हम गरीब हैं या चोर या फिर…?

itr-mainभारत की आर्थिकी कितनी पोली और बिना जड़ों की है, इसकी हम और आप सचमुच थाह नहीं पा सकते। सर्वमान्य आंकड़ा है कि भारत सवा अरब लोगों का देश है। कई देशों की आबादी से भी बड़ा भारत में मध्यवर्ग है। आए दिन सुनते हैं कि अमीर बढ़ रहे हैं। अमीरी बढ़ रही है और दुनिया भारत को सलाम कर रही है। ये तमाम बातें सतही हैं। हकीकत में पोला ही पोला है। इसे समझना जरूरी है। समझने से पहले नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली का धन्यवाद इसलिए करना चाहिए क्योंकि इन्होंने सच्चाई जाहिर होने दी। यह सच्चाई आयकर विभाग के जारी आंकड़ों की बदौलत है। पहली बार भारत सरकार ने बताया कि उसे आयकर से जो आय होती है उसमें जनता का क्या और कैसा योगदान है। अभी तक यह बात छुपाई रखी जाती थी। तभी हम सवा अरब आबादी की हकीकत और व्यवस्था व सिस्टम की सच्चाई पर विचार करने में समर्थ नहीं थे। उस नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह ट्वीट सही सोच है कि पारदर्शिता और सोची समझी नीति निर्माण की तरफ यह अहम कदम है। उस नाते यह मानना भी सही होगा कि मोदी सरकार छोटे-छोटे ऐसे जो फैसले ले रही है उसका अंततः बड़ा असर होगा।

बहरहाल, पते की बात जानी जाए। क्या आप मानेंगे कि सवा अरब लोगों की आबादी में से सिर्फ एक प्रतिशत लोग आयकर देते हैं? देश में सिर्फ 5,430 ऐसे लोग हैं जिन्होंने एक करोड़ रु सालाना से अधिक टैक्स दिया। ये आंकड़े 2012-13 के एसेसमेंट वर्ष के हैं। सरकार ने प्रत्यक्ष कर के 15 साल के आंकड़े विभाग की वेबसाइट पर डलवाए हैं। इन आंकड़ों से जो तथ्य निकले हैं उसमें कई हैरान करने वाले हैं तो यह हकीकत सामने आती है कि भारत में अमीर है नहीं। और यदि वे हैं तो चोर हैं और चोर हैं तो वजह अफसरशाही, सिस्टम के चंगुल से घबराना है।

सिर्फ 2 करोड़ 87 लाख लोगों ने आयकर रिटर्न भरा। इनमें से 1.62 करोड़ लोगों ने कोई टैक्स नहीं दिया। इसलिए कि टैक्स लायक आमद इनके रिर्टन में नहीं थी। सो उस साल सिर्फ सवा करोड़ लोग भारत में आयकर देने वाले थे। इनमें से भी 1 करोड़ 11 लाख लोगों ने सिर्फ 21 हजार रु प्रति आयकरदाता औसत में टैक्स भरा। उस वर्ष भारत में कुल ऐसे तीन व्यक्ति थे जिन्होंने 100 से 500 करोड़ रु के बीच टैक्स दिया। इन तीन का औसत टैक्स 146 करोड़ रु था।

2012-13 के आंकड़ों के अनुसार अधिकांश ( सवा बीस लाख लोग) आयकर रिटर्न में साढ़े पांच से साढ़े नौ लाख रु की सालाना कमाई बताई गई। कोई 19 लाख लोग ढाई से साढ़े तीन लाख रु प्रतिवर्ष की आय वाले थे। केवल छह की आय 50-100 करोड़ रु की रेंज में थी। 1 से 5 करोड़ रु की रेंज वाले व्यक्ति 17 हजार 515 थे।

इस हकीकत का अर्थ है कि 20-30 करोड़ के विशाल मध्यवर्ग की बात फालतू है। 125 करोड़ की आबादी में से यदि सवा करोड़ लोग ही आयकर देने (अधिकांश 21 हजार रु औसत) वाले हैं तो भारत में फिर अमीर हैं कितने? और आईटी की बूम, बड़ी कंपनियों के बड़े पैकेज की जो बात है वह है कहां? वेतनभोगी का रिटर्न जाता ही है। सन् 2012-13 में कोई 2.87 करोड़ वेतनभोगी लोगों ने आयकर रिटर्न दिया। इनका भी कोई ऐसा वेतन नहीं जिससे सरकार को खास आयकर मिलता हो।

सो सवाल है कि ऐसा क्यों है कि 76 करोड़ वयस्क आबादी याकि कामकाजी आबादी के वर्ष में 2.9 करोड़ लोग ही आयकर विभाग के दायरे में थे? कामकाजी आबादी का सिर्फ चार प्रतिशत हिस्सा आय का लेखा रखता है। सरकार को देता है। बाकी क्यों नहीं देते हैं? तीन कारण हो सकते हैं। या तो बाकी 73 करोड़ गरीब हैं। खेती करने वाले और कृषि आय क्योंकि आयकर दायरे में नहीं आती है इसलिए उस आबादी को अलग रखना चाहिए। मगर व्यापारी, स्वरोजगार, पेशेवर, उद्ममी आदि भी अपने यहां बड़ी संख्या में हैं। जब सर्विस क्षेत्र आर्थिकी का बड़ा हिस्सा हो गया है तो इस क्षेत्र में कमाई करने वाले लोग आयकर की इस तस्वीर में कहां हैं? होते तो रिर्टन संख्या इतनी कम होती?

इसका संभव अर्थ यह है कि व्यापारी, स्वरोजगार या सर्विस सेक्टर में लगे लोगों की आय उतनी नहीं होती है जितनी मानी जाती है। मतलब भारत में ऐसा कोई मध्यवर्ग है ही नहीं जिसकी साल की तीन लाख रु की आय हो या खरीद ताकत हो। तब फिर कार, मोटरसाईकिल या मोबाईल जैसे सामानों की खरीद बढ़ने का सैलाब क्यों है? महंगी कारें, महंगी बाईक और फोन की खरीद है तो आमद भी होगी। तब करदाता क्यों नहीं हैं? जाहिर है लोगों में टैक्स न देने, आयकर विभाग से दूर रहने की सोच है। यह इसलिए है कि एक बार रिटर्न भर दिया, इनकम बता दी तो हर साल झमेला बनेगा? सीए को रखो, उसे फीस दो और उसके बाद आयकर विभाग के चक्कर लगाओ। ऐसा क्यों कर कोई पसंद करेगा? भारत का नागरिक कैसा भी हो, अमीर या मध्य वर्ग वह भारत की व्यवस्था, उसके आयकर विभाग से एलर्जी रखता है। उसका बस चले तो सरकार से कोई नाता नहीं रखे। यही हकीकत है इसलिए आय छुपाना, अपने को गरीब बताए रखना राष्ट्रीय मिजाज है। या फिर सचमुच भारत की 125 करोड़ की आबादी में 122 करोड़ गरीब हैं?
फैसला आपका!

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