बी.आर.कौंडल-
हिमाचल प्रदेश का विकास भले ही निरंतर जारी हो, लेकिन हिमाचल प्रदेश की राजनीति का विनाश होना शुरू हो गया है। हिमाचल की राजनीति में काफी सालों तक कांग्रेस पार्टी का बोलबाला रहा तथा विपक्ष केवल नाममात्र का होता था। इसलिए किसी प्रकार के विवाद की कोई गुंजाईश नहीं थी। लेकिन बाद में भारतीय जनता पार्टी ने अपना अस्तित्व कायम किया व समय-समय पर प्रदेश पर राज़ भी किया। लोग जो कांग्रेस की राजनीति से ऊब चुके थे, ने भारतीय जनता पार्टी को गले लगाया व शांता कुमार की अगुवाई में सरकार बनी। उसके उपरान्त प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने बतौर मुख्यमंत्री सरकार चलाई। इस प्रकार कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी की सरकारें एक-दूसरे को पटकनी देकर पांच-पांच साल के बाद बदल-बदलकर आ-जा रही हैं। इसलिए दोनों दलों के नेताओं के बीच राजनितिक प्रतिस्पर्धा व कटुता बढ़ती गयी। भ्रष्टाचार के चलते एक सरकार के घपले दूसरी सरकार निकालती व दूसरी सरकार के घपले पहली वाली सरकार। परिणामस्वरूप कांग्रेस के मुखिया राजा वीरभद्र सिंह व भारतीय जनता पार्टी के मुखिया प्रो. प्रेम कुमार धूमल के बीच तू-तू, मैं-मैं की राजनीति शुरू हो गई व अपने-अपने राज़ में एक-दूसरे के ऊपर सच्चे-झूठे केस दर्ज करते गये।
इसमें कोई शक नहीं कि पहले मुख्यमंत्री डॉ. वाई.एस. परमार व बाद में राजा वीरभद्र सिंह की अगुवाई में कांग्रेस सरकार ने प्रदेश का अभूतपूर्व विकास करवाया है। डॉ. वाई.एस. परमार के समय तो राजनीति बहुत साफ़-सुथरी व ईमानदारी का प्रतीक मानी जाती थी। नेता को समाज में सृजेता के रूप में देखा जाता था। शायद इसी कारण डॉ. वाई.एस. परमार ने अपने घर की सड़क तक न बना कर पूरे प्रदेश के दूसरे हिस्सों का विकास पहले करवाना उचित समझा था। इसी प्रकार राजा वीरभद्र सिंह ने भी अपने ज़िला शिमला की अनदेखी करके पूरे प्रदेश में विकास की गंगा बहाई। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी की सरकार जब शांता कुमार की अगुवाई में बनी तो एक नई राजनीति की उम्मीद लोगों के दिलों-दिमाग में जागी थी, लेकिन कुछ कड़े क़दमों का अंजाम उन्हें कड़वे सच से भोगना पड़ा। हुआ यह कि सरकारी तंत्र में फैली निष्क्रियता व भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए शांता कुमार ने राज़ सम्भालते ही कड़े कदम लेना शुरू कर दिए जोकि सरकारी कर्मचारियों को रास नहीं आए। परिणामस्वरूप शांता कुमार को प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद से अपनी दूरी बनानी पड़ी। इसी दौरान भारतीय जनता पार्टी शांता कुमार व धूमल के दो धड़ों में बंट गई तथा दोनों धड़ों के बीच प्रतिस्पर्धा पैदा हुई जिसके चलते बिलासपुर से सुरेश चंदेल को सरकार की अगुवाई करने का मौका देने की हवा भी चलने लगी। लेकिन सुरेश चंदेल के स्टिंग ऑपरेशन में संलिप्त होने की वजह से वह भी हाशिये में चले गए। तभी जगत प्रकाश नड्डा हिमाचल की राजनीति में प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री का सपना लेकर केंद्रीय राजनीति से प्रदेश की राजनीति में आगे आए तथा बिलासपुर सदर से बतौर विधायक विधानसभा में गए। लेकिन तब तक प्रो. प्रेम कुमार धूमल प्रदेश की राजनीति में अपना पलड़ा भारी कर चुके थे व परिणामस्वरूप मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल बन गये तथा जगत प्रकाश नड्डा को वन मंत्री के रूप में संतोष करना पड़ा। परंतु तब तक क्योंकि जगत प्रकाश नड्डा प्रो. प्रेम कुमार धूमल की आँख की किरकरी बन चुके थे इसलिए वन मंत्री के रूप में जगत प्रकाश नड्डा का वजूद प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने धरातल पर नगण्य कर दिया। परिणामस्वरूप जगत प्रकाश नड्डा ने भारी मन से मंत्री पद त्याग दिया तथा प्रदेश की राजनीति से बाहर हो गये व भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में दोबारा चले गये जोकि सही समय में सही कदम साबित हुआ।
आज प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है तथा प्रो. प्रेम कुमार धूमल विपक्ष के नेता हैं तथा जगत प्रकाश नड्डा भारतीय जनता पार्टी की केन्द्रीय सरकार में स्वास्थ्य मंत्री के पद पर विराजमान हैं तथा भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं के करीबी माने जाते हैं। दूसरी तरफ प्रो. प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर सांसद के रूप में हमीरपुर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहें हैं। आज की तारीख में जगत प्रकाश नड्डा प्रदेश की राजनीति में अपनी पकड़ बनाने में सक्षम दिख रहें है। इसी कारण उनके हिमाचल दौरे ने यहाँ की राजनीति में गर्माहट पैदा कर दी है। कहते है राजनीति में न कोई स्थाई दुश्मन होता है और न स्थाई दोस्त। इसी कवायद को लिखते हुए जगत प्रकाश नड्डा ने हिमाचल के वर्तमान मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र से हाथ मिला कर विकास करने की इच्छा दिखाई जिसका व्याख्यान उन्होंने मंडी में अपने भाषण के दौरान किया। जिसका राजनितिक पहलू ज्यादा नजर आता है। इस प्रकार जगत प्रकाश नड्डा अब अपने दुश्मनों के दुश्मन को दोस्त बना कर उनसे दो-दो हाथ करने की डगर पर चल पड़े है। दूसरी तरफ प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने जगत प्रकाश नड्डा के प्रतिद्वंद्वी सुरेश चंदेल भूतपूर्व सांसद हमीरपुर से गुप्त मंत्रणा करके नए समीकरणों के उभरने का संकेत दिया है। अत: भविष्य में राजनितिक जंग भारतीय जनता पार्टी में और अधिक बढने की उम्मीद है। हो न हो जिस प्रकार केंद्र में मोदी ने अपने विरोधियों को ओल्ड ऐज होम में डाल रखा है, भविष्य में हि.प्र. में भी यह कार्य जगत प्रकाश नड्डा आने वाले समय में कर सकते हैं।
एक तरफ राजा वीरभद्र बनाम प्रेम कुमार धूमल का महाप्रदेश युद्ध चला है व दूसरी तरफ जगत प्रकाश नड्डा व प्रेम कुमार धूमल का महाभारत।। अब देखना यह है कि यदि आने वाली सरकार भारतीय जनता पार्टी की बनती है तो उसका मुखिया कौन बनने वाला है। यदि जातीय समीकरण को देखें तो जगत प्रकाश नड्डा की डगर कठिन है। लेकिन यदि राजनितिक परिदृश्य पर नज़र डालें तो आने वाला मुख्यमंत्री जगत प्रकाश नड्डा हो सकता है। इसके दो कारण प्रतीत होते हैं एक तो प्रदेश के लोग दो पुराने मुख्यमंत्रियों की आपसी छीना-झपटी से तंग आ गये हैं जिससे कांग्रेस की हार निश्चित है और दूसरा दोनों पार्टियों के नेता अपनी सेवानिवृति की उम्र पार कर चुके हैं तथा दोनों ही पुत्र मोह की राजनीति कर रहे हैं। दोनों कारणों से प्रदेश का विकास भी प्रभावित हो रहा है तथा सरकारी कर्मचारियों व अधिकारीयों को भी प्रताड़ित होना पड़ रहा है। प्रेम कुमार धूमल की पिछली बार के कार्यकाल को धूमिल माना जाता है क्योंकि उस दौरान पार्टी के नेताओं ने अनगिनत जमीनी सौदे करके यह छवि बना दी कि प्रो. प्रेम कुमार धूमल प्रदेश के हितकर नहीं है। अत: जगत प्रकाश नड्डा के लिए इस वक्त मुख्यमंत्री बनने के लिए रास्ता साफ़ नज़र आता है जिसमें राजा वीरभद्र सिंह बखूबी तारकोल बिछाने का काम करके अपनी दोस्ती निभा रहे हैं। लेकिन राजा वीरभद्र सिंह राजनीति के चाणक्य हैं। कहीं ऐसा न हो कि दोनों को पटकनी देकर फिर दोबारा कांग्रेस की सरकार बना दे। लेकिन जैसा ब्यान मुख्यमंत्री ने अपने मंडी दौरे के दौरान दिया कि उनकी पत्नी के मंडी संसदीय क्षेत्र से हारने का कारण ब्राह्मणवाद रहा उनकी राजनितिक परिपक्वता के खिलाफ है।
दोनों पार्टियों के अलावा प्रदेश में तीसरा विकल्प कोई नज़र नहींं आता, हालाँकि प्रदेश की जनता उसकी तालाश में है। राष्ट्रीय राजनीति के चलते आम आदमी पार्टी ने विकल्प की राजनीति देने का वायदा किया था लेकिन उनका सिक्का भी खोटा निकला। अत: आने वाले समय में दोबारा जंग भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस के बीच ही होना निश्चित है। परंतु यह सच है कि प्रदेश की राजनीति को ग्रहण लग गया है। प्रदेश में दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ मैदान-ए-जंग में अपनी टोपी बचाने के चक्कर में लोगों को उनके हाल पर छोड़ चुके हैं। किसान एक तरफ जंगली जानवरों के आतंक से पीड़ित है तथा दूसरी तरफ युवा बुरी तरह से नशे की गर्त में डूबा जा रहा है, लेकिन सरकारों की मज़बूरी है कि “शराब बेचना जरुरी है”। प्रदेश की सड़कें लोगों के खून की प्यासी हैं तथा शिक्षा संस्थान गुणवत्ता रहित हो चुके है। कार्य करवाने के लिए हर कोई कोर्ट के आदेश लेने पर आतुर है। प्रदेश क़र्ज़ के बोझ तले डूबा है जिससे विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं लेकिन नेताओं का फिर भी कहना है कि विकास के रास्तें में धन की कमी आड़े नहीं आएगी। आखिर कब तक यह नेता जनता को अपने सत्ता सुख के लिए इस प्रकार से मुर्ख बनाते रहेंगे।
सरकार भले ही कोई हो लेकिन कुछ अच्छे कार्य अवश्य करती है। विपक्ष का यह दायित्व बनता है कि उन कार्यों के लिए सरकार की प्रशंसा करे तथा जन विरोधी कार्यों के लिए मर्यादापूर्ण आलोचना करे। परन्तु आज के समय में ऐसा नहीं हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने अपने कार्यकाल के दौरान सड़कों की दशा में भारी सुधार किया था लेकिन ज्यादा सत्ता सुख आदमी को भ्रष्ट कर देता है, यही कुछ प्रदेश की राजनीति में भी हो रहा है। ऐसा लगता है कि जो दल जब सत्ता में होता है तो सब कुछ गलत करता है परन्तु अच्छा केवल प्रतिपक्ष ही करना चाहता है। लेकिन जब प्रतिपक्ष स्वयं सत्ता में आता है व सत्ता पक्ष प्रतिपक्ष बन जाता है तो उनकी भाषा बदल जाती है। यह लोगों को बेबकूफ बनाने का राजनीतिज्ञों ने एक रास्ता खोज निकाला है क्योंकि लोगों के पास तीसरा विकल्प नहीं है। जो इस तरफ प्रयास हुए भी हैं वे घिसे-पिटे नेताओं के नेतृत्व की वजह से असफल रहे। प्रदेश की राजनीति से यह राहू की छाया कब दूर होगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा।