हिमाचल में आसान नही तीसरे विकल्प की डगर

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बी.आर.कौंडल
हिमाचल प्रदेश की वादियाँ आजकल भले ही प्राकृतिक ठंड से सिकुड़ गई हो लेकिन राजनितिक गलियारों में काफी गर्माहट महसूस की जा रही है | वर्तमान सरकार द्वारा राज्य की बागडोर सम्भालते ही प्रतिपक्ष पर ताबड़तोड़ हमले करके सत्ता पक्ष ने यह साबित कर दिया कि वह वादाखिलाफी नही करती | आखिर यही मुद्दा तो सता में आने के लिए भुनाया गया था | तो फिर वादा तो निभाना ही था | इसी वादे को निभाने के लिए सत्ता पक्ष दिन-रात भाग-दौड़ कर रहा है | अब देखना यह है कि “ऊंट किस करवट बैठता है” | सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों अखाड़े में उतर कर एक-दूसरे के खिलाफ जंग लड़ने में व्यस्त है, लोग त्रस्त है | पर लोग जाएँ तो जाएँ कहाँ ? कोई तीसरा विकल्प नहीं है |

हिमाचल प्रदेश की राजनीति में काफी समय से तीसरा विकल्प टू-झा की राजनीति खेल रहा है | परन्तु सत्ता का दरवाज़ा उसके लिए अभी बंद है | एक समय अवश्य सरकार बनाने में तीसरे विकल्प ने भूमिका निभाई थी लेकिन अपनी स्थायी जड़ें ज़माने में असफल रहा | यह इसलिए नही हुआ कि लोगों ने विकल्प के विचार को नकार दिया, बल्कि इसलिए हुआ कि तीसरे विकल्प की बागडोर कमजोर व नकारे नेताओं के हाथ रही जो लोगों के दिलों में स्थान नही बना पाए | सर्वप्रथम हिमाचल प्रदेश में तीसरे विकल्प के रूप में हिविंका का गठन हुआ लेकिन अपने बुते पर सरकार बनाने में विफल रहा | इसी प्रकार हिमाचल लोकहित पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध मोर्चा खोलकर तीसरा विकल्प देने का प्रयास किया लेकिन लोगों ने उसे भी नकार दिया | अंत में आम आदमी पार्टी जोकि दिल्ली में अपना जलवा दिखा पायी थी ने हिमाचल प्रदेश में पैर पसारे तथा कुछ ईमानदार व जुझारू लोगों ने इसकी बागडोर अपने हाथ में लेकर आगे बढ़ाने का प्रयास किया लेकिन एक बार फिर कुछ घिसे-पिटे नेताओं ने उन प्रयासों को विफल कर दिया तथा पार्टी के नेतृत्व पर पना कब्ज़ा जमा लिया | अब देखना यह है कि इन नकारे चेहरों के बुते पार्टी क्या कर पाती है | बाद में हिविंका तो कांग्रेस में समा गयी लेकिन हिलोपा व आम आदमी पार्टी आज भी राजनितिक लहरों में हिचकोले खाती नज़र आ रही है |

आखिर क्या कारण है कि तीसरा विकल्प हिमाचल प्रदेश में अपनी जमीन नहीं बना पा रहा है | कोई भी नेता तीसरे विकल्प के नेतृत्व के रूप में लोगों के दिलों पर जगह नही बना पा रहा है | अब प्रश्न   उठता है कि आखिर लोग कैसा नेता चाहते है ? मेरे ख्याल में बिना नेता के समाज नही होता | देश का तथा समाज का उत्थान नेता पर निर्भर करता है | नेता यदि पथ भ्रष्ट हुआ तो देश भी पतन की ओर अग्रसर हो जाता है | इसलिए लोगों को बहुत छानबीन करके अपना नेता चुनना चाहिए |

हमें नेता किसे मानना चाहिए ? इस प्रश्न का ऊतर प्राप्त करने के लिए हमें इतिहास में झांकना होगा जब भारतीय संस्कृति ने बहुत सोच-समझ कर नेता की व्याख्या की थी, नेता का अर्थ निश्चित किया था, नेता शब्द का निर्माण किया था और कहा था “जो व्यक्ति नीति का पालन करे तथा चलावे, वही नेता होगा” | अर्थात नीति को जानने वाला नेता होता है | जो पथ भ्रष्ट होते हैं उनको सजा देना भी उसका कर्तव्य होता है | कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में कहा है “जब दंड नीति भली प्रकार से नेता में स्थिर रहती है, तब वह विद्या को जानने वाला सम्पूर्ण शेष विद्याओं को प्राप्त होता है” | वास्तव में नेतृत्व रेल के इंजन जैसा होता है जो अपनी क्षमता के आधार पर भारी बोझ से लदे अनेकों डिब्बों को हजारों मील घसीटता चला जाता है | शायद आज के नेताओं में इन्ही गुणों का आभाव रहा होगा कि वे तीसरे विकल्प की रेल गाड़ी को इंजन के रूप में नही घसीट पाए जिस कारण हिमाचल प्रदेश की राजनीति में तीसरा विकल्प असफल होता जा रहा है |

घिसे-पिटे लोगों द्वारा नई पार्टी का संचालन जनता को मंजूर नही है | नई पार्टी को नई दिशा व नये चेहरों की आवश्यकता है जिनमें नीति का पालन करने की क्षमता हो | लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि राजनीति में जब भी कोई नया चेहरा आगे आने लगता है तो ये घिसे-पिटे नेता उसकी जड़ों में तेल डाल-डाल कर उसे रास्ते से हटने पर मजबूर कर देते हैं | परम्परागत राजनीति से हट कर दिल्ली में केज़रीवाल ने लोगों को विकल्प देने का प्रयास किया लेकिन महत्वकांक्षा के होते वह प्रयास भी असफल रहा | एक बार फिर अब दिल्ली में केजरीवाल अपनी जमीन तलाश रहा है | देखना यह है कि अब की बार “ऊंट किस करवट बैठता है” | इसी प्रकार से हिमाचल प्रदेश में एक समाजसेवी नौजवान नवयुवक देश राज शर्मा ने उसी प्रयोग को हिमाचल प्रदेश की वादियों में दोहराने का प्रयास किया लेकिन सामंतवादी सोच के कुछ नेता जो बड़े राजनितिक दलों से बाहर फैंके गए थे, ने अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए देश राज शर्मा को रास्ते से हटने पर मजबूर कर दिया | अंततः आम आदमी पार्टी का नेतृत्व फिर घिसे-पिटे व नकारे चेहरों के हाथ चला गया जो भविष्य के लिए एक बार फिर इस पार्टी को गर्त में ले जाने का संकेत है |

नारे तो नेता भ्रष्टाचार मुक्त समाज को बनाने के लगाते हैं लेकिन लोग जानते है कि कौन चेहरा कितना ईमानदार व कितना भ्रष्ट है | ऐसा प्रतीत होता है कि स्वतंत्रता मिलने के कुछ सालों बाद ही अपने देश में निस्पृह नेताओं की वह पीढ़ी काल के गर्भ में समा गयी, जो बिना किसी स्वार्थ के अपने श्रम, प्रतिभा के जल से समाज व देश को अभिसिंचित करती रहती थी | आज के युवाओं को संगठित होकर अपने नेताओं का मूल्यांकन करना चाहिए तथा प्रत्येक उम्मीदवार से यह पूछा जाना चाहिए कि आपको क्यों चुना जाए ? आपका अब तक का क्या रिकॉर्ड है ? आपने क्या-क्या कार्य समाज के हित में किये हैं ? यदि आप चुन कर आये तो क्या-क्या करेंगे ? यह सब उन उम्मीदवारों से लिखित रूप में लिया जाना चाहिए ताकि जब वह नेता चुन लिया जाए और वह अपने वचन के अनुरूप कार्य न करे तो उसका चेहरा लोगों के सामने लाया जा सके |

यदि तीसरे विकल्प का नेतृत्व किसी ऐसे युवा नेता के हाथ में आ जाये जो नेता नहीं सृजेता बनने की चेष्ठा रखता हो | जिसमें समाजसेवा व लोकसेवा की पवित्र भावना हो तथा सचमुच ही देश एवं समाज के लिए कुछ करना चाहता हो तो कोई मजाल नही कि तीसरा विकल्प हिमाचल की राजनीति में राज न करे | लोग आज दोनों, कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी की तू–तू मैं-मैं की राजनीति से ऊब चुके हैं लेकिन  तीसरा विकल्प कोई नेता नही दे नही पा रहा है जिस कारण लोग हर पांच साल के बाद कभी कोंग्रेस तो कभी भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाने के लिए मजबूर है | आखिर अब समय आ गया है जब तीसरे विकल्प को टू-झा की राजनीति छोड़ कर दरवाजा खोलकर सत्ता में आने का प्रयास करना होगा लेकिन वर्तमान नेतृत्व के चलते यह संभव नही |

 

 

 

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