लाॅकडाउन कितना सफल

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महामारियाँ पहले भी फैलती थी पर 2020 में कोविड 19 या कोरोना जैसे विकराल रूप में विस्तार पहली बार वैश्विक स्तर पर हुआ है । लगभग सभी देशों को लाॅक डाउन करना पड़ा है, जिन्होने करने में देरी की उन्होने इटली और अमरीका की तरह इसकी इसकी बहुत बडी कीमत चुकाई है।

भारत मैं लाॅकडाउन 22 मार्च के जनता कर्फ्यू के साथ ही शुरू होगया था।लाकडाउन के बाद भी निरंतर कोरोना के केस बढ़े हैं पर यह लाॅकडाउन की विफलता नहीं है बल्कि हम कह सकते हैं कि लाॅक डाउन न लगा होता तो मरीज़ो की संख्या कहीं अधिक हो सकती थी।

लाॅकडाउन की सफलता या विफलता का दूसरा मापदण्ड यह हो सकता है कि उसे कितना माना गया और कितना उल्लंघन हुआ। भारत बहुत बड़ा देश है जिसकी जनसंख्या का घनत्व भी सबसे ज़्यादा है अत: शत प्रतिशत पालन की तो उम्मीद की ही नहीं जा सकती थी परन्तु आम तौर पर जनता ने सरकारी निर्देशों का पालन किया है।

सरकार नेे सबको विश्वास दिलाया कि आवश्यक चीज़ों की आपूर्ति में कमी नहीं होगी पर कुछ पैनिक बाइंग हुई, जिसके कारण कुछ चीज़ो़की कमी आरंभिक दिनो में हुई पर जैसे जैसे जनता को समझ मेआगया कि ज़रूरी चीज़े मिल रही हैं तो बहुत ज्यादा सामान ख़रीद कर इकट्ठा करने की प्रवृत्ति रुकी और ज़्यादतर जगहों से ज़रूरी सामान की भरपूर आपूर्ति की ख़बरें मिलने लगी।

सरकार ने दिबाड़ी मज़दूरों के लिये कुछ योजनायें बनाई थी और उनसे गाँव न जाने की अपील की थी।उससे पहले कुछ छात्रों से होस्टल ख़ाली करवा लिये गये थे और वो छात्र ट्रेनो में भर भर कर अपने घर पहुँचे थे।सरकार को अंदाज़ था कि कम समय में इतनी बड़ी संख्या मे मज़दूरों को देश के अलग अलग शहरों से उनके अलग अलग गाँवो में पहुँचा पाना संभव नहीं होगा परन्तु मज़दूर पैसे और भोजन के अभाव में अधीर होकर सड़कों पर निकल पड़े.
पैदल जाने को तैयार …फिर कुछ सरकारी कोशिशों से उन्हे रोक लिया गया तबसे लगातार उनके रहने और खाने की व्यवस्था राज्य सरकारें कर रही हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या है संभव है कुछ छूट गये हों , उनको सामने आकर अपनी दिक्कते बतानी चाहियें।
समस्या मज़दूरों की ही नहीं थीं और भी थीं बेवजह सड़कों पर फिरने वालों पर सख्ती करनी पड़ी, बाॅलीवुड की गायिका कनिका कपूर ने पार्टी की जिसमें बड़े बड़े लोग शामिल थे। कनिका ने अपना यात्रा इतिहास छुपाया था वह कोरोना पौसिटिव निकली।ग़नीमत है कि उनसे कोरोना फैला नहीं। इधर किसीने श्राद्ध मैं हज़ारों लोग बुला लिये किसी पूर्व मंत्री के पुत्र की शादी मे सोशल डिसटैंसिंग की धज़्जियाँ उड़ गई।संभवत:अभी तक इनमे आने वालों की रिपोट कोरोना नैगिटिव ही आई हैं। एक धनी व्यक्ति चार पाँच कारें लेकर खंडाला से महाबलेश्वर चल पड़े। इन सबने कानून का मज़ाक बना डाला परन्तु इनसे कोरोना का आँकड़ा नहीं बढ़ा।

कोरोना का आँकड़ा बढाने में सबसे बड़ा हाथ निजामुद्दीन मे हुए तबलीग़ी जमात के मरक़ज से हुआ। वहाँ कई लोग विदेश से आये थे जो कोरोना पौज़िटिव थे इस्लाम के नाम पर उनको इलाज न कराने की नसीहत दी जाती रही।जब बात नहीं संभली तो इनके मुखिया साद गायब होगये और ये पूरे भारत मे तितर बितर होने लगे। यदि ये काँण्ड न होता तो शायद दूसरे लाॅक डाउन की जरूरत न पड़ती । पचास प्रतिशत तक संक्मण इन्होने ही फैलाया है।

लाॅकडाउन का एकमात्र उद्देश्य कोरोना को फैलने से बचाना था पर इससे जनता को परेशानियाँ उठानी पड़ी कोई तीज त्योहार सामूहिक रूप से नहीं मनाया गया।छोटे व्यापारी दुकानदार कारीगर हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं कुछ सरकारी भोजन और अनुदान पर जिंदा है। बड़े उद्योग और सक्षम लोग उदारता से दान दे रहे हैं। घरेलू कामकाज के सहायक पूरे वेतन के साथ घर पर हैं पर एक कमरे के घर में बैठना उनके लिये आसान नहीं है। दूसरी तरफ़ बिना सहायकों के बुजुर्गों और बीमारों को बहुत तकलीफ़ हो रही है।
सब घर में बंद है तो आर्थिक व्यवस्था तो बिगड़ेगी ही पर कुछ सप्ताह मुश्किलें उठाकर हम शायद काफ़ी लोगों को सक्रमण से बचा लें। लाॅकडाउन की पाबंदियाँ बहुत धीरे धीरे उठानी पड़ेगीं अन्यथा ये करा धरा भी ज़ाया हो जायेगा।

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