कितनी छुट्टियां मनाएंगे हम ?

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विजय कुमार

भारत की अनेक विशेषताएं हैं, जो इसे दुनिया के अन्य देशों से बिल्कुल अलग खड़ा कर देती हैं। इनमें से एक है सरकारी कार्यालयों में होने वाली असीमित छुट्टियां। 15 अगस्त, 1947 को स्वाधीनता प्राप्ति के बाद प्रधानमंत्री नेहरू जी ने ‘आराम हराम है’ का नारा दिया था; पर जो कुप्रथाएं वे डाल गये, उसका परिणाम ‘काम हराम है’ में दिखाई दे रहा है।

भारत में इतने पंथ, सम्प्रदाय, मजहब, देवी-देवता और उनके प्रवर्तक हैं कि हर दिन किसी न किसी का जन्म या पुण्यतिथि पड़ ही जाती है। इस नाते देखें, तो भारत में हर दिन पावन है। हिन्दुओं के कई पर्व वैष्णव और स्मार्त के चक्कर में एक की बजाय दो दिन मनाये जाते हैं। अब सिख पंथ के अनुयायी भी प्राचीन कैलेंडर और नानकशाही कैलेंडर के आधार पर दो भागों में बंटने लगे हैं।

धार्मिक त्योहारों के साथ ही स्वाधीनता संग्राम के कुछ सेनानी, कुछ सामाजिक, राजनीतिक तथा जातीय नेता भी हैं। हर राज्य या जिले में कुछ स्थानीय पर्व भी होते हैं। कुछ ऐतिहासिक घटनाएं भी ऐसी हैं, जिनको याद करने से प्रेरणा मिलती है। हमने इन्हें मनाने के लिए छुट्टी नामक सरल विधि ढूंढ ली है। इसलिए भारत को पर्व और त्योहारों के साथ ही सरकारी छुट्टियों का देश भी कहें, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

केन्द्रीय कार्यालय तो घोषित रूप से शनिवार और रविवार अर्थात साल में 104 दिन की छुट्टी करते हैं। त्योहार, जयंती आदि के भी 17 सार्वजनिक अवकाश हैं। इसके साथ मातृत्व और पितृत्व अवकाश, बीमारी, आकस्मिक, वैतनिक और अवैतनिक अवकाश आदि का हिसाब लगायें, तो कर्मचारी वर्ष में प्रायः 200 दिन ही कार्यालय आते होंगे। जितने दिन आते हैं, उतने दिन भी काम करते हैं या नहीं, यह अलग बात है। चुनाव, उपचुनाव, बाढ़, धरने, शोक, हड़ताल, मजहबी दंगे आदि के कारण भी कार्यालय बंद रहते हैं।

भारत में छुट्टी की परम्परा कब से चल रही है, यह कहना कठिन है; पर रविवारीय छुट्टी निश्चित रूप से अंग्रेजों की ही देन है। उनकी मान्यता है कि ईश्वर ने छह दिन में सृष्टि बनाई और सातवें दिन अर्थात रविवार को आराम किया। उसकी याद में पूरी दुनिया के ईसाई रविवार को छुट्टी मनाते हैं। इसका उपयोग वे अपने अनुयायियों तथा नव धर्मान्तरितों को संगठित करने के लिए भी करते हैं। इसलिए रविवार को हर चर्च में प्रार्थना सभा भी होती है।

ईसाई देशों ने दुनिया के जिन देशों पर आक्रमण कर अधिकार किया, वहां भी यही परम्पराएं थोप दीं। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भी अधिकांश देशों में ये जारी रहीं, क्योंकि देश छोड़ने से पहले ही अंग्रेजों ने यह व्यवस्था कर दी कि सत्ता अंग्रेजी मानसिकता वाले लोगों को ही मिले। कुछ मुस्लिम देशों में आज भी शुक्रवार को अवकाश होता है; पर अधिकांश दुनिया रविवार को ही छुट्टी मनाती है। कम्प्यूटर के वैश्विक युग में अब तो यह एक मजबूरी भी हो गयी है।

पहले भारत के सब सरकारी कार्यालय केवल रविवार को बंद होते थे। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने केन्द्रीय कार्यालयों में शनिवार को भी छुट्टी कर दी। जैसे जवाहरलाल नेहरू सोवियत रूस से प्रभावित थे, ऐसे ही राजीव गांधी अमरीका के भक्त थे। उन्हें जमीनी वास्तविकताओं का कुछ पता नहीं था। उन्होंने अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देशों में सप्ताह में पांच दिन काम होते देखा। बस, बिना सोचे-समझे उन्होंने इसे भारत में भी लागू कर दिया। वे भूल गये कि भारत में धर्म, पंथ, मजहब, जाति या क्षेत्रीय आधार पर भी खूब छुट्टियां होती हैं।

भारत में प्रायः सरकारी कार्यालय प्रातः दस से सायं पांच बजे तक खुलते हैं। आम जनता को इससे हानि न हो, यह सोचकर राजीव गांधी ने इनका समय एक घंटा बढ़ा दिया। उनका मत था कि कर्मचारी पांच दिन तक एक घंटा अधिक बैठकर अपने निर्धारित काम पूरे कर लेंगे और आम जनता को परेशानी नहीं होगी।

राजीव गांधी का विचार था कि इस प्रकार सप्ताह में पांच ही दिन कार्यालय खुलने से बिजली बचेगी। लोग उस दिन घर पर रहेंगे, तो अपने परिवार को अधिक समय दे पाएंगे। वाहनों पर खर्च होने वाला तेल बचेगा तथा सड़कों पर यातायात कम रहेगा। ऐसी अनेक बातें उस कही और सोची गयी थीं।

पर हुआ क्या ? कुछ दिन तो लोग ठीक समय से आये, फिर वही ढाक के तीन पात की तरह ग्यारह बजे आकर तीन-चार बजे प्रस्थान करने लगे। अर्थात कर्मचारियों को लाभ हुआ और जनता को हानि। बहुत दिनों बाद राजीव बाबू को यह बात समझ में आयी कि लोग सरकारी सेवा में ‘पूरा वेतन आधा काम’ के लिए आते हैं। लोग निजी काम तो पूरे मनोयोग से करते हैं; पर सरकारी सेवा में आते ही यह मंत्र दोहराने लगते हैं – हम आते हैं, हम जाते हैं; बस इसका वेतन पाते हैं।। 

इन दिनों कई जगह कर्मचारी आते तथा जाते समय एक मशीन पर अंगूठा रखते हैं। इससे उनके आने और जाने का समय स्वतः कम्प्यूटर में दर्ज हो जाता है। इसके आधार पर ही उनके वेतन और भत्ते बनते हैं। इसका प्रायः सभी जगह विरोध हो रहा है। केन्द्रीय सचिवालय में तो इसे बंद ही कर दिया गया है। अर्थात सप्ताह में पांच दिन भी ठीक से काम करने की मानसिकता हमारी नहीं है। केन्द्र की तरह अनेक राज्यों में भी पांच दिवसीय सप्ताह की कुप्रथा चल पड़ी है। जहां यह नहीं है, वहां भी मांग हो रही है। लगता है कि आगामी कुछ समय में पूरा देश ही शनिवार-रविवार को छुट्टी पर जाने लगेगा।

न्यायालयों में इसके अतिरिक्त जून में भी छुट्टी होती है। यह प्रथा तब की है, जब अंग्रेज ही न्यायाधीश होते थे। उन्हें मई-जून की गरमी बहुत भारी पड़ती थी। अतः वे इन दिनों सपरिवार इंग्लैंड चले जाते थे। सर्दियों में भी वे क्रिसमस की लम्बी छुट्टी मनाते थे। अंग्रेजों के जाने के बाद भी कुछ परिवर्तन के साथ यह कुप्रथाएं जारी हैं। छोटे बच्चों के लिए भीषण गरमी और सरदी का अवकाश तो ठीक है; पर विश्वविद्यालयों में तो वर्ष भर काम होना ही चाहिए।

दुनिया के अधिकांश देश किसी एक धर्म से बंधे हैं। अतः वहां उन धर्मों के अनुसार छुट्टियां होती हैं; पर सेक्यूलरवादी भारत हर धर्म और जाति के नाम पर छुट्टी मनाता है। इस कारण हम दुनिया के अन्य देशों की तुलना में लगातार पिछड़ रहे हैं। साल में 150 दिन छुट्टी वाला देश कैसे आगे बढ़ सकता है, यह कोई नहीं सोचता ?

आगे बढ़ने वाला व्यक्ति, समाज या देश आराम की बजाय काम को ही चुनता है। बी.बी.सी (9.5.2012) के अनुसार पुर्तगाल ने अपने खर्च घटाने और आय बढ़ाने के लिए 14 सार्वजनिक अवकाशों को घटाकर 10 कर दिया है। यह व्यवस्था अगले पांच वर्ष तक जारी रहेगी। जिन चार अवकाशों को काटा गया है, उनमें से दो कैथोलिक पर्व हैं और इसके लिए वैटिकन ने भी स्वीकृति दे दी है।

बी.बी.सी (10.4.2012) के अनुसार ब्रिटेन में प्रतिवर्ष 10 सार्वजनिक अवकाश होते हैं। वहां के एक विचार मंच (थिंक टैंक) सेंटर फॉर इकॉनोमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च का मत है कि एक दिन के अवकाश से ब्रिटेन को 2.30 अरब पाउंड की हानि होती है। छुट्टियां समाप्त करने से उसका सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी) 19 अरब पाउंड बढ़ सकता है। संस्था के मतानुसार दक्षिण कोरिया बहुत शीघ्र अपने वित्तीय संकट से उबर गया, क्योंकि वे लोग ब्रिटेन वालों की अपेक्षा साल में 500 घंटे अधिक काम करते हैं।

दूसरी ओर हम भारत के लोग और हमारी सरकार अत्यधिक छुट्टीप्रिय है। लखनऊ में उर्वशी शर्मा नामक एक समाजसेवी महिला आर.टी.आई महिला मंच के नाम से सूचना के अधिकार के लिए काम करती हैं। पिछले दिनों उनकी दस वर्षीय बेटी ऐश्वर्या ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र लिखकर उन आदेशों की सत्यापित छायाप्रतियां मांगी, जिनके द्वारा 15 अगस्त, 26 जनवरी और दो अक्तूबर को राष्ट्रीय पर्व घोषित किया गया है।

प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह पत्र गृहमंत्रालय को भेज दिया। वहां से 17 मई, 2012 को उत्तर भेजा गया कि ऐसा कोई शासनादेश कभी जारी नहीं किया गया। जरा सोचें, बिना शासनादेश के पूरा देश गत साठ साल से तीन दिन की छुट्टी मना रहा है। इन तीन दिन में तो निजी कार्यालयों और व्यापारियों तक को जबरन छुट्टी मनानी पड़ती है। धन्य हैं हम और हमारी शासन व्यवस्था।

अब समय आ गया है कि हमें इन छुट्टियों पर पुनर्विचार करना चाहिए। यदि हमें अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना है, तो इस छुट्टी वाली मानसिकता से छुट्टी पानी होगी। कार्यालय साल में 300 दिन खुलें तथा सब इतने दिन ठीक से काम करें, तब वातावरण कुछ सुधर सकता है।

कुछ लोगों का मत है कि 52 रविवार के साथ निम्न 13 छुट्टियां पर्याप्त हैं। मकर संक्राति, होली (रंगोत्सव), महावीर जयंती, बुद्ध पूर्णिमा, रक्षाबंधन, ईद, विजयादशमी, दीपावली, भाई दूज, गुरु नानक जयंती, क्रिसमस तथा दो प्रांतीय या स्थानीय अर्थात कुल 65 अवकाश।

इसमें भारत के सभी प्रमुख धर्म व मतों के लिए अवकाश है; पर जातीय नेताओं की जयंतियां तथा 26 जनवरी, 15 अगस्त और 2 अक्तूबर जैसे तथाकथित राष्ट्रीय दिवस छोड़े गये हैं, जो अब किसी के मन में उत्साह नहीं जगाते। यदि किसी को अपने निजी कार्य के लिए छुट्टी चाहिए, तो 15-20 दिन की अवैतनिक छुट्टी की व्यवस्था हो। विशेष प्रकार की समस्याओं के लिए विशेष व्यवस्था सदा होती रही है, उसकी गुंजाइश यहां भी रहनी चाहिए। जिस पर्व या जयंती को दो-चार प्रतिशत लोग मनाते हैं, उसके लिए पूरे कार्यालय को बंद करना बुद्धिमानी नहीं है।

15 अगस्त स्वाधीनता की वर्षगांठ है। इस समय यह विषय व्यापक विमर्श की मांग करता है।

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  1. विजय जी, आपने अपने लेख में रोग की केवल जानकारी दी है रोग का कारण नहीं बताया.जब पांचवे वेतन आयोग ने वेतन में बढौतरी की सिफारिश की थी तब छुट्टियों के बारे में भी दिशा निर्देश दिये थे. १.सप्ताह में पांच के स्थान पर छ्ह कार्य दिवस हो. २. १५ अगस्त, २६ जनवरी,२ अक्तूबर को छोड कर सभी छुटियां रद्द कर दी जायें. पर करमचारी युनियनों के दबाव में नेताओं नें देश को निक्कमा बना दिया.

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