युवा हिंदुस्थान का नेतृत्व कैसा हो?

दत्तात्रेय होसबळे

युवकों के नेतृत्व का विचार करने के पूर्व ‘युवा’ कौन, इसका वेध लेना चाहिए| जिनके नेतृत्व का विचार करने का समय आया है, उन युवकों की संकल्पना ही सही मायने में समझे बिना उनके नेतृत्व का विचार किया गया, तो सारा मंथन ही निष्प्रभ सिद्ध होगा| भारत यह युवकों का देश है, विश्‍व की महासत्ता बनने की ओर वह बढ़ रहा है, ऐसा आज कहा जाता है| वैसे भी हिंदुस्थान ने दुनिया को कई बार और कई क्षेत्रों में नेतृत्व दिया है, लेकिन आज के युवा हिंदुस्थान को कैसा नेतृत्व चाहिए इसका हम विचार कर रहे है|

युवा कौन? इसके लिए आयु का निकष लगाया गया तो १९८५ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘युनो’ ने आयु के हिसाब से ३५ वर्ष तक युवा, ऐसा कहा था| उसमें भी विकसनशील देश और अविकसित देश ऐसा भेद निर्माण हुआ था| विकसनशील और अविकसित देशों के मतानुसार युवा की आयु ४० वर्ष मानी जानी चाहिए थी|

आयु के आधार पर युवा का निर्णय करना हो, तो इससे आगे नहीं जा सकते| लेकिन, अन्य निकष लगाने हो तो अलग विचार करना होगा| क्योंकि, आज तक जिनके नेतृत्व में युवक संगठित हुए, क्या वे आयु के निकषानुसार युवक थे? १९७५ मेंे जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने संपूर्ण परिवर्तन का आंदोलन छ़ेडा| उनके समर्थन में भी बड़ी संख्या में युवा शक्ति एकत्र हुई थी| आज राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय नेताओं में जेपी के आंदोलन के मंथन से निकले अनेक है| अभी अण्णा हजारे के आंदोलन में भी युवा शक्ति दिखाई दी| क्या जेपी युवा थे? या अण्णा युवा हैे? जो युवकों की भावनाओं को समझ सकता है, उनके समान ही जिसमें ओज है, उनकी भाषा जो समझता है अर्थात् जो युवकों की नस समझ चुका है वह युवा… मतलब युवा बाय स्पिरिट! बालासाहब ठाकरे, अटलबिहारी बाजपेयी जैसे और कुछ नेताओं के नाम इस संदर्भ मेंे प्रमुखता से लेने होगे|

वैसे, युवा कहने के बाद हमारे सामने महाविद्यालय के परिसर में घूमनेवाले युवक का चित्र आता है| एक कॅम्पस् में रहने के कारण वह एकत्र दिखाई देता है| मिलता है| संगठित लगता है| वह अध्ययनरत है| समाज में और राष्ट्रीय स्तर पर होनेवाले घटनाओं की उसे जानकारी है और वह उनके बारे में विचार भी कर सकता है| लेकिन, युवा केवल महाविद्यालय में ही नहीं, तो ग्रामीण भाग में, अनेक क्षेत्रों में युवा है| विवेकानंद ने युवाओं का वर्णन ‘मसल्स ऑफ आयर्न अँड बॅकबोन ऑफ स्टील’ ऐसा किया था| आदर्श देश और समाज के निर्मिति के लिए हर युग में युवकों के आंदोलन निर्माण होते है| वेद, पुराण और उपनिषदों के समय से युवकों की ओर से अपेक्षाएँ रखी गई है| युवकों की व्याख्या करने का भी प्रयत्न हुआ है| उपनिषद में ‘अशिष्ट, बलिष्ठ, दृढिष्ट युवाध्यायी’ ऐसा उसका वर्णन आता है| समय के हर मोड पर और जब कभी स्थिति निर्माण हुई तब युवा शक्ति ने अपने उत्तरदायित्व का परिचय दिया है| महाभारत का युद्ध क्या था? श्रीकृष्ण नाम के एक युवा के नेतृत्व में निर्माण हुआ एक आंदोलन ही था| भारत के स्वाधीनता संग्राम में के वीर, जिनके नाम आज हम बड़े आदर के साथ लेते है, वे सब युवक ही थे| नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल, महात्मा गांधी, भगतसिंग …ये सब युवक ही थे| भारत में हो या विदेशों में, क्रांति की हुंकार युवा मुख से उमड़ी है| १९८८ में स्वतंत्रता और जनतंत्र की मांग के लिए बीजींग में प्रवेश करने हेतु, तियानमेन चौक में जो युवा एकत्र हुए थे; उन्हें किसने प्रेरणा दी थी? उस समय तो आज के समान संवाद का नेटवर्क भी नहीं था| उस आंदोलन के अगुवा के रूप में कोई नेतृत्व भी नहीं था| युवकों में नैसर्गिक रूप में जो प्रेरणा अनुस्यूत होती है, उसी प्रेरणा से वे युवक एकत्र आए थे| हाल ही में सोमालिया, इंडोनेशिया आदि देशों में जो सत्तापरिवर्तन हुआ, वह युवा-क्रांति से ही हुआ|

फिर, युवकों का नेतृत्व का क्या मतलब है? जो सत्ता के विरुद्ध खड़ा होता है, जो न्याय के लिए संघर्ष करना चाहता है, स्थापित सत्ता के विरुद्ध जो शक्ति के रूप में खड़ा होता है, वह नेतृत्व| इसका अर्थ नेतृत्व केवल सियासी ही होता है, ऐसा नहीं| समाज और देश के लिए हितकारक और दिशादर्शक – सामाजिक, विज्ञान, संस्कृति, पर्यावरण ऐसे – अनेक क्षेत्र है| इन सब में से सकल एवं सामूहिक नेतृत्व निर्माण होता है| आज हम इन सब क्षेत्रों में के समस्याओं का हल सियासत में ढूंढते है या इन समस्याओं का उत्तर देने की जिम्मेदारी सियासी नेतृत्व की ही है, ऐसा मानते है| वह सत्ता की जिम्मेदारी हो सकती है| लेकिन, अपने-अपने क्षेत्रों में कीसमस्याओं का हल संबंधित क्षेत्र में के नेतृत्व ने ही सुलझाना है| उस अर्थ में मैं सामूहिक नेतृत्व कहता हूँ| उदाहरण, कृषि के संदर्भ में की समस्याओं का हल उसी क्षेत्र के नेताओं ने ढूंढना चाहिए| लेकिन उन्होंने निकाले निष्कर्ष पर अमल करना क्या पर्यावरण, संस्कृति और अन्य संदर्भ में बाधक हो सकता है, इसका विचार सामूहिक नेतृत्व ने करके, सर्वसम्मति से लिए निर्णयों को, जिन लोगों के हाथों में सत्ता सौंपी है उन्होंने कार्यान्वित करना है| उसमें प्रशासकीय नेतृत्व का भी समावेश होता है| यह नेतृत्व सकल समाज के भविष्य को दिशा देनेवाला होना चाहिए| स्वामी विवेकानंद यह आध्यात्मिक नेतृत्व था, ऐसा हम कहते है| लेकिन उन्होंने, विज्ञान, पर्यावरण, संस्कृति, धर्म इन सब विषयों के बारे में अपने विचार रखे| उनके चिंतन आज भी मार्गदर्शक है| उन्होंने जो विचार रखे, उनसे स्वाधीनता आंदोलन को दिशा मिली| युवकों का नेतृत्व संवेदनशील, नि:स्वार्थ, पारदर्शक, मूल्य चुकता करनेेवाला और त्यागी होना चाहिए| इस संदर्भ में मैं फिर एक बार जेपी का नाम लूंगा| आंदोलन के बाद उन्होंने सत्ता का मोह नहीं रखा| विपरित, उनके आंदोलन के कारण जो सत्ता में आए, उनका वर्तन भी खराब रहा, तो मैं उनके विरुद्ध भी आंदोलन करुंगा, ऐसा उन्होंने कहा| लालबहादूर शास्त्री प्रधान मंत्री बनने के बाद उनका लड़का जिस कंपनी में नौकरी करता था, उस कंपनी ने उसे वेतनवृद्धि और पदोन्नति दी| शास्त्री जी को जब यह बात पता चली तब उन्होंने अपने लड़के से कहा, ‘‘तू उस कंपनी से त्यागपत्र दे|’’ लड़के ने कहा, ‘‘उन्होंने मुझे पदोन्नति दी और मैं त्यागपत्र कैसे दू?’’ शास्त्री जी ने कहा, ‘‘यदि तुम त्यागपत्र नहीं दोगे तो मैं मेरे पद से त्यागपत्र देता हूँ|’’ इतनी नि:स्पृहता होनी चाहिए| नेतृत्व के मार्ग में मोह के अनेक प्रसंग आते है| उनमें फँसना नहीं चाहिए| तत्त्वों के साथ कहीं भी समझौता नहीं करना चाहिए| असम के बोडो आंदोलन में प्रफुल्लकुमार महंतो के नेतृत्व में युवक इकठ्ठा हुए| सत्ता परिवर्तन हुआ| ये युवा संपूर्ण परिवर्तन के ध्यास से सत्ता मेंे आए और फिर क्या हुआ? क्रांति के मार्ग में सत्ता आती ही है और सत्ता में आना गलत नहीं, लेकिन सत्ता में आने के बाद तुमने क्रांति को दिया वचन भूलना गलत है| यह भूल अधिकांश लोग करते है| मोह टाले नहीं जा सकते| मुझे मोह नहीं, यह बताने का भी एक मोह होता ही है| इसलिए ही ‘क्रांति पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम जब सत्ता में बैठता है, तब क्रांति को सीता के समान भूमि में समाना पड़ता है…’ बाबा आमटे का यह वाक्य बहुत ही सार्थ है|

आंदोलन, अक्सर समाज के अन्याय के विरुद्ध लढ़ने की प्रेरणा से निर्माण होते है| उसके शीर्ष स्थानपर कोई होता है, जिसे हम नेता कहते है| क्योंकि दुनिया को कोई चेहरा आवश्यक होता है| चर्चाओं में जनता की ओर से बोलनेवाला कोई आवश्यक होता है| माध्यमों को दिखाने के लिए भी कोई चेहरा आवश्यक होता है| शीर्षस्थ नेताओं के व्यवहार से एक प्रेरणा मिलती है| लेकिन, आंदोलन तब ही चिरस्थाई होता है, जब उसमें नेतृत्व की दूसरी पंक्ति निर्माण होती है| भिन्न स्तरों पर का नेतृत्व आवश्यक होता है| स्थाई नेतृत्व के विकास के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक है| इंडोनेशिया में सत्ता परिवर्तन के लिए अनेक आंदोलन हुए और अनेक बार सत्ता में परिवर्तन भी हुए| क्रांति के ख्वाब लिए, नए लोग हर बार सत्ता में आते गये, लेकिन फिर भी अन्याय के विरुद्ध एक और आंदोलन की वहॉं आवश्यकता क्यों महसूस होते रही? सत्ता में आने के बाद कुछही लोग विवेक जागृत रख पाते है| नेल्सन मंडेला २६ वर्ष जेल में थे| रंगभेद समाप्त होने के बाद वे दक्षिण अफ्रिका के अध्यक्ष बने| लेकिन भटके नहीं| हॉलंड के लेक वॉलेसा मजदूर नेता थे| वे सत्ता परिवर्तन के बाद सत्ता में नहीं गये|

यह बात हुई सत्ता के विरुद्ध हुए विद्रोह से आये नेतृत्व के बारे में| सत्ता के साथ राजनीति आती ही है| उसमें पतन भी होता ही है| राजनीति के समकक्ष ही महत्त्व के दूसरे भी क्षेत्र है| विजय भटकर ने आयटी के क्षेत्र में होनेवाला ब्रेनड्रेन रोका| उन्हीं युवकों को साथ लेकर उन्होंने महासंगणक (सुपर कंम्प्युटर) बनाया| समग्र परिवर्तन यह शब्द अच्छा लगता है| इस विषय पर चर्चा करते समय वह आता ही है| लेकिन समग्र परिवर्तन करना होगा, तो विचार भी समग्र ही होना चाहिए| हर क्षेत्र का विचार कर उसमें नया नेतृत्व भी निर्माण करना होगा| इसके लिए समाज की निमिर्ति भी वैसी होनी चाहिए| व्यवस्था परिवर्तन के बिना हर क्षेत्र में भेदाभेद के परे जाकर वातावरण निर्मिति नहीं होगी| भेदाभेद होगे तो समरसता निर्माण नहीं होगी और उसके बिना एकता और एक नेतृत्व भी नहीं होगा| धर्म, जाति, पंथ, वर्ण, वर्ग … किसी भी कारण भेद होगे तो एक की बात दूसरे को मान्य नहीं होगी| फिर एक नेतृत्व कैसे निर्माण होगा? हमने विकास का नेहरु मॉडेल स्वीकार किया और उसके कारण समाज बटा| शिक्षा, न्याय, विकास इस संदर्भ में आंदोलन होना चाहिए| आज हम २१ वी सदी में रहते है फिर भी जातिवाद, महिलाओं का शोषण, रूढ़िवाद से मुक्त नहीं हुए है| इसके लिए जबरदस्त बौद्धिक मंथन आवश्यक है| वह नई दुनिया की भाषा समझने और स्वीकारने की क्षमता रखनेवाले नवनवोन्मेषशालिनी युवकों में होता है| युवकों के बारे में हमने पूर्वग्रहदूषित नहीं रहना चाहिए| नई स्मृति लिखते समय देशभक्ति होनी चाहिए| वह मौका युवकों को देना चाहिए| वे देशभक्त है ही, उनकी भावनाओं को अवसर देनेवाली परिस्थिति और विश्‍वास निर्माण किया जाना चाहिए| युवा नेतृत्व निर्माण होते समय उसमें नवीनता होनी चाहिए| नि:स्वार्थ बुद्धि चाहिए| आज की युवा पीढ़ि विलासी, व्यसनाधीन है, ऐसा कहा जाता है| इस बारे में चिंता भी व्यक्त की जाती है| लेकिन चिंतन नहीं होता| चिंतन किया तो समझ में आएगा कि संपूर्ण युवा पीढ़ि वैसी नहीं| दूसरा यह कि आज की अवस्था के लिए हम ही जिम्मेदार है, यह ध्यान में आएगा| संस्कार करनेवाले, अच्छे वातावरण और वैचारिक, विवेकनिष्ठ व्यासपीठों का निर्माण करने की हमारी जिम्मेदारी हमने सही तरीके से नहीं निभाई, यह भी ध्यान में आएगा| युवा ज्वाला होता है| अंधे बनकर वे दुनिया में आग भडकाना शुरू ना करे इसके लिए संस्कार चाहिए| उनके सम्मुख वैसे आदर्श चाहिए| उनके नेता, उनके सहयोगी जो करते है वे भी वही करेंगे| किसी विचारधारा से, आदर्शों से जुड़े युवक व्यसन और विलासिता से मुक्त रहते है|

ऐसे युवक निर्माण करने की एक व्यवस्था होनी चाहिए| फिर उन्हें नेतृत्व मिलने के बाद उसमें से स्थाई परिवर्तन साध्य किया जा सकेगा| किसी व्यक्ति के नेतृत्व में जो निर्माण होता है उसे सामान्यत: आंदोलन कहते है| लेकिन आंदोलन भी व्यक्तिसापेक्ष नहीं चाहिए| दिशहीन होना इसी से आरंभ होता है| किसी नेतृत्व का पाव फिसला तो संपूर्ण आंदोलन की हानि होती है| आंदोलन के बारे में साशंकता निर्माण होती है| व्यक्ति गलती कर सकता है, उसे मोह भी हो सकता है| लेकिन, आंदोलन का वैसा नहीं होता| जैसे की मैंने पहले कहा है, सब को एक चेहरा आवश्यक होता है| माध्यमों को तो वह चाहिए ही| वे मुद्दों को, मांगों को नहीं; चेहरे को महत्त्व देते है| इसलिए वे आंदोलन में के एक को नेता निश्‍चित करते है| विचार का (कंसेप्ट का) नेतृत्व के रूप में स्वीकार होना चाहिए| तत्त्व और विवेकी संकल्पना पर आधारित अनेक संस्था है| उनका नेतृत्व के रूप में स्वीकार होना चाहिए| लेकिन, हमें व्यक्ति ही चाहिए| हम तुरंत पूजा आरंभ कर देते है| उसके लिए हमें चरण चाहिए| ज्ञान प्रबोधिनि, विद्या भारती जैसी कुछ संस्थाएँ हैं| वह युवकों का नेतृत्व हो सकती है| कारण, व्यवस्था परिवर्तन के लिए दृष्टि संकल्पना (व्हीजन स्टेटमेंट) चाहिए| उसके लिए ध्येयनिष्ठ व्यक्ति इकठ्ठा आने चाहिए| वहॉं समझौता नहीं चाहिए| पारदर्शिता, नि:स्वार्थता की पुर्नस्थापना चाहिए| नेतृत्व के पतन से जो समस्याएँ निर्माण होती है उसका खामिज़ाना राष्ट्र को भुगतना पड़ता है| आज हम वही ॠण चुका रहे है| हर राजनीतिक पार्टी उनका दो-तीन पीढ़ि के पूर्व का नेतृत्व कैसा था इसका अभ्यास करे| हर पार्टी में नि:स्वार्थ और पारदर्शी नेतृत्व था, यह ध्यान में आएगा| अहंकार यह नेतृत्व का अवगुण है और वह हमें पता लगे बिना आता है| सफलता प्राप्त होने के बाद पथभ्रष्ट होना यह सहजभाव से होता है| लेकिन हमारी जीवनशैली स्वच्छ होगी, वर्तन पर विचारों का अंकुश होगा, तो ऐसा नहीं होगा|

आज भी मैं निराश नहीं हूँ| मुझे मेरी मातृभूमि के ‘रत्नगर्भ वसुंधरा’ होने का विश्‍वास ही नहीं, तो श्रद्धा है| इस देश ने दुनिया को दिशा देनेवाले लोग दिये है| यहॉं के युवकों की नसों में आज भी शिवाजी महाराज, राणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, भगतसिंग, राजगुरु, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का रक्त खेलता है| इसी मिट्टी से यह तेजस्वी पाति फूंटी है| बात फिर वही है कि हमें एक चेहरा चाहिए| नाम चाहिए… ऐसा कोई चेहरा, नाम मेरी आँखों के सामने नहीं है| लेकिन, अण्णा के आंदोलन के निमित्त फिर एक बार यह सिद्ध हुआ है कि, विचार होगा, निश्‍चित ध्येय होगा, तो इस देश में के युवक उसके लिए संघर्ष करने के लिए सिद्ध रहते है| उनका शायद किसी व्यक्ति पर विश्‍वास नहीं होगा; लेकिन उद्देश्यों पर विश्‍वास है| इस कारण इस देश में सामूहिक नेतृत्व निर्माण होगा ही| आगामी दशक में एक नया अध्याय शुरू हो चुका होगा…!

जय हिंद!!

(लेखक राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह हैं)

1 COMMENT

  1. सिर्फ युवा होना काफी नहीं है जब तक सोच और समझ सही नहीं होगी तब तक कोइ बुनयादी बदलाव नहीं आयेगा जैसे उमर अब्दुल्लाह , राहुल और अखिलेश बिना अच्छी विचारधारा के सफल नहीं हो सकते.

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