हम कितना गिरेंगे 

डा- राधेश्याम द्विवेदी
भारतीय संस्कृति में नारी को कितना महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है जितना अन्य किसी देश की संस्कृति में नहीं । इसके विपरीत भारतीय इतिहास के मध्यकाल तथा आधुनिक काल में नारी की वह पवित्र स्थिति देखने को नहीं मिलती है। राजपूतकाल में युद्ध का कारण भी नारी को जीतना रहा है । बाद में मुस्लिम तथा अंग्रेज आक्रान्ताओं ने भी इसमें इजाफा ही किया। स्वतंत्र भारत में प्रारम्भिक शासक भी भोग विलास में इतने लिप्त रहे कि ना तो उन्हे भारतीय संस्कृति के नारी की पवित्रता की परवाह रही ना ही सुचिता की। पाश्चात्य सभ्यता व शिक्षा ने नारी की स्थिति भयावह कर दी है। परिणाम स्वरुप इनके संरक्षण की आवश्यकता प्रतीत हुई। महिला एवं समाज कल्याण विभाग इसके लिए आवश्यक साधन धन तथा नियम कानून निर्धारित किया है तथा ये सही रुप में काम कर रहीं हैं इसकी निगरनी की व्यवस्था करता है। इसके लिए एक परिवीक्षा अधिकारी जिले स्तर पर होता है।
विधवा, परित्यक्ता, निराश्रित, कुंवारी माताओं एवं समाज से प्रताड़ित महिलाओं को आश्रय देने के उद्देश्य से नारी निकेतन स्थापित है। इन नारी निकेतनों में महिलाओं और उनके 7 वर्ष तक के बच्चों को रखा जाता है और महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाती है। इस तरह की महिलाओं के द्वारा आश्रय विहीनता संबंधी प्रमाण पत्र के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। संस्थाओं के संचालन एवं देखरेख के लिए कलेक्टर की अध्यक्षता में परामर्शदात्री समिति गठित होती है। प्रत्येक नारी निकेतन की क्षमता 50 महिलाओं की है। मध्यप्रदेश में यह नारी निकेतन सतना, उज्जैन, जबलपुर एवं ग्वालियर में संचालित है। मध्य प्रदेश की भांति केन्द्र में तथा अन्य राज्यों में भी निराश्रित महिलाओं तथा बच्चों के लिए नारी निकेतन बाल गृह तथा एसे ही अन्य संस्थायें काम करती है। इन्हें अपने लक्ष्य को पाने में ना केवल विफलता मिली है अपितु अपना अस्त्त्वि बचाने में भी बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा कुछ व्यवसाय प्रवृत्ति के एनजीओ भी अपने प्रभाव व समाज सेवा को दिखाने के लिए इस तरह के काम अनुमति लेकर या स्वमेव अपने प्रभाव का प्रयोग करके देखे जाते है।
हमारे देश में यह बात तो सिर्फ कहने भर की रह गई है कि नारी तुम केवल श्रद्धा हो। स्वतंत्र भारत में समय समय पर तमाम नारी संरक्षण गृहों के काले कारनामे भी प्रकाश में आते रहे है। रोजाना ही मीडिया की सुर्खियों में सामूहिक दुष्कर्म के न जाने कितने मामले आते रहते हैं और सुरक्षा के नाम पर कुछ खास नहीं दिखाई पड़ रहा है।। इसके लिए अनेक कानून बनाये गये पर कोई भी कानून का पालन सही रुप में नहीं होता दिख रहा है। जनता की सुरक्षा के लिए नियुक्त पुलिस खुद अपराध में लिप्त होकर अपना विश्वास खोती चली जा रही है। छेड़छाड़ या अपहरण के मामलों को पुलिस सिरे से नकार देती है। थाने में जाने पर पीड़ित को डरा धमाका कर वे भगा दिया जाता हैं।
अब प्रश्न यह है कि इन नारी निकेतनों , संरक्षण गृहों , सुधार गृहो , संवासिनी गृहों , बाल सुधार गृहों को देखने , उन्हें अर्थ पोषण करने और उनकी व्यवस्था को जांचने परखने की जिम्मेदारी है किसकी। आखिर वह कौन सा मानक होता है जिस आधार पर इन केन्द्रो को चलाने की अनुमति दी जाती है। इन केन्द्रो को संचालित करने वाली गैर सरकारी संस्थाओ को किस आधार पर ,कौन चुनता है। इनको धन किस आधार पर दिया जाता है। इनके रख रखाव और मानक को परखने जिम्मेदारी किसकी है। जिले में चलने वाले ऐसे गृहो लेकर जिला प्रशासन की क्या भूमिका होती है ?
प्रायः देखा गया है और अभी भी पाया जा सकता है कि जो भी गैर सरकारी लोग या संस्थाएं ऐसे गृहो का सञ्चालन कर रहे हैं वे इतने रसूख वाले होते हैं कि उन पर सवाल करने की हिम्मत किसी सामान्य आदमी या कस्बाई पत्रकार की भी नहीं है। इन गृहो की प्रत्येक गतिविधि के बारे में उस इलाके का थानेदार सब जानता है। इन गृहो के संचालक ,वहां की राजनीति और प्रशासन एक दूसरे में बहुत ही गहरे जुड़े हैं। बिहार में मुजफ्फरपुर, उसके बाद उत्तर प्रदेश में देवरिया बालिका-गृह की जो एक ही तरह की सच्चाई सामने आई है, उसने देश भर के उन तमाम ठिकानों पर सवालिया निशान लगा दिए हैं, जहां सहारा-बेसहारा लड़कियां दिन गुजार रही हैं। इसे देखते हुए दिल्ली महिला आयोग ने राजधानी में महिलाओं और लड़कियों के सभी शेल्टर होम्स के सोशल ऑडिट का आदेश दिया है।
समय-समय पर ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं कि इन सुधार घर, संरक्षण गृह, बालिका गृह, बालिका आश्रम नामधारी ठिकानों पर नेता और बड़े-बड़े अधिकारी मुआयने के बहाने पहुँचते रहते हैं। शाबाशी और कमाई जारी रखने के लिए उन्हें लड़कियां परोसी जाती हैं। सूत्रों के अनुसार मथुरा, वृंदावन में यह काम दशकों से जारी है। जब मामला मीडिया की सुर्खियों में पहुंचता है, तब शासन, सरकारें हरकत में आती हैं। इससे पहले वे आखिरी दम तक चुप्पी साधे रहते हैं। मुजफ्फरपुर में अनाथ बच्चियों के शोषण की ऐसी चीख उठी कि देश की संसद और राजनीति में भूचाल आ गया है। मामला इस कदर संगीन हो चुका है कि इसकी जांच सीबीआई को करनी पड़ रही है। इन मामलों बहुत मुश्किल से मामला दर्ज हो पाता है। हमारी न्याय प्रणाली कितनी त्वरित है, ये बात भी किसी से छिपी नहीं है। फिलहाल, तो यूपी और बिहार की ताजा दो घटनाओं से पूरा देश शर्मिंदित हो रहा है। लोगों में भारी गुस्सा है।
बिहार के बाद उत्तर प्रदेश में संरक्षण गृह का जो सच सामने आया है वह शर्मनाक ही नही हैरान करने वाला है। उत्तर प्रदेश के देवरिया में संरक्षण गृह संचालिका द्वारा चलाए जा रहे सैक्स रैकेट के खुलासे के बाद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी का सक्रिय होना और 12 घन्टे में प्रदेश के सभी जनपदों से रिपोर्ट तलब करना इस बाॅत की ओर संकेत करता है कि सरकारें आग लगने के बाद कुआ खोद रही है। मुख्यमंत्री के आदेश के बाद लखनऊ, हरदोई और सुलतानपुर के संरक्षण गृह से लापता होने वालें की संख्या इस बाॅत का संकते है कि संरक्षण सुधार गृहों और बाल सुधार गृहों की स्थिति सारे देश में लगभग नरक से कम नही है। देवरियाॅ काण्ड के खुलासे के बाद हरदोई जनपद के बेनीगंज कस्बे में किराये के मकान पर आशया ग्रामोद्योग द्वारा संचालित स्वाधारा गृह में छापा मारी में 19 महिलाओं का गायब मिलना और गाजियाबाद के बलिका गृह से पिछली 31जुलाई से चार लड़कियों के गायब होने का खुलासा हुआ है। सुलतानपुर से भी 09 महिलाओं के गायब होने की खबर सामने आई हैं। अभी हर जनपद की रिपोर्ट तो सामने नही आई है लेकिन जो कुछ सामने आ रहा है वह चैकाने वाला है।
देश के समाज कल्याण एवं महिला कल्याण मंत्री के मार्फत पूरे देश के संरक्षण, सुधार गृहों की रिपोर्ट तलब किया जाना चाहिए । यही नही हर जनपद में जिलाधिकारी, जिला समाज कल्याण आधिकारी और महिला कल्याण अधिकारी की रिपोर्ट तलब किया जाना चाहिए । उन्होने कब कब किस किस संरक्षण गृह का निरीक्षण किया। वास्तविकता यह है कि दावें के विपरीत न तो सरकार काम कर रही है न ही अफसर काम कर रहे है। पैसे और हवस के आगे सब बेबस नजर आ रहे है। बाल संरक्षण गृहों से बच्चों का भागना, महिला संरक्षण गृहों में शोषण,कुपोषण और उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार करना जिम्मेदारों का हक सा बन गया है। ऐसे में क्या हम रामराज की कल्पना कर सकते है। बिहार के मुजफ्फरपुर में भी बेसहारा लड़कियों के लिए बने आश्रय गृह में 34 नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण का मामला सामने आया है। इस जघन्य कांड में 3 बच्चियों की मौत की भी बात सामने आ रही है। इस बालिका गृह का संचालन ब्रजेश ठाकुर नाम के शख्स का एनजीओ करता है। ब्रजेश ठाकुर समेत कई अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।
इस घटना के बाद यूपी के देवरिया में मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं समाज सेवा संस्थान द्वारा शहर कोतवाली क्षेत्र में संचालित बाल एवं महिला संरक्षण गृह में रहने वाली एक लड़की रविवार को महिला थाने पहुंची और संरक्षण गृह में रह रही लड़कियों को कार से अक्सर बाहर ले जाये जाने और सुबह लौटने पर उनके रोने की बात बतायी। शिकायत मिलने पर पुलिस ने सम्बन्धित संस्थान परिसर में छापा मारा और वहां से 24 बच्चों तथा महिलाओं को मुक्त कराया। साथ ही संस्थान परिसर को सील कर वहां की अधीक्षिका कंचनलता, संचालिका गिरिजा त्रिपाठी तथा उसके पति मोहन त्रिपाठी को गिरफ्तार कर लिया। संरक्षण गृह में 42 लड़कियों का पंजीयन कराया गया है जिनमें से 18 अभी लापता हैं। उसकी तलाश की जा रही है। यह भी बताया कि वहां रहने वाले बच्चों ने पुलिस को संरक्षण गृह में रह रही लड़कियों से देह व्यापार कराने की बात बतायी है।
इन घटनाओं के बाद केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने पूरे देश के जिलाधिकारियों को कोई दिशा निर्देश नही जारी किया। हा, इतना अवश्य है कि दो वर्ष पूर्व मेनका गांधी ने सांसदों को पत्र लिखकर उनके संसदीय क्षेत्र में कार्य कर रहे महिला संरक्षण संस्थानों की हालत का जायजा लेने कहा था। लेकिन पत्र के बाद सांसदों ने कुछ भी नहीं किया और स्वंय मेनका गांधी ने क्या कदम उठाया पता नही। बिहार के मुजफ्फरपुर के बाद उत्तर प्रदेश का देवरिया जिन शर्मनाक कारणों से चर्चा में है उससे यही पता चल रहा है कि अपने देश में बालिका अथवा नारी संरक्षण गृह चलाने का काम धूर्त और लंपट किस्म के लोग भी कर रहे हैं। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि ऐसे समाज विरोधी तत्व पहुंच वाले भी साबित हो रहे हैं। जैसे यह साफ है कि मुजफ्फरपुर के बालिका आश्रय गृह का संचालन एक खराब छवि और दागदार अतीत वाले शख्स के हाथ में था वैसे ही यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि देवरिया के नारी संरक्षण गृह की कमान भी संदिग्ध किस्म के लोगों के हाथ पहुंच गई थी। वे समाजसेवा के नाम पर किस तरह समाज विरोधी काम करने में लगे हुए थे, इसका पता इससे चलता है कि देवरिया के नारी संरक्षण गृह के बारे में लगातार मिल रही शिकायतों के कारण उसे बंद करने के निर्देश देने पड़े थे।
नारी निकेतन, नारी संरक्षण, संवासिनी गृह एवं बाल सुधार गृहों के संदर्भ में कई विभत्स और शर्मसार करने वाली घटनाए सामने आ चुकी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने बिना किसी देरी के देवरिया के जिला अधिकारी समेत अन्य संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्ती दिखाई। और भी अच्छा होगा कि उन्हें उनकी नाकामी के लिए कुछ और दंड दिया जाए। तबादले या निलंबन को यथोचित दंड नहीं कहा जा सकता। समाज और देश को शर्मिदा करने वाले ऐसे मामलों में सबक सिखाने वाली कार्रवाई की जानी चाहिए-न केवल संरक्षण गृह चलाने वालों के खिलाफ, बल्कि संबंधित अधिकारियों के खिलाफ भी। अगर शासन के साथ समाज अपने हिस्से की जिम्मेदारी सही तरह निभा रहा होता तो शायद मुजफ्फरपुर और देवरिया में शर्मसार करने वाले मामले सामने नहीं आए होते। इस लिए केन्द्र और राज्य सरकार को इस तरह की घटनाओं के होने पर जिला प्रशासन से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि और पुलिस की जिम्मेदारी और दण्ड सुनिश्चित करना होगा।

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