अगस्ता वेस्टलैंड मामला बोफोर्स से कई गुना पुख्ता

augustawestlandसुवर्णा सुषमेश्वरी

अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे में इटली की अदालत की ओर से रिश्वत देने वालों को दोषी करार देने के फैसले की खनक भारत में भी सुनाई दे रही है। इसी के साथ यह सवाल उठने लगे हैं कि जब रिश्वत देने वालों की पहचान हो गई और उन्हें दोषी भी पाया गया तो फिर रिश्वत लेने वालों की पहचान क्यों नहीं होनी चाहिए? हेलीकाप्टरों के सौदे में रिश्वत का यह मामला नरेंद्र मोदी, अमित शाह व भाजपा के लिए जहां पुरशुकुन प्रदान करने वाला है वहीँ इस सम्बन्ध में बनने वाली सुर्खियां अपने आप सोनिया गांधी और कांग्रेस को बदनाम करने वाली और एक नये विवाद को जन्म देने वाली साबित हो रही हैं । अगस्ता अर्थात अगुस्टा वेस्टलैंड को लेकर कांग्रेस और सरकार में जारी जुबानी जंग के बीच संसद की कार्यवाही का रिकॉर्ड विपक्षी पार्टी की मुश्किल बढ़ा सकती है। इटली की अदालत के फैसले के बाद कांग्रेस ने पिछले सप्ताह कहा था कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने अगस्ता वेस्टलैंड को प्रतिबंधित कर दिया था और मोदी सरकार के गठन के बाद यह बैन हटा लिया गया। हालांकि, संसद के रिकॉर्ड से पता चलता है कि यूपीए सरकार ने 2013 में दिसंबर के अंत में राज्यसभा में कहा था कि अगस्ता वेस्टलैंड के खिलाफ ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

गौरतलब है कि अगस्ता-वेस्टलैंड रिश्वत का मामला बोफोर्स से कई गुना पुख्ता है। वह इसलिए कि इटली के हाईकोर्ट ने आखिर इस मामले में भारत में दलाली दी जाने की बात प्रमाणित की है तथा जिस कंपनी ने दलाली दी उनके आरोपी अफसरों को हाईकोर्ट ने जेल की सजा सुनाई है। रिश्वत कितनी दी गई, इसका आंकड़ा भी अदालती फैसले में है। इटली के अदालत ने फैसला तमाम दस्तावेजों को नत्थी कर सुनाया है। इसलिए मामले की सनसनी लंबी चलेगी। इटली हाईकोर्ट के फैसले, उसके साथ संलग्न हुए कागजों के बूते ही भारत में सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय जांच , छापे और सम्बन्धित नेताओं से पूछ – ताछ के नाम पर दो-तीन साल मजे से सनसनी बनाए रखेंगे। इस मामले को लेकर एक तरफ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सीधे दो दिन सोनिया गांधी से सवाल किए, वहीँ डा. सुब्रहमण्यम स्वामी ने राज्यसभा में हंगामा किया तो दूसरी और शरद पवार के द्वारा एक साक्षात्कार में दिए गये वयान के अनुसार उनको सरकार से ही किसी ने कहा कि मामले में दम नहीं लगता। इसका अर्थ है मोदी सरकार में, भाजपा में इस मामले की जांच के अंत परिणाम को ले कर एक राय नहीं है। इसके पीछे कारण तथ्यात्मक हो सकता है। खबर यह भी आ रही है कि बिचौलिए ने दलाली के पैसे के ट्रांसफर के लिए बैंकों, खातों का ऐसा मकड़जाल बनाया है कि जांच एजेंसी को कई साल तो मारिशस पहुंचने में ही लग जाएंगे। कहा तो यह भी जा रहा है कि काफी धमाचौकड़ी के बाद भी कुल मिलाकर इस मामले पर कुछ नहीं होगा क्योंकि बोफोर्स के बिचौलिए आक्तोविया क्वात्रोची और विन चड्डा को जब जांच एजेंसियां भारत नहीं लिवा ला सकीं तो अगस्ता के बिचौलिए क्रिश्चियन मिसेल का कैसे प्रत्यर्पण करा सकती हैं? हाँ यह समाचार माध्यमों में सुर्खी व सनसनी बनी रहेगी। स्मरणीय हो कि इटली के हाईकोर्ट ने फैसले में जो कागज नत्थी किए हैं उसमें एएफ़, डीएस, जेएस, एपी और एफ़एएम जैसे संकेताक्षरों से नामों के अनुमान हैं जबकि पिटारा प्रणब मुखर्जी से ले कर भारत की लॉ फर्म के वकीलों तक फैला हुआ है। सरकार इटली की जांच, अगस्ता कंपनी की मदद से पैसे ट्रांसफर होने की खाते-दर-खाते की कड़ी का पता लगाए तो भले परिणाम कुछ अलग हो सकते हैं। लेकिन बोफोर्स काण्ड के अनुभव के अनुसार यह काम भी असंभव लगता है। और वैसे भी अब तक के अनुभव के अनुसार अन्य किसी मामले में भी भारत में किसी जांच एजेंसी ने ऐसा सिद्ध नहीं किया है। फिर भी सोनिया गांधी, अहमद पटेल, वांचू से ले कर पुलक चटर्जी सबको तैयार रहना चाहिए। क्योंकि एक वक्त सीबीआई ने नरेंद्र मोदी को भी लगातार नौ घंटे बैठा कर बिना रुके जैसी पूछताछ की थी, अमित शाह के साथ जो हुआ था वैसा कुछ कांग्रेसी नेताओं के साथ हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। भले ही यह किस सीमा तक जायेगा यह कहा नहीं जा सकता लेकिन यह भाजपा नेताओं के लिए पुरशुकुन प्रदान करने वाला क्षण अवश्य होगा । इसका कारण यह भी है कि भारत का नियंता कोई भी हो, सिस्टम और नौकरशाही एक सी निरंतरता लिए हुए है। सोनिया गांधी और अहमद पटेल के वक्त जो अफसर सीबीआई या प्रवर्तन निदेशालय में बैठ कर जांच के नाम पर धांधली किया करते थे वे आज भी जस के तस हैं। फर्क सिर्फ यह है कि पहले वे कांग्रेस को रिपोर्ट करते थे आज भाजपा को करते हैं। वे अपने आकाओं को खुश करने के लिए सर्वर से मिटाई उस समय की बातचीत को फिर से अवश्य हासिल कर लेंगे जिससे यह सपष्ट हो जायेगा कि इस सन्दर्भ में किस – किस क्या से बात- चीत हुई है? और किस – किसको गवाह बनाकर दोषियों को सजा दिया जा सकता है। ऐसा कांग्रेस के वक्त होता रहा था तो भाजपा के वक्त क्यों नहीं होगा?

इस मामले को लेकर आम धारणा यह है कि मामला राजनैतिक रूप अख्तियार कर चुका है इसलिए अंत में कुछ नहीं होना है। लेकिन राजनितिक सूझ- बुझ रखने वालों का कहना है कि बोफोर्स की जांच कहीं नहीं पहुंची मंगर कांग्रेस एक बार तो निपट गई। बोफोर्स जैसी बदनामी क्या पुनः कांग्रेस झेल सकती है? जानकार यह स्पष्ट कहते हैं कि इस मामले पर सोनिया गांधी और कांग्रेस पर दो तरफा हमले होने निश्चित हैं। एक तरफ मोदी सरकार और भाजपा तो दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल एंड पार्टी। शायद यही कारण है कि शरद पवार ने इस मामले के अधिक सियासी मतलब नहीं होने की जो बात कही है, वह विचारणीय है। क्या मोदी सरकार छह-आठ महीने का हल्ला कर चुप बैठ जाएगी? शायद सरकार में कुछ लोग ऐसा चाहें। लेकिन सारा दारोमदार तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर है। इसमें कोई संदेह नहीं कि वीवीआईपी हेलीकाप्टर में दलाली का मामला बहुत गहरा और फैला हुआ है। इटली की अदालत ने जितने नाम, जितने संकेत दिए हैं उसमें भारत के राष्ट्रपति भवन में बैठे प्रणब मुखर्जी एवं उनके परिजनों अर्थात फैमली से लेकर रिटायर वायु सेना प्रमुख तक का जिक्र है। सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार या सीबीआई वायुसेना चीफ रहे व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है? क्या प्रणब मुखर्जी से यह पूछा जा सकता है कि उन्होंने कैसे हेलीकाप्टर खरीद के वे पैरामीटर बदलने दिए जिससे इटली की कंपनी टेंडर देने के काबिल बनी?
स्मरणीय है कि वीवीआईपी हेलीकाप्टर खरीदे जाने का विचार और सिलसिला वाजपेयी सरकार के वक्त शुरू हुआ था। और उसी समय बिचौलिया मिसेल और त्यागी भाईयों के संपर्क से हेलीकाप्टर सौदा किये जाने की बात हुई। लेकिन उस समय हेलीकोप्टर के ऊंचाई पर उड़ सकने की क्षमता की जो कसौटी तय की गई थी उसे बाद में कांग्रेस की यूपीए सरकार में बदल दिया गया। यह इसलिए किया गया कि यदि अटल सरकार वाली मूल शर्त और कसौटी कायम रहती तो इटली की अगस्ता कंपनी टेंडर देने की हकदार नहीं होती। इसलिए बिचौलिए क्रिश्चियन मिसेल, ग्वीदो हशके, कार्लो जिरोसा ने सरकार में लिंक बैठा, प्रणब मुखर्जी के वक्त के रक्षा मंत्रालय में, पीएमओ में यह फैसला करवाया कि कम ऊंचाई पर उड़ने के फिसड्डी अगस्ता-वेस्टलैंड कंपनी के हेलीकाप्टर खरीदे जा सकते हैं। अगस्ता का पहला घपले वाला बिंदु यही है। और यह फैसला हुआ तभी अगस्ता कंपनी टेंडर दे सकी। कहा जा रहा है कि 330 या 360 करोड़ रु भारत में दलाली दी गई है और उसमें एक बड़े पार्ट में काम अर्थात टेंडर में फिट हो जाने के एवज में भुगतान किया गया है। यही कारण है कि एयर चीफ एसपी त्यागी के अलावा एयर मार्शल जेएस गुजराल को सीबीआई ने तलब किया है। और सोमवार को भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख एसपी त्यागी से केन्द्रीय जांच ब्यूरो के मुख्यालय में हुई पूछताछ में उन्होंने स्वीकार भी कर लिया है कि उन्‍होंने ऑगस्‍टा हेलीकॉप्‍टर डील के बिचौलिये से मुलाकात की थी। तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायण से भी तब पूछताछ संभव है। मतलब तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन, एयरफोर्स के आला पदाधिकारी से ले कर एसपीजी प्रमुख रहे वांचू आदि का रोल इसलिए जांच के दायरे में होगा कि इन्होंने कैसे अगस्ता-वेस्टलैंड कंपनी को टेंडर देने लायक होने दिया?

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