सूत्रधार :- तो भाइयो और बहिनों , आजकल भाजपा लोगो को समझती फिर रही है की भारत में भ्रष्टाचार मिटाने हेतु कितना तिया – पांच करना `पड़ता है . पहले भ्रष्टाचारियो के खिलाफ हल्ला बोल करना पड़ता है फिर उन्ही को साथ लाकर उन्हें बेचारा बताकर उनके सुर में सुर मिला कर साबित करना पड़ता की भई बड़ा भ्रष्टाचार है !जिनके खिलाफ शिकायत की उनके खिलाफ करवाई हो जाए तो गुस्सा तो आएगा ही , आखिर उन्हें क्यों लपेट लिया ? जबकि कोशिश तो बसगुदगुदाने की ही थी . और फिर भ्रष्टाचारियो पर कोई करवाई हो जाए तो यह तोसीधे जनता से दगा है , आखिर कौन चाहता है की सरकार से ऐसी कोई गलती हो की गलती से कोई गलत आदमी सजा का पात्र हो जाए ?
विदूषक : – क्योंसर जी ? लगता है की उत्तरप्रदेश चुनाव के पहले आप ने भी लंगोटा कस लिया हैकी सबको ऊँगली करते रहोगे ? अरे थोडा तो उनका भी सोचो, बेचारो के धंधे काटेम है फिर कभी टंगड़ी फंसा लेना , ऐसा न हो की आप की ऊँगली के चक्कर मेंबेचारो की चुनाव लीला कच्ची रह जाए और पब्लिक को भरपूर मजा न आ पाए . ऐसा नही होना चाहिए ,उनको भी पूरा पूरा मौका मिलना चाहिए बड़ी मुश्किल से तो मायाराज के पांच वर्ष व्यतीत हुए है अब जरा जोरआजमाइश भी हो जानी चाहिए , खेल को रोमांचक बनने दीजिये न ?
सूत्रधार : – अबे में खेल को रोमांचक ही तो बना रहा हूँ न !अब देख की भाजपा ने क्या गुलगुला खिलाया है , एक तरफ बाबू शिंह कुशवाहा परआरोप पत्रों के जरिये आरोपों को झड़ी लगा दी दूसरी तरफ मौका पाते ही अपने बाड़े में खीच लायी , अब बाकि की दीन दुनियासवाल पूंछ रही है की – भाइयो यह क्या बात हुयी ? उधर भाजपा बेपरवाह सीदिखती हुयी कह रही है की हमने मौके की नजाकत वाला काम किया , अब आप लोगो से नही हो पाया तो हम क्या करे ?
भारतीय : – क्यों बे कामचोरो , आज क्या खुचड़ लगा रखी है ? कोई माल वाली खबर हो तो हमे खबर करो , जल्दी – जल्दी .
विदूषक : – कोई माल वाली खबर नही है उस्ताद , वैसे चुनाव की धमा चौकड़ी में कुछ लोगनोटों से भरे बैग लेकर यहा से वहा घूम तो रहे पर इस तरह की खबरे तो पुलिसके खातो में जाकर इतिहास हो जाती और अपनी इतनी हिम्मत तो नही है की पुलिस से मामलासमझ सके , क्योकि पुलिस ने हमे समझाना शुरू किया तो इतिहास गया तेल लेनेउलटे भूगोल ही बिगड़ जाएगा .
सूत्रधार : – वैसे उस्ताददूसरी खबर बड़ी दिलचस्प है , वो भाजपा है न भाजपा, वो एक कांड में उलझ गयीहै एक बाबू को पता लिया उसने अब पता चला की बाबू तो पहले भजपाई मतानुसारभ्रष्टाचारी था , तो अब गैर भाजपवादियो ने सवाल दागने शुरू कर दिए हैकी क्यों ये दोगलापन ? अब भाजपा न उगल पा रही है न निगल पा रही है ,औरदूसरो की हंसी छूट रही है . इसे कहते है सर मुंडाते ही ओले बरसना . तक धिना .
भारतीय : – चलो आखिर भाजपा का भी मुंडन संस्कार हो ही गयापहले वह बड़ी इतराती थी की वो दूसरो से ज्यादा पाक साफ है , अब उसे भीराजनीति की सच्चाई का गुणा भाग समझ में आ गया , अयोध्या आन्दोलन के बाद उत्तरप्रदेश की राजनीति में भाजपा फिसलपट्टीपर बैठी थी और उसके अपने लोगो ने उसके लिए घर से बाहर निकलना बंद कर दियाथा तिस पे अब कांग्रेस के ताज़ा युवराज के
तूफानी दौरों ने उसकी नींद उड़ा रखी है , उसे नचाह कर भी अभक्ष्य को उदरस्थ करना पड़ा है वैसे भी भारतीय राजनीति इस खेलकी पुरानी खिलाडी रही है ,खुद भाजपा जूते मारने की धमकी देने वाली ‘ससूरी मायावती’ ओह ! सॉरी ! सुश्री बहिनमायावती को तीन बार मुख्यमंत्री बना चुकी है . यही भारतीय राजनीति मेंवादों -विचारो का कुल विस्तार फलक है .
भारत : – जिस ठोस लज्जाहीनता के साथ भाजपा ने बाबू सिंहकुशवाहा को अपने अंदर समेटा है उससे राजनीति में सुधार की बची खुचीसंभावनाए भी मिट गयी है . लोकपाल विधेयक की आभा में जब भाजपा चमकी थी तब कुछ उम्मीद थी की हो सकता की आडवानी जी केनेत्रत्व में भाजपा ज्यादा साफ सुथरे राजनैतिक विमर्श के साथ आगे बढे ,परभाजपा भी अपनी चुनावी लाचारी के आगे घुटने टेक कर बैठ गयी , यह सत्ता के प्रतिराजनैतिक दलों के अति मोह का ही परिणाम है , कांग्रेस ने भी जिस तरह से शरदपवार को स्वीकार किया था वह भी सत्ता के लिए समझोता था ,
लगभग सभी राजनैतिक दल इसी तरह से चुनावो केबहाने अपनी चतुराई दिखा कर जाति का कार्ड खेलते रहते है और सर्व साधारण इसेस्वीकार करता है , कुशवाहा के मामले में भी यही हो रहा है , बदतर यह कि अब येदुरप्पा ने भी कहना शुरू कर दिया हैकि – वे कम से कम कुशवाहा से तो बेहतर है तो वे क्यों सत्ता और राजनीति सेदूर रहे ?
सूत्रधार : – इस सब में ज्यादा बुराई भी नही स्वामी !आखिर कुशवाहा जी भारतीय राजनीति कि ही सन्तान है , और वैसे भी उनका राजनीतिमें भला होना है या बुरा यह तो जनता ही तय करेगी न ?
भारतीय : – और सिर्फ कुशवाहा भर को क्यों तोप के मुह पर बंधा जाए ? क्या कांग्रेसमुस्लिम आरक्षण का कार्ड नही खेल रही ? वो और मुलायम सिंह क्यों नही अपनेचड्डी बनियान के भीतर नही झांकते ?
जाति आधारित राजनीति बुरी है तो क्या धर्मआधारित राजनीति अच्छी है ? मायावती तो दलित राजनीति के अलावा किसी और बारेमें बात तक नही करती ,उन्हें क्यों नही राजनीति में प्रतिबंधित कर दिया जाता ? या सिर्फ दूसरो कि ही जेबों में गोबर भरा हुआ है ?
भारत : – क्या आप लोग भी राजनीति में कुल इतना चाहते है कि दूसरो जितना बुरा करने को मिले उतना ही आप को भी मिले ? शर्म कि बातहै ! इस पूरे घटनाक्रम में भारतीय राजनीति कि दशा साफ होती है कि कोई भी विचार जातीय राजनीति और प्रतिक्रियावाद से उपर नही उठाना चाहता , जो लोग राजनीति में सेवा और सहायता ढूंढते है उन्हें सिर्फ सर के ऊपर पहुंच चूका दलदल ही दिखता है . दोयम दर्जे के नेताओ और दफ्तरीबाबुओ कि तरह हम सब के लिए लोकतंत्र कि रक्षा सिर्फ यथास्थिति वाद में हीनिहित है . साफ सुथरी राजनीति तो दूसरी दुनिया कि बाते है .