इतनी चाहत क्युं है मुझसे
ख्वाबों में हरपल आती हो
मुझे हंसाती, मुझे मनाती
आस के मंजर बनाती
बाहों के दरमियान
रौशनी बन सिमटी जाती
कब तक मेरे ख्वाहिसों की
गुलामी तुम किया करोगी
सहारे कब तक दिया करोगी?
आखें बस तुम्हे ढुढंती हैं
जुबां बस तुम्हे पुकारती
जगते हुए तुम्हे हीं देखता
सपने भी तेरी हीं खातिर
इक पल ओझल हुए जो
सांस भी सिमटी है जाती
कब तक मेरी जिन्दगी को
सवांरते तुम जिया करोगी
सहारे कब तक दिया करोगी
यादों को खिंच लो वापस
इन्ही में खो कर जी रहा हुं
हर शबों में इसी सहारे
अश्कों को मै पी रहा हुं
कब तक इन जख्मी मजबूर
कदमों को थामा करोगी
छुड़ा लो दामन मेरे हाथों से
सहारे कब तक दिया करोगी
बहुत बढ़िया!