जीवन मर्म

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पाषाण हृदय बनकर कुछ भी नहीं पाओगे ।

वक्त के पीछे तुम बस रोओगे पछताओगे ।।

ये आस तभी तक है जब तक सांसें हैं।

सांस के जाने पर क्या कर पाओगे ।।

इन मन की लहरों को मन में न दबाना तुम ।

ग़र मन में उठा तूफां कैसे बच पाओगे ।।

भार नहीं डालो ये जान बड़ी कोमल ।

इसके थकने से तुम तो मिट जाओगे ।।

ये जन्म मनुज है जाया न इसे करना ।

मरकर भी रहो जीवित ऐसा कब कर पाओगे ।।

भौतिक जीवन मृगतृष्णा है तुम दूर रहो ।

सद्कर्मों को पतवार बना भव पार उतर जाओगे ।

पाषाण हृदय बनकर कुछ भी नहीं पाओगे ।।

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राघवेन्द्र कुमार 'राघव'
शिक्षा - बी. एससी. एल. एल. बी. (कानपुर विश्वविद्यालय) अध्ययनरत परास्नातक प्रसारण पत्रकारिता (माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय) २००९ से २०११ तक मासिक पत्रिका ''थिंकिंग मैटर'' का संपादन विभिन्न पत्र/पत्रिकाओं में २००४ से लेखन सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में २००४ में 'अखिल भारतीय मानवाधिकार संघ' के साथ कार्य, २००६ में ''ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी'' का गठन , अध्यक्ष के रूप में ६ वर्षों से कार्य कर रहा हूँ , पर्यावरण की दृष्टि से ''सई नदी'' पर २०१० से कार्य रहा हूँ, भ्रष्टाचार अन्वेषण उन्मूलन परिषद् के साथ नक़ल , दहेज़ ,नशाखोरी के खिलाफ कई आन्दोलन , कवि के रूप में पहचान |

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