हमारा भारत महान….कैसे हो..?

क्या भारत में भारत के ही मूल धर्म व संस्कृति को नष्ट करने वालों के विरुद्ध कोई राजनैतिक दल सक्रिय होगा या केवल उनकी धार्मिक भावनाओं का दोहन करके उनकी वोटों से सत्ता के सुख में मस्त होकर अपना दायित्व भूल जाएगा ? ध्यान करों  2011 का वह हिंदुओं को एकतरफा दोषी घोषित करने वाला  “साम्प्रदायिक हिंसा निरोधक विधेयक” जिसके होने वाले संभावित उत्पीडन के भय से हिंदुओं के देशव्यापी विरोध के कारण वह रोका गया और जबसे भाजपा 2014 में केंद्र व उसके बाद अनेक प्रदेशो में सरकार बनाने में सफल होती आ रही हैं। वैसे भी अब यह माना जाने लगा हैं कि राष्ट्रवादियों के लिए भाजपा के अतिरिक्त कोई और विकल्प भी नही है। इस पर भी हमारे धार्मिक व सांस्कृतिक मूल्यों को नष्ट करने के लिए हो रहें आघातों पर पूर्ण विराम नही लगा हैं।
विचार करना होगा कि क्या राष्ट्रवादियों की इच्छाओं का सम्मान हुआ ? क्या हिंदुओं के ऊपर हो रहें धार्मिक आघातों पर कोई लेप लगा ? क्या जिहाद के लिये सक्रिय आतंकवादियों के भय से सीमाओं व सीमांत प्रदेशों में कोई परिवर्तन हुआ ? क्या देश और प्रदेश के विभिन्न मुस्लिम क्षेत्रों से हिंदुओं आदि गैर मुस्लिमों का पलायन रुका ? क्या मासूम गैर मुस्लिम लड़कियों का जिहाद के लिए हो रहें शोषण पर कोई अंकुश लगा ? यह कैसी विडंबना है कि कश्मीर के विस्थापित हिंदुओं के प्रति कोई सार्थक योजना न होने से उन पीड़ितों के मौलिक व संवैधानिक अधिकारों को भी राष्ट्रवादी सरकार भूल रही हैं , क्यों ? दशकों से हमारे संसाधनों का दोहन करने वाले एवं अनेक आपराधिक व आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध कठोर रहने वाली भाजपा अब सत्ता में आने के उपरांत भी मौन रहने को क्यों विवश हैं ?  क्या रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठियों ने भारतीय समाज की चिंता को और नही बढ़ा दिया हैं ?
भारतीय संस्कृति का प्रमुख केंद्र माने जाने वाला बंगाल जो वंदेमातरम के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी,  नेताजी सुभाष चंद्र बोस व श्यामाप्रसाद मुखर्जी जैसी महान हुतात्माओं की जन्मभूमि रही हैं वहां की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है । 1946 में मुस्लिम लीगियों द्वारा चलाया गया  “डायरेक्ट एक्शन” जिसमें हजारों निर्दोष व मासूम हिंदुओं की नृशस हत्याऐं हुई थी के इतिहास को भूलना दुर्भाग्यपूर्ण होगा क्योंकि ऐसे ही दर्दनाक दंगे भी देश के विभाजन का कारण बनें थे। परंतु वर्तमान में भी हिन्दुओं के विरुद्ध पश्चिम बंगाल में साम्प्रदायिक दंगे पिछले कई वर्षों से हो रहें हैं ।साथ ही अब वहां स्थिति इतनी अधिक बिगड़ गई हैं कि ही हिंदुओं को परंपरागत धार्मिक त्यौहार मनाने तक पर रोक लगा कर मुसलमानों को लुभाया जा रहा हैं । अनेक मुस्लिम बहुल क्षेत्रों मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी दिनाजपुर आदि में नकली नोट, नशीले पदार्थ व अवैध हथियार आदि का देशद्रोही कार्य पनप रहा है। हिन्दुओं को वहां से भगाने के लिए वहां के मुसलमान हिंदू व्यापारियों आदि का बहिष्कार करते हैं । जिससे पीड़ित हिन्दू वहां से बड़ी संख्या में पलायन कर रहें है । कश्मीर  की ही तरह यहाँ भी हिन्दुओं को अपने घरों और व्यवसायिक स्थलों को छोड़कर दूसरे स्थानों पर जाना पड़ रहा है। पश्चिम बंगाल की ऐसी विषम परिस्थिति पर प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी ने ‘अमेरिकन थिंकर’ मैगजीन में अपने लेख में हिंदुओं पर हो रहें मुस्लिमों के अत्याचारों के अतिरिक्त बंगाल को मुगलिस्तान बनाने तक के षड्यंत्र चलाये जाने पर भी चिंता जतायी हैं। इसके साथ ही केरल, कर्नाटक व पंजाब आदि में राष्ट्रवादी हिंदुओं की हो रही हत्याऐं क्या केंद्र की मोदी सरकार को विचलित नही करती ? क्या केंद्रीय प्रशासन राज्य स्तरीय बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाने में असमर्थ हैं तो फिर मोदी जी का एक कुशल व कठोर प्रशासक बताने वालों को पुनः विचार करना होगा ?  नोटबंदी व जी.एस.टी. जैसे कठोर व अलोकप्रिय निर्णय लेने में दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय देने वाले हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री जी क्यों नही ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले देशवासियों को सुरक्षित व निश्चिंत होकर जीवनयापन करने का वातावरण बनवा कर अपना संवैधानिक दायित्व निभाते ?
समाचारों के अनुसार इस वर्ष सबसे अधिक 200 से ऊपर आतंकियों को जहन्नुम पहुँचाने में सुरक्षाबलों की सफलता अच्छा संदेश देती हैं परंतु इतने पर भी जम्मू-कश्मीर जिहादियों का सबसे बड़ा लक्ष्य बना हुआ है। प्राप्त आंकड़ों से ज्ञात होता है कि पिछले सात वर्षों में इस वर्ष सबसे अधिक 117 कश्मीरी मुस्लिम युवक  विभिन्न आतंकी संगठनों से जुड़ें हैं। यहीं नही अनेक आतंकी संगठन  “इस्लामिक स्टेट आफ जम्मू एन्ड कश्मीर” (आई.एस.जे.के.) के नए नाम से आतंकियों को एकत्रित करके जिहाद को आगे बढाने व उसकी जिम्मेदारी निभाने को तैयार हो रहें हैं।
इसी प्रकार अनेक समस्याओं में एक है देश में बढ़ती मुस्लिम जनसँख्या और उससे बिगड़ता हिन्दू-मुस्लिम जनसंख्या अनुपात । क्या 1947 में देश के विभाजन  की त्रासदी को भुला देना चाहिये ? यह कौन सोचेगा कि जब धार्मिक आधार पर देश एक बार टूट चुका है तो उसकी पुनरावर्ती से कैसे बचें ? क्या बढ़ती मुस्लिम संख्या और उनकी जिहादी मानसिकता पुनः उनको देश के और विभाजन को   कुप्रोत्साहित नही करेगी ? क्या जहां जहां मुस्लिम जनसंख्या 20 से 25 प्रतिशत हो जाती हैं वहां वहां धार्मिक कट्टरता, साम्प्रदायिक दंगे, अपराध व आतंकवाद आदि बढ़ें तो सरकार व समाज मौन रहें ? यह कहां तक उचित है कि लोकतांत्रिक राजनीति में सत्ता पाने के लिए ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ को बढ़ावा दिए जाने की दशको पुरानी कुटिल व असंवैधानिक परम्परा पर अभी तक अंकुश ही नही लगाया गया ?
ध्यान रहें कि ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ को नये शब्दों में ढाल कर “मुस्लिम सशक्तिकरण” का नामकरण करके अल्पसंख्यक मंत्रालय के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी दृढ़ता पूर्वक अनेक योजनायें स्थापित कर रहें है | केंद्र की पूर्व सरकारों द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों को “अफीम” बताने वाले नकवी जी बहुसंख्यक समाज को इतना अज्ञानी क्यों समझ रहें है ? क्या बहुसंख्यकों के साथ भेदभाव बढ़ा कर केवल मुसलमानों को सशक्त करके वे किस प्रकार  ‘मुस्लिम सशक्तिकरण’ की योजनाओं को उनके तुष्टीकरण से पृथक कर सकते है ? हमको यह नही भूलना चाहिए कि ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ की बढ़ती हुई योजनाओं से भी आहत व तिरस्कृत होने वाले बहुसंख्यक हिन्दू समाज ने ही गुजरात के तत्कालीन राष्ट्रवादी नायक श्रीमान नरेंद मोदी को 2014 के आम चुनावों में सत्ता के शीर्ष पद पर बैठाया था ।
निसंदेह आज मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा को व्यापक समर्थन मिल रहा हैं । लेकिन इसका अर्थ यह नही कि यह समर्थन व्यक्तिगत मोदी जी का हो रहा है। बल्कि यह उनकी उस राष्ट्रवादी विचार धारा का हैं जिसका उन्होनें वर्षो से पालन किया है और पिछले लोकसभा चुनावों में जिसका भरपूर बढ़-चढ़ कर प्रचार भी हुआ । तात्पर्य यह है कि समाज अच्छे विचारों और कार्यों का समर्थक होता हैं , न कि व्यक्ति विशेष का । निसंदेह सज्जनों के विचार भी कभी त्रुटिपूर्ण व समाज को भ्रमित करने वाले हो सकते हैं जबकि अनेक दुर्जन भी समयानुसार अच्छे विचार रख कर समाज को प्रभावित करने में समर्थ हो जाते हैं।
अतः भविष्य में होने वाले प्रदेशीय व केंद्रीय चुनावों में मोदी जी का राष्ट्रवादी चेहरा कितना सफल होगा ये उनके शेष रहे लगभग डेढ वर्ष के कार्यकाल में होने वाले कार्यो पर निर्भर करेगा ? साथ ही भाजपा के लिए यह भी लाभकारी होगा कि उसका शीर्ष नेतृत्व अपने चारों ओर चिपके रहने वाले चाटुकारों और स्वार्थी छोटे-बड़े नेताओं से सावधान रहकर धरातल पर निस्वार्थ कार्य करने वाले लाखों – करोड़ों कार्यकर्ताओं व अपने शुभचिंतकों से संवाद बढ़ाये। क्योंकि कही ऐसा न हो कि “इंडिया शाइनिंग”  नारे के कारण जो पराजय राष्ट्रवादी समाज व भाजपा को 2004 में झेलनी पड़ी थी उसकी पुनरावर्ती का कारण  “मुसलमानों का तुष्टीकरण नही सशक्तिकरण” बनें ? विचार करना होगा कि जब भा.ज.पा. “नेशन फर्स्ट” और “सबका साथ व सबका विकास” के नाम पर सत्ता पाने में सफ़ल हुई हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों को अलग से लाभान्वित करने की सामाजिक विद्वेषकारी नीतियों को बनायें रखें ? राष्ट्र के प्रति सकारात्मक सिद्धांतों और विचारों का सम्मान करने वाली भाजपा को वर्तमान सत्तालोलुप राजनीति को राष्ट्रनीति में परिवर्तित करने का मिला यह सुअवसर “हमारा भारत महान” की दिशा का मार्ग प्रशस्त करें , ऐसा सभी सोचें तो अनुचित नही होगा ?

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