोड़ चुके हैं; पर मीडिया से मिलीभगत वाला साक्षात्कार जारी होने के बाद तो इसकी गति बहुत तेज हो गयी है। ममता और अन्ना की दिल्ली में हुई ‘फ्लॉप रैली’ के बाद लोग समझ नहीं पा रहे कि कौन किसके साथ घुटन अनुभव कर रहा है।
मैंने शर्मा जी को कहा कि घुटन के कारण अपने पुराने घर छोड़कर लोग जहां जा रहे हैं, जरा वहां का हाल भी तो देख लें। इस पर शर्मा जी ने अपनी खटारा भाजपा कार्यालय की ओर मोड़ दी।
वहां का हाल तो और भी गजब था। जितने लोग अंदर थे, उससे अधिक अंदर आने के लिए लाइन लगाये थे। यद्यपि कमरा काफी बड़ा था; पर सबके आने से वहां भी घुटन हो जाने का खतरा था। मैंने एक नेता जी से यह पूछा, तो वे बोले, “सत्ता की शीतल बयार हर घुटन को समाप्त कर देती है। जिधर गुड़ होगा, चींटी उधर ही तो जाएंगी।”
– लेकिन यदि सत्ता न आयी तो.. ?
– तो ये घुटनबाज यहां भी घुटने लगेंगे।
– और आ गयी तो..?
– तब दूसरे दलों में घुटन महसूस करने वाले बहुत बढ़ जाएंगे। हो सकता है वहां भगदड़ ही मच जाए।
कपड़ों की तरह दल और दिल बदलने वाले अवसरवादियों को देखकर शर्मा जी वर्तमान राजनीति में ही घुटन अनुभव करने लगे। अत: मिलना स्थगित कर उन्होंने अपनी गाड़ी घर की ओर मोड़ दी।

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