सात साल की छवि को घंटों में नेस्तनाबूद किया जाति विशेष की राजनीति ने

1
216

लीना

संदर्भ- बरमेश्वर मुखिया की शवयात्रा में उपद्रव

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. सी.पी ठाकुर और बिहार सरकार में पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह ने 3 जून को कहा कि बरमेश्वर मुखिया की ‘‘शहादत’’ पर किसी को रोटी सेंकने की इजाजत नहीं दी जाएगी। उन्होंने भाजपा कार्यालय में एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि लोग उनकी शहादत पर राजनीति न करें। उन्होंने मुखिया जी को ‘‘गांधीवादी’’ भी बताया। उन्होंने एक दिन पहले शवयात्रा के दिन पुलिस द्वारा धैर्य से काम लेने की भी सराहना की। खासकर डीजीपी अभयानंद के कार्य को सराहनीय बताया। इससे एक दिन पहले बरमेश्वर मुखिया की हत्या के बाद भी कई सफेदपोश उन्हें ‘‘गांधीवादी’’ कह चुके हैं।

यह बरमेश्वर मुखिया की आरा से पटना के बांस घाट तक की वही शवयात्रा थी, जिसमें उपद्रवियों के कारण कई घंटे सहमा और रूका रहा पूरा राजधानी पटना और उपद्रवियों ने कुछ ही घंटे की तोड़फोड़ में चार करोड़ का नुकसान किया। देखते ही देखते पटना में उन्होंने पांच बड़े वाहन, आठ चारपहिए, दस बाइक, एक आटो, दो टैªफिक चेकपोस्ट जलाए और एक मंदिर व दो भवनों में आग लगाई। और ये वही डीजीपी अभयानंद हैं जिन्होंने इन सारी उपद्रवों के बाद यह बयान दिया कि ‘‘शवयात्रा के दौरान कार्रवाई से स्थिति बिगड़ सकती थी। लोग शव छोड़कर भाग जाते, तो पुलिस के लिए स्थिति संभालना मुश्किल हो जाता। इसलिए पुलिस ने संयम बरता।’’ जबकि उपद्रव की आशंका पहले से थी और यही नहीं शवयात्रा के दौरान बरमेश्वर के परिजनों-मित्रों द्वारा माइक से बार बार कहा जाता रहा कि ये उपद्रवी उनके साथ नहीं हैं। तो क्या यह बातें राज्य के पुलिस की नीयत पर शक नहीं डालती? कई अखबारों ने भी इस बात पर सवालिया निशान लगाए हैं।

बरमेश्वर मुखिया की अंतिम यात्रा में आमजनों सहित भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डा. सी.पी ठाकुर, विक्रम के विधायक अनिल कुमार, सांसद राजीव संजन उर्फ ललन सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह आदि कई नेता शामिल हुए।

यह वही रणवीर सेना प्रमुख बरमेश्वर मुखिया थे जो सात साल भूमिगत और नौ साल जेल में रहे। 1995 से 2000 के बीच राज्य में रणवीर सेना द्वारा अंजाम दिए गए कई जनसंहारों में 277 लोगों की जान गई। जिनके बाबत बरमेश्वर मुखिया पर 26 मुकदमे दर्ज हुए।

एक जून को तड़के बरमेश्वर मुखिया की हत्या होने से लेकर अबतक कई लोग विभिन्न मीडिया और सोशल नेटवर्क साइटों पर यही बयान दे रहे हैं कि उन्होंने भूतकाल में जो किया वह उस समय किसानों के हक में था और कइयों ने तो उनकी तुलना भगत सिंह तक से कर डाली। किसी की हत्या बेशक निंदनीय है। लेकिन सवाल यह है कि यहां राज्य में विधि व्यवस्था में ‘सराहनीय’ काम करने वाले, बरमेश्वर मुखिया को शहीद, गांधीवादी बताने वाले और उनके समर्थन में आगे आए लोग कौन हैं ?

गौरतलब है कि ये सभी के सभी उसी अगड़ी जाति के हैं, के समर्थक हैं, जिनकी रणवीर सेना हुआ करती थी। इन सभी ने चाहे वे सत्तारूढ़ दल के हो या विपक्षी पार्टियों के, ने मुखिया की हत्या की आड़ में जातिवाद की राजनीति करने का कोई मौका नहीं गंवाया। उन्हें अपना वर्चस्व दिखाने का मौका मिला, चाहे वह तोड़-फोड़ ही क्यों न हो। कोई मौका चूक न जायें! पिछले इन दिनों में इन लोगों ने जाति विशेष का समर्थन करने, नेता बनने की तत्परता और होड़ भी खूब दिखायी।

राज्य में विधि व्यवस्था में ‘सराहनीय’ काम करने वाले भी इसीलिए संदेह के घेरे में हैं। राज्य में हाई अलर्ट के बावजूद, आखिर किसके भरोसे उन्होंने राजधानी को आग के हवाले छोड़ दिया? इस घटना ने एक बार फिर राज्य की छवि बिगाड़ दी है। एनडीए की सरकार के पिछले सात सालों में बिहार की छवि जो एक विकासशील प्रदेश की बन रही थी। जाति विशेष का समर्थन करते हुए ‘सराहनीय’ काम करने वाले ने उपद्रवियों को तांडव करने की खुली छूट देकर सात घंटे से भी कम समय में हिलाकर रख दिया। यह सब उसी दिन हो रहा था, जिस दिन राष्ट्रीय स्तर पर खबर आ रही थी कि बिहार की विकास दर देशभर में सबसे अधिक है।

वोट की राजनीति, सत्ता सुख और जाति प्रेम नहीं छोडते हुए इनलोगों की तकलीफ इसलिए भी ज्यादा रही कि आखिर हत्या के विरोध में सत्ता में मौजूद जाति विशेष के लोग हमारे साथ यानी बरमेश्वर की हत्या के विरोध में खुल कर साथ क्यों नहीं आए? उनकी तकलीफ है कि पिछड़ों को हटाकर अब सत्ता पर अब फिर उन्हीं अगड़ों का कब्जा क्यों न हो ? इतने हंगामों के बाद मुख्यमंत्री की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है। उनके पिछले कार्यकाल से ही उनपर जाति विशेष का पिछलग्गू होने का आरोप लगता रहा है। उपद्रव के मामले में पुलिस-प्रशासन या डीजीपी के विरूद्ध मुख्यमंत्री द्वारा अब तक कोई कार्रवाई न करने के पीछे भी यही जाति राजनीति काम कर रही है, ताकि एक खास जाति उनके वोट बैंक से दूर न चला जाए। हालांकि मुख्यमंत्री की जाति के और पिछड़े दलित लोग अब इसलिए खुश हैं कि वे (मुख्यमंत्री ) इस घटना से सबक लेते हुए आगे अब शायद जाति विशेष को बेवजह ज्यादा महत्व नहीं देंगे।

जो भी इस इस घटना ने और इस जाति विशेष की राजनीति ने मुख्यमंत्री द्वारा सात साल में राष्ट्रीय ही नहीं अंतराष्ट्रीय स्तर पर बनाए गए राज्य की सकारात्मक छवि को सात घंटे से भी कम समय में नेस्तनाबूद कर दिया।

1 COMMENT

  1. अखबारी छबि की आपने चिंता की है? आपको मालूम होना चाहिए की इस विधानसभा चुनाव में NDA को केवल ३९ प्रतिशत मत पड़े थे और केवल ५२ प्रतिशत ही मतदान भी हुआ था- यानी बिहारके २० लोग जिसमे मने १२ BJP के और ८ नीतीश के जो स्वयम एक जाती का दल चलते हैं और बीजेपी इनकी B टीम हो गयी है बीजेपी ने भी अपने भीतर जातिवादी यात्वों को जमा कर लिया है- मेरे मित्र मोदी और चौबे सम्पूर्ण समाज के नेता नहीं बन पाए है बरमेश्वर मुखिया का मरा जाना दुखद है प्रशाशन की विफलता है वैसे उन्होंने काम तो जातीय हे एकिया था -जिनके विरोध में किया वह भी उतने ही बुरे थे जातीयता के कर्ण जिनको उनसे प्रेम है या विरोध है वे सभी BJP के लायक नहीं लग्लते -वैसे मैं स्वयम किसी पिछड़ी जाती नहीं हूँ की आपको मेरे कमेंट्स खराब लगे पर जिस सरकार की कोई छबि सकारी विग्यपनोसे बनानी पड़ती है उसकी चिंता आप नहीं करे

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here